एक अफ़सर, 550 सपने और बेमिसाल समर्पण — ये हैं जमील अख्तर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 30-07-2025
Jameel Akhtar – A Bachelor for a Cause
Jameel Akhtar – A Bachelor for a Cause

 

राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम के उप-महाप्रबंधक जमील अख्तर ने बिहार के वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है. उनकी प्रतिबद्धता इतनी गहरी है कि उन्होंने अविवाहित रहने का फैसला किया है, यह मानते हुए कि शादी उनके मिशन में बाधा बन सकती है. यहां प्रस्तुत है मलिक असगर हाशमी की जमील अख्तर पर एक विस्तृत रिपोर्ट.    

अख्तर ने आवाज़-द वॉयस को बताया, "अगर मैं शादी कर लेता हूँ, तो 550 बच्चों की शिक्षा और देखभाल का प्रबंधन करना मुश्किल हो जाएगा." एनटीपीसी में एक वरिष्ठ पद पर रहते हुए, उनका दिल एक बड़े उद्देश्य के लिए धड़कता है—शिक्षा के माध्यम से अगली पीढ़ी का उत्थान.

अख्तर एक सरकारी अधिकारी से कहीं बढ़कर हैं; वे एक शांत योद्धा हैं जिनके निस्वार्थ प्रयासों ने सैकड़ों हाशिए के बच्चों के लिए अवसरों के द्वार खोले हैं. वे एक दशक से इस उद्देश्य के लिए काम कर रहे हैं.

वे कहते हैं, "लोग अक्सर पहचान पाने की दौड़ में अपने उद्देश्य को भूल जाते हैं." अख्तर सुर्खियों से दूर, चुपचाप काम करना पसंद करते हैं, फिर भी उनके कार्यों का प्रभाव उनके समुदाय में गहराई से महसूस किया जाता है.

एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले अख्तर का दृढ़ विश्वास है कि शिक्षा में जीवन बदलने की शक्ति है. वह नबीनगर स्थित एनटीपीसी प्लांट में अपनी ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ डेहरी-ऑन-सोन में वंचित बच्चों के लिए एक स्कूल भी चलाते हैं, जहाँ उन्होंने अपने शुरुआती साल बिताए थे.

उनका नोबल पब्लिक स्कूल आशा और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बन गया है, जहाँ हिंदू, मुस्लिम और ईसाई परिवारों के बच्चे साथ-साथ पढ़ते हैं और समान अवसर और सम्मान प्राप्त करते हैं.

कानपुर स्थित हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में स्नातक, अख्तर 2001में एनटीपीसी में शामिल हुए और उनकी पहली पोस्टिंग दिल्ली में हुई. हालाँकि, 2014 में नबीनगर में उनका स्थानांतरण उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. 2015में, उन्होंने अपने लंबे समय से संजोए सपने को साकार करने का फैसला किया—अपने गृहनगर में वंचित बच्चों के लिए एक स्कूल खोलना.

बिना देर किए, उन्होंने शिक्षकों की नियुक्ति की और एक किराए के भवन में नर्सरी से कक्षा 7तक की कक्षाएं शुरू कीं. स्कूल में किताबों और शिक्षण सामग्री सहित पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा दी जाती थी, जिससे छात्र जल्दी ही आकर्षित होने लगे. आज, 550से ज़्यादा बच्चे नामांकित हैं और सभी बिना किसी खर्च के पढ़ाई कर रहे हैं. अख्तर कहते हैं, "मैं सारा खर्च अपनी जेब से उठाता हूँ." हमारे 14शिक्षक हैं जिनका वेतन मैं देता हूँ. साथ ही, सभी संचालन लागतें भी मैं ही वहन करता हूँ.

क्या इससे उन पर आर्थिक दबाव पड़ता है? अख्तर एक सौम्य मुस्कान के साथ जवाब देते हैं: "मैं अविवाहित हूँ, और मेरा परिवार अच्छी तरह से व्यवस्थित है. मुझे किसी चीज़ की कमी नहीं है."

उनके दिवंगत पिता, महबूब अख्तर, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में एक जूनियर इंजीनियर थे. उनकी माँ और चार भाई उनके इस मिशन में पूरा सहयोग करते हैं. हालाँकि उनके भाई—जो सभी अच्छी तरह से स्थापित हैं—कभी-कभार मदद करते हैं, जमील शायद ही कभी चंदा मांगते हैं. इसके बजाय, वह बचत के व्यावहारिक तरीके खोजते हैं, जैसे बिचौलियों से बचने के लिए सीधे प्रकाशकों से किताबें खरीदना.

अपनी व्यस्त नौकरी के बावजूद, अख्तर स्कूल के हर पहलू में व्यक्तिगत रूप से शामिल हैं. वे कहते हैं, "हमारे पास योग्य शिक्षक हैं, लेकिन मैं व्यक्तिगत रूप से हर बच्चे की प्रगति पर नज़र रखता हूँ. मैं चाहता हूँ कि कोई भी पीछे न छूटे." स्कूल समग्र विकास पर ज़ोर देता है, न केवल पढ़ाई पर बल्कि चरित्र निर्माण पर भी.

अख्तर को अपने स्कूल द्वारा पोषित सांप्रदायिक एकता पर बहुत गर्व है. वे कहते हैं, "हिंदू, मुस्लिम और ईसाई बच्चों को एक साथ पढ़ते देखना मुझे गहरा संतोष देता है. यही हमारे क्षेत्र की सच्ची गंगा-जमुनी संस्कृति है." स्थानीय लोग उनके प्रयासों की प्रशंसा करते हैं. वार्ड 36की पूर्व पार्षद गिरिजा देवी स्कूल को "गरीब बच्चों के लिए वरदान" कहती हैं, जो बिना किसी आर्थिक बोझ के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता है.

शिक्षिका आरती कुमारी और तबस्सुम बताती हैं कि कैसे स्कूल न केवल अच्छी पढ़ाई प्रदान करता है, बल्कि छात्रों को दिशा और आशा भी प्रदान करता है.

अख्तर सरकारी स्कूलों की सीमाओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं. वे कहते हैं, "शिक्षा की गुणवत्ता एक चिंता का विषय बनी हुई है. हमारा स्कूल उन अभिभावकों के लिए आशा की किरण है जो अच्छी शिक्षा को महत्व देते हैं, लेकिन निजी संस्थानों का खर्च वहन नहीं कर सकते."

अपने अथक परिश्रम से, जमील अख्तर ने 550से ज़्यादा बच्चों की ज़िंदगी बदल दी है और साबित किया है कि एक व्यक्ति का संकल्प बदलाव की चिंगारी जला सकता है.

जब उनसे दोबारा पूछा गया कि उन्होंने अविवाहित रहने का फ़ैसला क्यों किया, तो उनका जवाब सरल लेकिन गहरा था: "अगर मैंने शादी कर ली होती, तो मैं 550 बच्चों की शिक्षा और उनकी भलाई का ध्यान नहीं रख पाता." जमील अख्तर की अटूट प्रतिबद्धता और शांत त्याग वाकई अनोखा है.