गिरिजा शंकर/ बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील के छोटे से गांव अगेहरा की रहने वाली 17 वर्षीय पूजा पाल की कहानी संघर्ष, जिज्ञासा और अदम्य साहस का प्रेरणादायक उदाहरण है. मिट्टी की झोपड़ी में पैदा हुई इस बच्ची ने अपनी सोच और मेहनत से वह कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी वहां के लोग नहीं कर सकते थे. पूजा आज अपने आविष्कार – धूल-रहित थ्रेशर – के दम पर जापान तक पहुंच गई है और भारत का नाम रोशन कर रही है.
जापान में पूजा अपने माॅडल के साथ
पूजा की यात्रा की शुरुआत एक साधारण से लेकिन प्रभावशाली अनुभव से हुई. कक्षा 8 में पढ़ते समय उसने खेतों में गेहूं की ब्रेसिंग के दौरान बच्चों को धूल में खांसते और हांफते देखा. थ्रेशर मशीन से निकलने वाली धूल इतनी घनी थी कि न किसान साफ देख पा रहे थे, न बच्चे. उस क्षण पूजा के मन में यह सवाल उठने लगा कि क्या इस समस्या का कोई हल नहीं हो सकता? घर लौटने पर उसने अपनी मां को छननी से आटा छानते हुए देखा और अचानक दिमाग में एक विचार कौंधा—अगर थ्रेशर के सामने जाली और पानी की टंकी लगाई जाए तो धूल को रोका जा सकता है.
यह विचार एक छोटे से नवाचार की दिशा में पहला कदम बना. पूजा ने कबाड़ में पड़ी टिन की चादरों, पुराने पंखे और कुछ तारों की मदद से एक मॉडल तैयार किया. उसके विज्ञान शिक्षक राजीव श्रीवास्तव ने इस विचार को प्रोत्साहित किया और पूजा के मॉडल को और बेहतर बनाने में मदद की.
इस थ्रेशर में पानी से नमी देकर धूल को स्रोत पर ही नियंत्रित कर दिया जाता है, जिससे खेत में काम करने वाले मजदूरों और आसपास के बच्चों की सांस संबंधी समस्या काफी हद तक खत्म हो जाती है.पूजा का यह मॉडल पहले स्थानीय विज्ञान प्रदर्शनी में चर्चा का विषय बना और फिर लखनऊ में आयोजित अयोध्या मंडल की संयुक्त विज्ञान प्रतियोगिता में 5 दिसंबर 2022 को टॉप 10 में जगह बनाई.
इसके बाद उसका चयन राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित INSPIRE अवार्ड्स में हुआ, जहां 441 मॉडलों में से पूजा का मॉडल चुना गया. यह उसके जीवन की पहली बड़ी उपलब्धि थी. यूपी से वह अकेली छात्रा थीं जिसे यह सम्मान मिला. इसके बाद विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में IIT दिल्ली के प्रोफेसरों और इसरो के वैज्ञानिकों ने उसके मॉडल का परीक्षण किया और देशभर के 60 सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक मॉडलों में शामिल किया.
इसके बाद पूजा को राष्ट्रीय बाल वैज्ञानिक पुरस्कार मिला. यहीं से उसका सफर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचने लगा. जापान विज्ञान और प्रौद्योगिकी एजेंसी द्वारा आयोजित सकुरा साइंस हाई स्कूल प्रोग्राम में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए पूजा का चयन हुआ. देशभर से चुने गए 53 छात्रों में वह उत्तर प्रदेश की अकेली छात्रा थीं.
टोक्यो की यह यात्रा पूजा के लिए सपने जैसी थी. यह पहली बार था जब उसने राज्य से बाहर कदम रखा. जापान में उसने उच्च तकनीक प्रयोगशालाओं का दौरा किया, नोबेल पुरस्कार विजेताओं से मुलाकात की और अपने धूल-रहित थ्रेशर का प्रदर्शन किया.
पूजा बताती हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा छोटा सा मॉडल मुझे जापान तक ले जाएगा. वहां जाकर मुझे यह एहसास हुआ कि नवाचार का मकसद मानव जीवन को बेहतर बनाना है.”
पूजा का बचपन बेहद संघर्षपूर्ण रहा. उसके पिता पुत्तीलाल राजगीर का काम करते हैं और मां सुनीला देवी गृहिणी हैं. बड़ी बहन रुचि बीकॉम कर रही है, दूसरी बहन प्रयांशी नौवीं में पढ़ती है, जबकि उसके छोटे भाई पुष्पेंद्र और देवेंद्र क्रमशः आठवीं और चौथी कक्षा में पढ़ते हैं. घर में न बिजली का कनेक्शन था, न सरकारी योजनाओं का लाभ. पूजा और उसके भाई-बहन लालटेन और बैटरी वाले बल्ब की रोशनी में पढ़ाई करते थे.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के खाद्य और रसद राज्यमंत्री सतीश चंद्र शर्मा पूजा के घर पहुंचे. उन्होंने तुरंत बिजली का कनेक्शन दिलाने के लिए अधिकारियों को आदेश दिए. इसके अलावा, परिवार को सरकारी आवास देने और श्रम विभाग में पंजीकरण कराने की भी पहल की गई. मंत्री ने पूजा की आगे की पढ़ाई और कोचिंग के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया.
पूजा का धूल-रहित थ्रेशर अब पेटेंट की ओर बढ़ रहा है. नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) ने इस आविष्कार को पेटेंट कराने की जिम्मेदारी ली है. दो चरण पूरे हो चुके हैं और जल्द ही यह तकनीक पूजा के नाम होगी.
पूजा के लिए यह सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि जीवन बदलने वाला आविष्कार है. उसने अपने घर की गरीबी, कठिनाइयों और संसाधनों की कमी को अपने रास्ते की बाधा नहीं बनने दिया. एक छोटी सी सोच ने न केवल स्कूल के बच्चों की समस्या सुलझाई बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई.
जापान में अपने अनुभव के बारे में पूजा ने कहा, “मैंने वहां के वैज्ञानिकों से सीखा कि समस्याओं का समाधान सरल सोच से भी संभव है. मैंने नोबेल पुरस्कार विजेता और गणितज्ञों से मुलाकात की, जिसने मुझे और प्रेरित किया.”
आज पूजा का नाम न केवल बाराबंकी, बल्कि पूरे देश में गर्व से लिया जा रहा है. उसका सफर इस बात का प्रमाण है कि जब सपनों को दृढ़ संकल्प और मेहनत के साथ जोड़ा जाता है, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती.
पूजा का यह नवाचार हाई-टेक मशीनों से अलग है. इसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता या महंगी तकनीक का इस्तेमाल नहीं है, लेकिन यह किसानों की दशकों पुरानी समस्या को हल करता है. यह आविष्कार हमें याद दिलाता है कि सच्चा नवाचार वही है जो जमीनी हकीकत से जुड़ा हो और सीधे मानव जीवन को प्रभावित करे.
भविष्य में पूजा कृषि तकनीक के क्षेत्र में और काम करना चाहती है. उसका मानना है कि अगर ग्रामीण बच्चों को सही मार्गदर्शन और संसाधन मिलें, तो वे भी दुनिया बदल सकते हैं.आज बाराबंकी का यह छोटा सा गांव पूजा की वजह से चर्चा में है. उसकी मेहनत और लगन ने यह साबित कर दिया है कि सपनों की उड़ान मिट्टी की झोपड़ी से भी भरपूर ताकत के साथ भरी जा सकती है.