हिमाचल प्रदेश में बेरोजगार युवा मधुमक्खी पालन से बदल रहे अपना जीवन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 02-06-2025
Unemployed youths in Himachal changing their lives with beekeeping
Unemployed youths in Himachal changing their lives with beekeeping

 

हमीरपुर/ऊना, हिमाचल प्रदेश
 
मात्र एक लाख रुपये से मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू करने वाले ऊना के अनुभव सूद अब 30 लाख रुपये की वार्षिक आय के साथ एक गौरवशाली व्यवसायी बन गए हैं. अधिकारियों ने सोमवार को बताया कि उनकी कहानी हिमाचल प्रदेश के कई बेरोजगार युवकों की कहानी से मिलती-जुलती है, जो मुख्यमंत्री मधु विकास योजना के तहत मधुमक्खी पालन को अपना रहे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं. यह योजना बेरोजगारों और खेती तथा फलों की खेती में लगे लोगों दोनों के लिए फायदेमंद साबित हुई है, क्योंकि यह परागण में सहायता करने के साथ-साथ अतिरिक्त आय भी पैदा करती है. 
 
अंबोटा गांव के रहने वाले अनुभव 10 लोगों के लिए भी जिम्मेदार हैं, जिन्हें वे सीधे रोजगार देते हैं. खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी अपनी मां निशा सूद से प्रेरित होकर अनुभव ने नौनी विश्वविद्यालय, सोलन में एक महीने का प्रशिक्षण लिया, उसके बाद शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय, कटरा में एक सप्ताह का प्रशिक्षण लिया और 25 बक्सों के साथ मधुमक्खी पालन शुरू किया. बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत केनरा बैंक से 10 लाख रुपये का ऋण लेकर अपने कारोबार का विस्तार किया और ब्लैक फॉरेस्ट, ब्लैक डायमंड, मल्टी फ्लोरा, केसर, अकेशिया जैसी किस्मों की पेशकश करते हुए अपना उत्पाद पहाड़ी शहद बाजार में उतारा, जिसकी कीमत किस्म के आधार पर 500 से 1200 रुपये प्रति किलोग्राम है. 
 
वर्तमान में उनके पास 300 मधुमक्खी के बक्से हैं और वे एक वर्ष में लगभग 10,000 किलोग्राम शहद का उत्पादन करते हैं. अनुभव कहते हैं कि वे विभिन्न मौसमों में शहद उत्पादन के लिए हिमाचल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में मधुमक्खियों को ले जाते हैं और इस तकनीक से वे उच्च गुणवत्ता और विविध प्रकार के शहद का उत्पादन कर रहे हैं. उत्पाद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा प्रमाणित हैं. उप निदेशक बागवानी ऊना के के भारद्वाज ने कहा कि योजना के तहत मधुमक्खी पालन के लिए 1.60 लाख रुपये प्रदान किए जाते हैं, जिसमें मधुमक्खी प्रजातियों के 50 बक्से शामिल हैं, इसके अलावा मधुमक्खियों के परिवहन के लिए 10,000 रुपये की वित्तीय सहायता भी दी जाती है. उन्होंने बताया कि विभाग मधुमक्खी पालन के उपकरण खरीदने पर 80 प्रतिशत सब्सिडी या 16,000 रुपये की वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है.
 
जिला आयुर्वेदिक विभाग के मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. अशोक चौधरी ने बताया कि मधुमक्खी पालन व्यवसाय स्वास्थ्य लाभ के लिहाज से भी फायदेमंद है, क्योंकि शहद में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-एलर्जिक तत्व होते हैं और इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.
 
उन्होंने यह भी बताया कि कोविड के बाद के मरीजों के लिए शहद विशेष रूप से फायदेमंद है.
 
कुल्लू जिले के नेरी गांव के निवासी दविंदर ठाकुर की कहानी भी अनुभव जैसी ही है.
 
उन्होंने पांच साल पहले मधुमक्खी पालन शुरू किया था और अब वे भी अच्छी कमाई कर रहे हैं. "मधुमक्खी पालन के दोहरे लाभ हैं. यह सेब के बागों में उचित परागण सुनिश्चित करके मदद करता है, जो फलों के उत्पादन के लिए आवश्यक है, उन्होंने कहा कि उनकी सेब की फसल में भी 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
 
ठाकुर ने पहाड़ी मधुमक्खियों के दो बक्सों से शुरुआत की, जो बर्फीली परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती हैं और अब, उनके पास 60 बक्से हैं जो सालाना 200 किलोग्राम शहद का उत्पादन करते हैं, जो 2000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता है. एक बक्से में 20 से 25000 मधुमक्खियां होती हैं.
 
हमीरपुर के ग्वालपत्थर गांव के गोपाल कपूर (84) एक और सफलता की कहानी है. हालांकि वे बेरोजगार नहीं थे, लेकिन वे आर्थिक रूप से बहुत तंगी में थे, जिसने उन्हें मधुमक्खी पालन की ओर मोड़ दिया.
 
अब सालाना 3 से 4 लाख रुपये कमा रहे गोपाल ने पांच बक्सों से शुरुआत की और वर्तमान में उनके पास इटालियन और इंडिका प्रजाति के 50 बक्से हैं.
 
ये सभी लोग अन्य किसानों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं.
 
यह योजना युवाओं और अन्य लोगों को भी स्वरोजगार की स्वतंत्रता देती है, और मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण ऊना के उपायुक्त जतिन लाल ने कहा कि मुफ्त सेवा एक और बोनस है.