नीलगिरी की बेटी : जिसने सपनों को सच कर दिखाया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-07-2025
A Degree of Hope: Higher education no longer a distant dream for this youth from Nilgiris
A Degree of Hope: Higher education no longer a distant dream for this youth from Nilgiris

 

आवाज द वाॅयस /चेन्नई

जब सूरज की पहली किरणें नीलगिरी की हरी-भरी पहाड़ियों पर पड़ीं, तो चाय के दाग लगे हाथ पहले से ही मेहनत में जुटे थे. उस बीच कुछ आँखें उन अजनबी चेहरों को निहार रही थीं, जो मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के छात्र थे और फील्ड ट्रिप पर इस खूबसूरत इलाके में आए थे. इन जिज्ञासु निगाहों में एक युवती की विशेष रुचि देखी गई, जिसकी आँखों में सपनों की चमक थी — सपने जो उसके छोटे से आदिवासी गांव की सीमाओं को लांघते हुए कहीं दूर तक फैल रहे थे.

काटचनाकोली के 120 कुरुंबा परिवारों के लिए उच्च शिक्षा एक दूर का सपना था, क्योंकि वे रोज़मर्रा की जिंदगी में भरण-पोषण के लिए संघर्ष कर रहे थे. चाय के बागानों में कड़ी मेहनत करने वाले अधिकांश लोग गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती थी. लेकिन सीता, जो उसी गांव की निवासी है, ने कभी अपने सपनों को अधर में नहीं छोड़ा.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस  की एक रिपोर्ट के अनुसार,23 साल की उम्र में सीता वह पहली व्यक्ति बनीं जिन्होंने अपने गांव से परास्नातक की डिग्री हासिल की. मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से सोशल वर्क में मास्टर्स की डिग्री पूरी करना उनके लिए सिर्फ एक व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि पूरे काटचनाकोली समुदाय के लिए गौरव की बात थी. सीता बताती हैं कि उनका गांव अक्सर मानव और वन्यजीवों के संघर्ष का सामना करता है, और सबसे नजदीकी सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय 12 किलोमीटर दूर देवरशोला में है.

उन्होंने कहा, “हमारे गांव में प्राथमिक शिक्षा के लिए पंचायत स्कूल है, लेकिन आठवीं कक्षा के बाद हमें दूर देवरशोला जाना पड़ता है. मुझे एक NGO की मदद से मुफ्त हॉस्टल मिला, जिसने पढ़ाई के लिए आने-जाने की मुश्किल कम कर दी.”

सीता की जिंदगी आसान नहीं थी. उनकी माँ चाय बागानों में दैनिक मजदूर के रूप में काम करती हैं और परिवार की एकमात्र कमाने वाली हैं. उनके पिता टीबी से पीड़ित हैं, और कई बार परिवार के पास पर्याप्त भोजन भी नहीं होता था। छुट्टियों में वापस आकर सीता खुद भी चाय बागानों में मजदूरी करके परिवार की मदद करती थीं.

कक्षा 12 के बाद उन्होंने गुदालूर के सरकारी कला और विज्ञान कॉलेज में सोशल वर्क में बीएसडब्ल्यू की पढ़ाई शुरू की. उन्होंने बताया, “जब मैंने माता-पिता को कॉलेज भेजने के लिए मना लिया, तब अधिकांश कोर्स भर चुके थे, केवल सोशल वर्क ही बचा था।” इसी दौरान मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के छात्रों की फील्डवर्क टीम उनके गांव आई, जिसने उन्हें MCC के बारे में जानने का अवसर दिया.

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सीता ने साझा किया, “मद्रास जाकर मास्टर डिग्री करना मेरे माता-पिता के लिए आर्थिक और मानसिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण था. लेकिन मेरी दृढ़ इच्छा ने उनके डर को हराया.” चेन्नई पहुंचकर उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट-टाइम काम भी किया ताकि अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकें.

MCC के प्राचार्य पॉल विल्सन कहते हैं, “सीता ने हम सभी को प्रभावित किया. हमारे कॉलेज में आदिवासी और विशेष छात्रों के लिए एक विशेष सेल है, जो उन्हें उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है. सीता की कहानी इस बात का प्रमाण है कि जब हम सचमुच कुछ चाहते हैं, तो पूरी कायनात हमारी मदद करती है.”

आज सीता अपने गांव लौटकर बच्चों के साथ काम कर रही हैं और माता-पिता को शिक्षा की अहमियत समझाने में जुटी हैं.वे बताती, “अपने प्रोजेक्ट के जरिए मैं अपने समुदाय में शिक्षा का महत्व बताती हूं. मैं उन्हें यह दिखाना चाहती हूं कि बड़े सपने देखना हर बच्चे के लिए संभव है, भले ही वह किसी छोटे से गांव से हो,”  .

 उनके लिए यह परास्नातक डिग्री सिर्फ एक शैक्षिक उपलब्धि नहीं, बल्कि उनके गांव के लिए बेहतर भविष्य की नई शुरुआत है.