ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
गुजरात के जामनगर में इस नवरात्रि एक बार फिर देखने को मिला गरबे का अद्भुत और साहसिक स्वरूप – "मशाल गरबा"। जलते अंगारों और मशालों के बीच नंगे पैर गरबा करते हुए कलाकारों ने न सिर्फ अपनी आस्था और परंपरा का प्रदर्शन किया, बल्कि बहादुरी और एकता की भी मिसाल पेश की। 73 साल पुरानी इस परंपरा में इस बार मुस्लिम और गैर-हिंदू कलाकारों की भागीदारी ने भी लोगों का ध्यान खींचा, जो गुजरात की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक सौहार्द को दर्शाता है। सोशल मीडिया पर इस गरबा का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, और देशभर से लोग इस अनोखे आयोजन की सराहना कर रहे हैं।
नवरात्र के मौके पर गुजरात के गरबा डांस दुनिया भर में मशहूर है। यह नृत्य एक जीवंत और अनूठी सांस्कृतिक छटा बिखेरता है। लेकिन सोशल मीडिया पर इन दिनों मशाल रास लोगों का ध्यान खींच रही है। दरअसल इस डांस में जलते अंगारो पर गरबा करना होता है। गुजरात में नवरात्रि के दौरान जहां एक ओर पूरे राज्य में गरबे की धूम मची हुई है, वहीं जामनगर के रणजीत नगर क्षेत्र में आयोजित हुआ 'मशाल गरबा' लोगों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। यह कोई आम गरबा नहीं, बल्कि एक 73 साल पुरानी परंपरा है, जिसमें नंगे पैर जलते अंगारों पर गरबा किया जाता है और कलाकार जलती मशालों तथा तलवारों के साथ रास करते हैं।
अनोखी परंपरा, अद्भुत प्रदर्शन
हर साल की तरह इस बार भी पटेल युवा मंडल द्वारा सरदार पटेल चौक में आयोजित गरबा महोत्सव में गुरुवार की रात पांचवीं नवरात्रि पर 'मशाल रास' का आयोजन किया गया। यह दृश्य न केवल रोमांचकारी था बल्कि श्रद्धा और साहस का अनोखा संगम भी। जैसे ही कलाकार जलते अंगारों के बीच उतरे और हाथों में मशाल व भारी तलवारें लेकर गरबा शुरू किया, वहां मौजूद हज़ारों दर्शकों की सांसें थम गईं।
इस प्रदर्शन के लिए कलाकारों को लंबे समय तक कड़ी तैयारी और अभ्यास करना होता है। इस गरबा की खास बात यह है कि इसमें कलाकार बिना किसी सुरक्षा उपाय जैसे लोशन या कवच के, नंगे पांव जलते अंगारों पर नृत्य करते हैं। रास के पहले कपास के बीजों को जलाया जाता है, जिससे अंगारे तैयार किए जाते हैं। उसके बाद मशालों की रोशनी में युवाओं द्वारा गरबा किया जाता है।
यह परंपरा हर साल नवरात्रि के दौरान देखने को मिलती है और दूर-दराज के लोग इसे देखने आते हैं। इस साहसिक और भव्य प्रदर्शन के पीछे है लगातार दो महीने की कठिन प्रैक्टिस। प्रतिभागी विशेष ट्रेनिंग लेते हैं जिससे वे न केवल आग की तपिश को सह सकें, बल्कि संतुलन और लय के साथ गरबा भी कर सकें। यह रास केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक तप और नवचेतना का प्रतीक है।
इस अनोखे गरबा का वीडियो इंटरनेट और सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है। Instagram और DD India जैसे मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इसे लाखों लोग देख चुके हैं। लोग इसे "गरबा ऑन फायर" या "Mashal Ras" के नाम से पहचान रहे हैं।
इस साल गरबा में मुस्लिम और गैर-हिंदू कलाकारों की भागीदारी को लेकर भी चर्चा हो रही है। कई लोगों ने इसे गुजरात की गंगा-जमुनी तहज़ीब और समावेशी संस्कृति का उदाहरण बताया।
जामनगर का मशाल गरबा सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि एक संस्कृति, श्रद्धा और साहस की जीवंत मिसाल है। यह परंपरा हर साल नवरात्रि में हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है। सात दशकों से चली आ रही यह परंपरा गुजरात की लोक-संस्कृति को जीवंत रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कई मीडिया आउटलेट्स ने इस अनोखे नृत्य प्रदर्शन को कवर किया है, जैसे DD India और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे Instagram पर इसके बारे में जानकारी और वीडियो उपलब्ध हैं।