जानिए "रेख़्ता" नाम किसने दिया? इसका पहला सदस्य कौन था ?

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-12-2024
Know who gave the name
Know who gave the name "Rekhta"? Who was its first member?

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

रेख्ता के लिए कई सम्मानित लोगों ने हमारी मदद की और हमारा मार्गदर्शन किया, जिनमें उमैर मंज़र भी शामिल थे, जो सबसे पहले इस यात्रा में मेरे साथ शामिल हुए.वर्ष 2012 में रेख्ता के ' नकाब कुशाई' के मौके पर राजधानी की एक खूबसूरत महफिल में रेख्ता फाउंडेशन की आत्मा संजीव सराफ के इन शब्दों पर तालियां गूंजीं.

 संजीव सराफ के धन्यवाद के इन चंद शब्दों के पीछे एक बड़ी कहानी है. रेख्ता को वजूद देने की मेहनत की कहानी, ख्वाहिशों, महत्वाकांक्षाओं और सपनों को हकीकत का रंग देने की कहानी.

जिसमें सबसे अहम भूमिका उमैर मंज़हर की भी सामने आई, जो कभी संजीव सराफ के उर्दू टीचर बने. फिर  रेख्ता के पहले 'सदस्य', जिन्होंने संजीव सराफ की वेबसाइट के लिए 'रेख्ता' नाम सुझाया.

जिसे अब उर्दू की एक नई दुनिया के नाम से जाना जाता है. हर साल रेख्ता का एक उत्सव या होता है जिसे हम जशन रेखता के नाम से जानते हैं. अगर हम रेखता की शुरुआत से लेकर अब तक के सफर पर नजर डालें तो उनमें से कुछ ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने संजीव सराफ को उनके सपने को साकार करने में मदद की.

उनका मार्गदर्शन किया.  इनमें से एक भूमिका उमीर मंज़र की है, जिन्हें हम संजीव सराफ के उर्दू शिक्षक के रूप में पेश कर सकते हैं, जबकि रेख्ता नाम आज हर किसी की ज़ुबान पर है. यह उनकी खोज है. वह अब मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर के उर्दू विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं.

इस खोज के बाद जब आवाज़ द वाॅयस ने सरल और विनम्र व्यक्तित्व वाले उमैर मंज़र से संपर्क किया तो वह भी हैरान रह गए. उन्होंने पूछा कि इसका मकसद क्या है? उन्हें बताया गया कि रेख्ता अब एक नाम नहीं बल्कि एक दुनिया है,

इसलिए इसके अस्तित्व में आने का चरण अब बहुत दिलचस्प हो सकता है. कुछ देर की बातचीत के बाद उमैर मंज़र रेख़्ता की  बिस्मिल्लाह की कहानी बताने को तैयार हो गए. वो लखनऊ में थे और इन पंक्तियों का लेखक दिल्ली में, तो बात टेलीफोन पर तय हुई.

देर रात जब  मंजर साहब को फोन किया तो रेख्ता के अस्तित्व में आने की कहानी शुरू हो गई. जिसमें अनेक पात्र सामने आए, उनकी सेवाएँ और सुझाव सामने आए, जिसने संजीव सराफ के जुनून को साहस और शक्ति से भर दिया.

यही वजह है कि सफर की शुरुआत महज एक शायरी वेबसाइट से हुई लेकिन अब यह जमीन से आसमान तक उर्दू की सबसे बड़ी दुनिया है.एक प्रश्न के जवाब में उमैर मंज़र ने कहा कि यह शायद 2010 था. गर्मियां शुरू नहीं हुई थीं.

उस समय जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति  नजीब जंग थे. उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर खालिद महमूद साहब थे. कुलपति द्वारा  कहा गया कि जिनका नाम इस पर लिखा है उन्हें उर्दू सिखानी होगी. नाम था संजीव सराफ. मैंने इस नंबर पर कॉल किया, उन्होंने बात की और समय तय हो गया.

पहली बार मैं उनसे मिलने उनके घर गया . इसके अलावा, मुझे तब तक पता नहीं था कि वह कौन थे. फिर भी उनकी गंभीरता और बोलने का एक निश्चित शांत तरीका था.
मैं उन्हें बहुत पसंद करता था. वह हर बात में बहुत स्पष्टवादी थे. कुछ मुलाकातों के बाद उन्होंने बताया कि उन्हें उर्दू का बहुत शौक है और वह उर्दू सीखना चाहते हैं.

विशेष रूप से कविता समझना चाहते हैं. कुछ ही मुलाकातों में मुझे एहसास हुआ कि उर्दू  भाषा जानने के अलावा  उनकी रुचि एक उर्दू वेबसाइट बनाने में भी है, लेकिन वह इस पर अधिक ध्यान देना चाहते हैं. उनके मन में एक उर्दू वेबसाइट शुरू करने का सपना कई वर्षों से था.

यह वह दौर था जब संजीव सराफ उर्दू से प्रेम करके भाषा सीख रहे थे और यह भी चाहते थे कि जो लोग उर्दू के शौकीन हैं, उन्हें यहां लाने के लिए एक पुल का निर्माण किया जाना चाहिए .

उर्दू से उनकी नजदीकियां बढ़ेंगी, साथ ही उनकी चाहत भी दूर होगी. ऐसे हजारों नहीं तो लाखों लोग हैं जो कविता के कारण भाषा सीखना चाहते हैं. लेकिन उन्हें इस संबंध में कोई मदद नहीं मिल पाती है,

ऐसा संजीव सराफ ने सोचा, क्योंकि उन्हें भी इस समस्या का सामना करना पड़ा था. उनके सामने संसाधन थे, इसलिए उनके पास उर्दू सीखने का भरपूर मौका था. लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं है.

इस संबंध में जब मैंने  मंज़र से पूछा कि संजीव सराफ ने पहली बार अपने दिल की बात क्या कही थी तो उन्होंने कहा  कि संजीव सराफ को कई बार कुछ सूचनाएं मिली थीं, जिससे मुझे यह जानकारी मिली थी कि ये सज्जन कुछ करना चाहते हैं उर्दू सीखने से परे.

एक दिन उन्होंने औपचारिक तौर पर अपनी बात कही. फिर चर्चा हुई कि इस पर विस्तार से चर्चा होगी. कुछ दिन बाद उन्होंने फिर कहा कि मेरे जैसे कई लोग हैं जो उर्दू भाषा से प्यार करते हैं .

उनके कई सवाल हैं. समस्याएं हैं. प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक की आवश्यकता होती है, इसलिए यह एक वेबसाइट उन सभी लोगों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है.

मैं पहली बार इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रहा हूँ. इस दौरान उनके नोएडा स्थित ऑफिस जाने का सिलसिला  शुरू हो गया. एक बार वह मुझे नोएडा ले गए. कहा कि हम ऑफिस के एक हिस्से में उर्दू का काम शुरू कर सकते हैं.

rekhta

उमैर मंज़र को भी इस बात का एहसास नहीं था कि वह एक दुनिया बसाने की पहल का हिस्सा बन गए हैं. उन्हें भी ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी उर्दू कट्टरपंथी के संपर्क में आए हैं, जो अन्य प्रशंसकों के साथ अधिक गर्मजोशी रखते हैं. 

जब इन पंक्तियों के लेखक ने उमैर मंज़र से पूछा कि वेबसाइट की शुरुआत कब और कैसे हुई तो उनका उत्तर था, फिर एक दौर ऐसा आया कि संजीव सराफ ने पूछा कि वे एक वेबसाइट बना रहे हैं,

लेकिन उसका नाम क्या होगा? कविता, जबकि कुछ अन्य ऐसे नाम सामने आए लेकिन वे सभी पहले से ही पंजीकृत थे, जब हमने इन नामों को प्राप्त करने की कोशिश की, तो मुझे लगा कि उनकी कीमतें बहुत अधिक हैं.

सराफ को 'रेख्ता' नाम सुझाया. उन्होंने इसका अर्थ पूछा, मैंने उन्हें बताया.उन्हें नाम पसंद आया और फिर वेबसाइट rekhta.org के रूप में पंजीकृत हुई. मुझे याद है कि उन्हें इस शब्द का सामंजस्य पसंद आया. पूरी प्रक्रिया उन्होंने हमारे साथ की. 

उनके परिश्रम के फलस्वरूप अनेक लक्ष्य निर्धारित समय से पहले ही प्राप्त किये गये.यह रेख्ता फाउंडेशन की पेपर तैयारियों का सफर था. उर्दू में रुचि ने संजीव सराफ को वेबसाइट की तैयारी तक पहुंचाया.

उमैर मंजर संजीव सराफ को उर्दू सिखाने गए थे, लेकिन उनके साथ वह एक और मिशन में फंस गए, जो अब उर्दू प्रशंसकों के लिए एक सपनों की दुनिया बन गई है.

 जब उमैर मंज़र से नाम करण के बाद की तैयारियों के बारे में पूछा तो उन्होंने ये कहा. हाँ! नाम तय होने के बाद यात्रा जारी रही. 2011 की गर्मियों में, मैंने आधिकारिक तौर पर वेबसाइट शुरू की. पहला कदम शास्त्रीय कवियों के शब्दों को चुनना था. यह शुरू से ही मिर्ज़ा ग़ालिब के लिए तय किया गया था.

कवियों का चयन जामिया मिलिया इस्लामिया और अन्य पुस्तकालयों से शुरू हुआ. उनके निजी पुस्तकालय से कवियों का चयन किया गया. उनकी रचना की गई.  नोएडा ऑफिस में कंपोजर रखकर काम शुरू किया गया. इसकी शुरुआत धीरे-धीरे हुई और फिर इसमें तेजी आ गई.

उमैर मंजर से पूछा कि इस सफर की शुरुआत के बाद वे कौन से चेहरे थे जिन्होंने रेख्ता फाउंडेशन के मिशन को सफल बनाने के लिए संजीव सराफ का समर्थन किया या अपने बहुमूल्य सुझाव दिए जिन्हें रेखता ने अपनाया  तो उनका कहना है कि,प्रारंभ में, मैंने प्रोफेसर अहमद महफूज और प्रोफेसर अब्दुल रशीद से संपर्क किया.

उन्हें इस परियोजना के बारे में बताया. उनकी सलाह ली. इसका पालन किया. उसके बाद मैंने दोनों सज्जनों की संजीव सराफ से मुलाकात कराई. यकीन मानिए पहली मुलाकात कई घंटों तक चली.

हर पहलू पर चर्चा हुई. जिसमें सराफ ने अपने इरादे और महत्वाकांक्षाएं व्यक्त कीं. ये लोग सलाह भी देते थे. सबसे आम बात यह थी कि जो भी सलाह दी जाती थी या जो कहा जाता था, उसे संजीव सराफ स्वयं नोट कर लेते थे या ध्यान में रख लेते थे.

तुरंत उस पर यथासंभव अमल करने का प्रयास करते थे. उदाहरण के लिए, प्रो. रशीद ने सुझाव दिया कि पुरानी किताबों को संरक्षित करने का तरीका उन्हें स्कैन करके वेबसाइट पर अपलोड करना.

उमैर मंज़र इस बारे में और भी कुछ कहते हैं. कुछ दिन बाद हम ऑफिस गए तो संजीव सराफ ने कहा कि मशीन आ गई है. अब आप लोग किताबें ले आइए. स्कैनिंग का दौर शुरू हो जाएगा.

हम एक अजीब स्थिति में चले गए. फिर एक बड़ा लक्ष्य किताबों को लाने की बड़ी चुनौती थी. शुरुआत में हमने केवल चुनिंदा और महत्वपूर्ण किताबों को ही वेबसाइट पर अपलोड करने की कोशिश की. बाद में यह भी एक नई दुनिया बन गई.

उमैर मंज़र कहते हैं कि शुरुआत में जब कोई वेबसाइट का ज़िक्र करता था तो लोग आमतौर पर इसे नज़रअंदाज कर देते थे. इनमें रहमान फ़ारूक़ी, प्रो. शमीम हनाफ़ी और प्रो. वालवासा जैसे लोग शामिल हैं.

रेख्ता के बारे में संभवतः पहला कॉलम प्रोफेसर वासा ने लिखा था, जब वह उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष थे. उन्होंने रेख्ता को उर्दू के प्रचार-प्रसार के लिए एक पुरस्कार भी दिया था.

आपको बता दें कि उमैर मंज़र रेख्ता के शुरुआती दिनों में सहायक के रूप में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद उर्दू विश्वविद्यालय में शामिल हुए थे. दरअसल शुरुआत में रेख्ता में काम करने आए लोगों का चयन/अनुशंसा एक ही समूह ने की थी जिसमें प्रोफेसर अहमद महफूज, प्रोफेसर अब्दुल रशीद और उमीर मंज़र शामिल थे.

अब्दुल रशीद दिल्ली से हैं. उनका मुख्य कार्य शब्दकोश और शोध है. इस वर्ष ग़ालिब संस्थान उन्हें अपना प्रतिष्ठित साहित्यिक और शोध पुरस्कार दे रहा है. प्रोफेसर अहमद महफ़ूज़ वर्तमान में जामिया इस्लामिया के उर्दू विभाग के अध्यक्ष हैं. वह कविता के विशेषज्ञ और अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण आलोचक और कवि हैं.

रेख्ता फाउंडेशन से शुरू से सक्रिय रूप से जुड़े रहने वाले लोगों में प्रोफेसर अब्दुल रशीद और डॉ. अमीर मंजर का नाम शामिल है.राजा महमूदाबाद की लाइब्रेरी से किताबों को स्कैन करके ई-बुक का हिस्सा बनाने के लिए डॉ. उमैर मंज़र और प्रो. अब्दुल रशीद साहब को इस टीम में शामिल किया गया था.

इसी तरह कुछ निजी पुस्तकालयों और कुछ महत्वपूर्ण किताबों तक पहुंच बहुत सक्रिय थी. उनके साथ प्रोफेसर अब्दुल रशीद  और डॉ. उमैर मंज़र ने भूमिका निभाई है.