Dussehra 2025: A glimpse of Ramlila and Vijayadashami in Indian cinema
अर्सला खान/नई दिल्ली
दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, पूरे देश में अच्छाई पर बुराई की जीत और 10 दिनों तक चलने वाली रामलीला के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. भारतीय सिनेमा ने इस पर्व और उसकी पृष्ठभूमि को कई बार पर्दे पर उतारा है.
“दशहरा” (2018)
नील नितिन मुकेश और टीना देसाई अभिनीत इस राजनीतिक थ्रिलर में दशहरा पर्व का प्रतीकात्मक अर्थ बुराई पर अच्छाई की जीत को कहानी की पृष्ठभूमि बनाया गया है. फ़िल्म में एक घोटाले को उजागर करने वाला पुलिस अधिकारी रावण जैसी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ता है.
“रावण” (2010)
मणिरत्नम की फ़िल्म में रामायण की कथा को आधुनिक समाज के नैतिक द्वंद्व के रूप में दिखाया गया है. इसमें अच्छाई और बुराई के बीच की रेखा को धुंधला करते हुए दशहरा जैसे पर्व की सोच को नया अर्थ दिया गया है.
“रावणाहटी” (Raavanahatti) (2023, कन्नड़)
यह फ़िल्म एक रामलीला मंडली की कहानी है जो गांव-गांव घूमकर रामायण का मंचन करती है. कहानी के माध्यम से दशहरा और उसके 10 दिनों के सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को गहराई से उकेरा गया है.
“रामलीला” (2013)
संजय लीला भंसाली की इस फ़िल्म में नवरात्रि और गरबा के साथ रामलीला के दृश्य भी जीवंत किए गए हैं. फ़िल्म में प्रेम कहानी के बीच रामलीला के मंचन और रावण-दहन के दृश्य 10 दिनों की रौनक को सीधे दर्शाते हैं.
“जय संतोषी माँ” (1975)
भले ही यह फ़िल्म देवी संतोषी माँ की भक्ति पर आधारित है, लेकिन इसमें नवरात्रि और विजयादशमी की रस्मों के दृश्य भी हैं, जो भक्तिभाव के साथ दस दिनों की साधना का अहसास कराते हैं.
“दशहरा” (2023, तेलुगु)
नानी और कीर्ति सुरेश की इस फ़िल्म का नाम ही दशहरा है. यह दशहरा के मौके पर रिलीज़ हुई और समाज में व्याप्त बुराइयों के ख़िलाफ़ संघर्ष की कहानी कहती है. इसमें पर्व के प्रतीकात्मक महत्व को एक्शन और ड्रामा के साथ पिरोया गया है.
इन फिल्मों के ज़रिए दशहरा, नवरात्र और विजयादशमी के धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व को अलग-अलग रूपों में पेश किया गया है, जिससे दर्शक सिर्फ मनोरंजन ही नहीं बल्कि त्योहार की गहराई भी महसूस करते हैं.