गुजरात में शरीयत पर संवाद: तलाक, खुला और बहुविवाह पर खुली बहस

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-09-2025
Dialogue on Sharia law in Gujarat: Open discussion on divorce, talaq, and polygamy
Dialogue on Sharia law in Gujarat: Open discussion on divorce, talaq, and polygamy

 

आवाज द वाॅयस/ अहमदाबाद 

 अकादमिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए मशहूर गुजरात ने हाल ही में एक ऐसी बौद्धिक हलचल देखी, जो आमतौर पर दुर्लभ होती है. यहां करीब चार सौ इस्लामिक विद्वानों, वकीलों और बुद्धिजीवियों ने दो दिवसीय कार्यशालाओं में उन संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर चर्चा की, जिनसे अक्सर लोग कतराते हैं.जैसे तलाक, बहुविवाह, गोद लेना और खुला. "तफ़हीम-ए-शरीयत" (शरीयत की समझ) नामक इन कार्यशालाओं का उद्देश्य न केवल इन विषयों पर समझ विकसित करना था, बल्कि उनके सामाजिक और धार्मिक पहलुओं को गहराई से विश्लेषित करना भी था.


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पहली कार्यशाला गोधरा के जामिया रहमानिया में आयोजित हुई, जिसकी अध्यक्षता मौलाना अब्दुल सत्तार भगलिया ने की. इस कार्यक्रम में मौलाना मुफ्ती उमर आबिदीन मदनी कासमी ने अपने मुख्य भाषण में "शरीयत को समझना: उद्देश्य और इतिहास" पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि शरीयत की सही समझ से व्यक्ति को ईमान और मन की शांति मिलती है.

इस दौरान, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की शरिया समझ समिति के आयोजक, मौलाना मुहम्मद असद नदवी ने "इस्लामी दृष्टिकोण से तलाक" पर एक बेबाक राय रखी.

उन्होंने तलाक को एक अप्रिय कृत्य तो माना, लेकिन उसे वैवाहिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग भी बताया. एक दिलचस्प उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, "जिस तरह शौचालय कोई अच्छी जगह नहीं है, पर उसके बिना घर अधूरा हो सकता है, उसी तरह तलाक भी एक अप्रिय प्रक्रिया है.

जिस तरह एक डॉक्टर को ऑपरेशन के लिए सुई लगाने का दर्दनाक काम करना पड़ता है, उसी तरह एक पूर्ण वैवाहिक व्यवस्था में रिश्ते को खत्म करने का प्रावधान होना आवश्यक है."

मुफ्ती उमर आबिदीन कासमी ने खुला पर एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दी, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि सामान्यतः पति की सहमति से ही खुला होता है, लेकिन इमाम मलिक के मतानुसार, अगर पति-पत्नी के बीच इतनी नफरत बढ़ जाए कि साथ रहना असंभव हो, तो न्यायाधीश को पति की सहमति के बिना भी खुला देने का अधिकार है. यह प्रथा भारत के दारुल क़ज़ा में आम है.


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पालनपुर की कार्यशाला: यूसीसी, गोद लेने और बहुविवाह पर मंथन

दूसरी महत्वपूर्ण कार्यशाला पालनपुर के जामिया नाज़िरिया काकुसी में हुई, जिसकी अध्यक्षता मौलाना अब्दुल कुद्दुस नदवी ने की. यहां भी चार सौ से अधिक विद्वानों और वकीलों ने भाग लिया.

समान नागरिक संहिता (UCC) पर बोलते हुए, मौलाना मुहम्मद असद नदवी ने इसके पक्ष में दिए गए तर्कों को चुनौती दी. उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 (जिसमें यूसीसी का उल्लेख है) कोई स्थायी कानून नहीं है, जबकि अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार) स्थायी कानून हैं.

उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए. उन्होंने जोर दिया कि यूसीसी भारत की धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी पहचान के खिलाफ है और यह सभी धर्मों के लिए समस्याएं खड़ी करेगा.

मौलाना फुरकान पालनपुरी ने "गोद लेने और इस्लामी परिप्रेक्ष्य" पर एक व्याख्यान दिया. उन्होंने साफ किया कि गोद लिया गया बच्चा जैविक संतान नहीं होता और उसे विरासत का अधिकार भी नहीं मिलता.

कार्यशाला का समापन मौलाना मुफ्ती उमर आबिदीन कासमी के "बहुविवाह का नैतिक पहलू" पर एक उपयोगी चर्चा के साथ हुआ. उन्होंने कहा कि बहुविवाह का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नैतिकता और पवित्रता है.

उन्होंने तर्क दिया कि जब भी कानूनी बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाया गया है, अवैध संबंध हमेशा अपना रास्ता खोज लेते हैं. उनके अनुसार, शुद्धता और मासूमियत मानव समाज का मूल सार हैं, और बहुविवाह इस पवित्रता की रक्षा का एक बड़ा साधन है.

ये दोनों कार्यशालाएं यह दर्शाती हैं कि गुजरात की धरती आज भी बौद्धिक और धार्मिक संवाद का एक सशक्त केंद्र है, जहां मुस्लिम समुदाय के विद्वान उन मुद्दों पर गहराई से विचार-विमर्श कर रहे हैं जो समाज में अक्सर बहस का विषय बने रहते हैं.