पूर्वोत्तर में नन्हें दिलों के लिए नई उम्मीद का नाम: डॉ. नईम

Story by  रेशमा | Published by  [email protected] | Date 26-09-2025
"A new hope for little hearts in the Northeast": Dr. Naeem

 

डॉ. रेशमा यासिर

बंद होती धड़कनो में जान फूंकने का हुनर ​​सबको नहीं आता. कई- बार बड़ी-बड़ी डिग्रियां भी काम नहीं आतीं, कुछ चीजें इंसान के हाथों से निकल ही जाती हैं.जिनमें मौत पर उसका कोई इख्तियार नहीं होता.डॉक्टर का पेशा कोई आम पेशा नहीं है. वह सीधे इंसान के जिंदगी से जुड़ा होता है. जब बात बच्चों की आती है तो मामला इमोशन से भी जुड़ जाता है. मासूम बच्चे हर घर के बगिया के फूल होते हैं. जिनका मुर्झा जाना मानो खुशनुमा बहार में अचानक काली घटा सा छा जाना होता है. जो दिलो को ग़मगीन कर देता है. दिल ही तो है जिसने दुनिया तमाम रिश्तों को एक डोर में बांध कर रखा है. वह अगर किसी बच्चे का दिल हो तो फिर क्या कहने.

इस आर्टिकल का मकसद है बच्चो में जन्मजात हृदय रोग के बारे में जागरूक करना और सही समय पर इलाज कराना. इसका इलाज करने वाले एक मसीहाई डॉक्टर की कड़ी मेहनत और डेडिकेशन को सामने लाना.

जन्मजात हृदय दोष (सीएचडी) जागरूकता 2025 की थीम "हमारे दिलों को याद रखें" अध्ययन के मुताबिक, जन्मजात हृदय दोष हर 1000 में से 8 बच्चों को प्रभावित करते हैं. जन्मजात हृदय दोष एक घातक बीमारी है जो हर साल हजारों लोगों की जान लेती है.हृदय के खून को पंप करने की क्षमता को प्रभावित करने, विकास संबंधी देरी से लेकर दिल की विफलता, अतालता और स्ट्रोक जैसे लंबे समय तक स्वास्थ्य को होने वाले खतरों तक, जन्मजात हृदय दोष कई तरह की चिकित्सा समस्याओं का कारण बन सकते हैं. भारत में हर साल लगभग 2 लाख बच्चे जन्मजात हृदय रोग के साथ पैदा होते हैं.इनमें से लगभग पांचवां हिस्सा गंभीर हृदय रोग से पीड़ित होता है. जिनके इलाज में डॉ. नईम राजा और उनके जैसे हजारों  डॉक्टर्स लगे हुए हैं भारत के अलग-अलग राज्यों में.

डॉ. नईम राजा एक मिसाल है जिसके हाथों से ना जाने कितने मासूम दिलों की सर्जरी होती रहती है.कमोबेश 500 से ज्यादा बच्चों की कामयाब सर्जरी कर चुके हैं. जो गंभीर रूप से हृदय रोग के शिकार थे. हाँ आपको एक पेशा लगेगा. लेकिन अंजान व लाचार माता-पिता बच्चों की दिल की धड़कन में जान फूंकने वाला को फरिश्ताबतलाते हैं डॉ. नईम को . मैं इस विज्ञान का फ़रिश्ता कहुंगी. क्योंकि विज्ञान और ज्ञान का बहुत अध्ययन करने के बाद यह कौशल विकसित हुआ है जिसे लोगो को जान बचाई जा सके. डॉ. नईम कमोबेश रोज़ एक सर्जरी करते हैं एक बच्चे के दिल का. दिल का मरीज़ 4,5,6,7 साल का बच्चा हो सकता है. जिस बच्चे की मासूमियत अभी ख़तम नहीं हुई उसे दिल के दर्द दो चार होना पड़ता है. सांसे कहीं थम ना जाए उसके डर को झेलना पड़ता है. ऐसे बच्चों पर अपनी जिंदगी लगाने वाले डॉक्टरों की कहानियों को समाज के सामने लाना एक बड़ी जिम्मेदारी है.

डॉ. नईम राजा Senior Consultant, Dept Of Pediatric Cardiothoracic And Vascular Surgery, Heath City Hospital, गुवाहाटी में प्रैक्टिस करते हैं.डॉ. नईम ने अपनी पढाई गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज से MBBS और MS Surgery की. MCh-CTVS(GIPMER-New Delhi), Fellow-Pediatric CTVS(Australia) से पूरी की.यह पूर्व एसोसिएट कंसल्टेंट, बाल चिकित्सा सीटीवीएस विभाग, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली एवं बाल चिकित्सा कार्डियोथोरेसिक सर्जरी में फेलोशिप (वेस्टमीड स्थित चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल, ऑस्ट्रेलिया) में अपनी सेवा दे चुके हैं.

असम जन्मभूमि है और जन्मभूमि का हक अदा करने के लिए वह ऑस्ट्रेलिया से खींचकर गुवाहाटी चले आए .और सिटी हार्ट हॉस्पिटल में अपनी सेवा दे रहे हैं .असम और नॉर्थ ईस्ट में अच्छी मेडिकल फैसेलिटीज होना अभी भी एक चैलेंज है. इस चैलेंज को समझते हुए वह अपनी सेवा स्टेट को देने का निर्णय किया. और वह ऑस्ट्रेलिया से वापस आ गए. सिटी हार्ट हॉस्पिटल में असम के बच्चों और पड़ोसी राज्य के बच्चों के हार्ट से रिलेटेड प्रॉब्लम्स को डील करते हैं और अपनी सेवाएं देते हैं यह अपने राज्य के लिए समर्पण हैं. इनके जैसा नौजवान ही भारत का भविष्य स्वस्थ बना सकता है.

वैसे,भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें बाल हृदय रोग से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए योजनाएं चला रही हैं. उदाहरण के लिए, बिहार सरकार ने "बिहार बाल हृदय योजना" शुरू की है, जिसके तहत 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को निशुल्क हृदय रोग का इलाज प्रदान किया जाता है. बाल हृदय रोग के इलाज में सर्जरी, दवाएं और अन्य चिकित्सा प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं. समय पर इलाज और देखभाल से बच्चों के जीवन को बचाया जा सकता है और उनकी गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है.

पहाड़ी और रेगिस्तान इलाक़ो के लिए गंभीर बीमारी का इलाज़ करना लगभग नामुमकिन है, तुरंत इलाज़ मिलना मुश्किल है, जान जाने का ख़तरा बहुत अधिक रहता है. सरकारी सेवाएँ भी आसानी से नहीं पहुँचती है.  उत्तर पूर्व पहाड़ियाँ ,झरोखे , नदियों, हरियाली से क़ुदरत ने इसे सजा रखा है. इसकी वजह से वहां सीधी सड़क या परिवहन में काफी परेशानी हो जाती है. बरसात के दिनों में खतरा हर साल मंडराता रहता है. इसीलिए ज्यादातर लोग गांव देहात ट्राइबल्स इलाकों से निकलकर यहां बड़ी संख्या में हृदय रोग वाले बच्चे को लेकर उपचार के लिए गुवाहाटी का रुख मोड़ते हैं. जिनमें आस-पास के राज्य जैसे मेघालय ,सिक्किम, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश  जिनके मरीज़ डायरेक्ट गुवाहाटी आकर इलाज करवाते हैं क्योंकि यहां सुविधाएं हैं.

वही डॉक्टर नईम राजा चर्चा में जब आए जब एक ऐसी सर्जरी की जो बेहद मुश्किल एवं अत्यधिक जटिल प्रक्रिया रहा. यह पूर्वोत्तर क्षेत्र का पहला ‘डबल स्विच ऑपरेशन, एक दुर्लभ हृदय दोष को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया, गुवाहाटी में 4 साल के बच्चे पर की गई.यह सर्जरी जन्मजात हृदय शल्य चिकित्सक डॉ. नईम राजा द्वारा प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक डॉ. के.एस. अय्यर के मार्गदर्शन में, हेल्थसिटी अस्पताल में बाल हृदय रोग विशेषज्ञों, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट, बाल हृदय इंटेंसिविस्ट, परफ्यूज़निस्ट, नर्सों और तकनीशियनों की एक कुशल टीम के साथ सफलतापूर्वक की गई. यह 6 घंटे लंबी सर्जरी एक निजी अस्पताल में की गई, जो इस क्षेत्र में बाल चिकित्सा हृदय देखभाल में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है. इस अभ्यास का विवरण साझा करते हुए, राजा ने बताया कि मरीज़ को जन्मजात रूप से सही की गई महाधमनियों के स्थानांतरण (सीसीटीजीए) की बीमारी का पता चला था, जिसमें वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष (वीएसडी या हृदय में छेद) और एट्रेटिक पल्मोनरी आर्टरी (फेफड़ों की महाधमनी का पूर्ण अभाव) मौजूद था.

उन्होंने आगे कहा, "यह एक दुर्लभ जन्मजात हृदय दोष है जिसमें हृदय के कक्ष और महाधमनियाँ असामान्य रूप से स्थित होती हैं. बच्चे को हमारे पास उसके होंठों और जीभ के नीले रंग के धब्बे के साथ लाया गया था और वह जल्दी थक जाता था.

डॉक्टर ने कहा कि इस सर्जरी की सफलता इस क्षेत्र के जटिल जन्मजात हृदय रोगों से पीड़ित बच्चों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है, क्योंकि पहले उन्हें ऐसी उन्नत प्रक्रियाओं के लिए पूर्वोत्तर से बाहर जाना पड़ता था. राजा ने कहा कि 'डबल स्विच ऑपरेशन', जिसमें आलिंद स्विच और वीएसडी को बंद करने के साथ-साथ एक कृत्रिम नलिका (वाल्व वाली ट्यूब) का उपयोग करके फुफ्फुसीय धमनी का पुनर्निर्माण शामिल है, सामान्य रक्त परिसंचरण को बहाल करने और हृदय गति रुकने को रोकने का एकमात्र विकल्प था.

दिल की सेहत पर बात करना  जरूरी है, इसे ऐसे भी समझ लीजिए कि मुंबई में पिछले साल 6 महीनों में कोरोना से उतनी मौत नहीं हुईं, जितनी हार्ट अटैक से हो गईं. एक आरटीआई से मिली जानकारी में सामने आया है कि मुंबई में पिछले साल जनवरी से जून के बीच कोरोना से 10 हजार 289 मौतें हुई थीं, जबकि NCRB, सरकारी डेटा से पता चलता है कि भारत में हार्ट अटैक से होने वाली मौतें 2019 में 28,005 मौतें, 2020 में 28, 579 मौतें, 2022 में 28413 मौतें, 2022 में 32,457 मौतें (12.5%) हुईं. हालत बेहद गंभीर है वह हार्ट सर्जन जो दूसरे की जान बचाता था चेन्नई के डॉ रॉय 39 साल के, डॉ राउंड लेते हुए अचानक गिर पड़ा, 100 फ़ीसद Heart Blockage था. जिसकी वजह से उनकी अचानक जान चली गई. इसने कहानी का सिरा ही पलट दिया, आख़िर सुरक्षित हैं?

तो, आप अपना और अपने परिवार,बच्चों का दिल का ख्याल रखें, ये साइलेंट किलर कब कहा किसको निगल जाए पता नहीं चलता. सही टाइम टेस्ट कराते रहना अपने दिल का ध्यान रखना समझदारी. इसपे सरकार को प्राइम फोकस करना होगा. और चिकित्सा विभाग को अग्रिम सुविधाएं देना जरूरी है.

डॉ. रेशमा यासिर, सहायक प्रोफेसर और लेखिका, यूएसटीएम