कश्मीर की पारसा मुफ्ती को मिली प्रतिष्ठित स्टीफन श्वार्जमैन फैलोशिप

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 11-12-2021
पारसा मुफ्ती
पारसा मुफ्ती

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली-श्रीनगर

कश्मीरी लड़कियां रूढ़िवाद और पुरानी रवायतों की बेड़ियों से मुक्त होकर अपने सपनों और आकांक्षाओं को साकार करने के लिए दुनिया के अन्य क्षेत्रों में किस्मत आजमा रही हैं. इन लड़कियों में परसा मुफ्ती का नाम भी शामिल है. पारसा मुफ्ती दक्षिण कश्मीर के बजभरा इलाके से ताल्लुक रखती हैं. उन्हें प्रतिष्ठित स्टीफन श्वार्जमैन फैलोशिप के लिए चुना गया है. पारसा मुफ्ती यह फेलोशिप पाने वाली कश्मीर की पहली महिला बन गई हैं.

इस साल फेलोशिप के लिए पांच भारतीय छात्रों का चयन किया गया है, जिनमें पारसा मुफ्ती भी शामिल हैं.

पारसा मुफ्ती बहुत खुश और गौरवान्वित हैं कि उनका नाम दुनिया के अग्रणी स्नातक विद्वानों में आया है.

उन्होंने आवाज-द वॉयस को बताया, ‘मैं श्वार्जनेगर छात्रवृत्ति के लिए चुने जाने के लिए खुश और उत्साहित हूं. जब मैंने सुना कि मेरा नाम इस सूची में शामिल है, तो मुझे सबसे पहले आश्चर्य हुआ. यह मेरे लिए अविश्वसनीय था. बार-बार सूची देखी कि क्या यह बात सच थी.’ इसके बाद उन्होंने अपने परिवार को फोन कर बताया. वे भी बहुत खुश हुए और बधाई देने लगे.

उन्होंने कहा, ‘छात्रवृत्ति सात साल पहले शुरू की गई थी और आज तक सैकड़ों कश्मीरी लड़कों और लड़कियों ने इसके लिए आवेदन किया है, लेकिन आज तक किसी का चयन नहीं किया गया है. मैं इस छात्रवृत्ति के लिए चयनित होने वाली कश्मीर की पहली लड़की हूं और यह मेरे लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ देश का प्रतिनिधित्व करने और यहां के मुद्दों को उजागर करने का एक शानदार अवसर है.’

श्वार्जनेगर कॉलेज चीन की राजधानी बीजिंग में सिंघुआ विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित है. श्वार्जनेगर दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित स्नातक फैलोशिप में से एक है, जिसे अमेरिकी अरबपति स्टीफन ए श्वार्जनेगर द्वारा वित्त पोषित किया जाता है.

इस स्कॉलरशिप के बारे में पारसा मुफ्ती का कहना है कि दुनिया भर से प्रतिभाशाली छात्रों का चयन किया जाता है, जिनमें ग्लोबल लीडर बनने की क्षमता होती है. वे कहती हैं, ‘मैंने सितंबर में इस छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया था. इंटरव्यू अक्टूबर में हुआ था. अल्लाह के करम से मैं कामयाब रही.’

अनिच्छुक पारसा मुफ्ती ने कभी नहीं सोचा था कि वह इस स्थान पर पहुंचेंगी और अपने माता-पिता के साथ अपने क्षेत्र का नाम बताएगी.

वह कहती हैं, ‘मैंने कभी नहीं सोचा कि क्या करूं, इसलिए मेरा सफर हमेशा झिझकने वाला रहा है.’ इसलिए उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया.

उन्होंने कहा, ‘यह तब हमारे संज्ञान में आया था. मैं देश की नीति को समझने लगी कि देश कैसे काम करता है, इसे चलाने के लिए क्या नियम, कानून और सिद्धांत हैं. मैं और मेहनत करने लगी. इसी मेहनत का नतीजा आज आपके सामने है.’

उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ सालों से देश में क्या माहौल है और कैसे चीजें बदल गई हैं. हमें लगता है कि बाहर से कोई हमारी मदद करेगा और चीजों को बदलने में मदद करेगा, लेकिन ऐसा नहीं है. कभी-कभी हमें आगे आना पड़ता है और खुद को बदलना पड़ता है और मैं समाज की रूढ़ियों को बदलने की कोशिश कर रही हूं.’

पारसा मुफ्ती कहती हैं, ‘मैं कश्मीर को विश्व मंच पर देखना चाहती हूं और असली कश्मीर को दुनिया के सामने लाना चाहती हूं. मैं कश्मीर और कश्मीरियों की धारणा और मानसिकता को बदलना चाहती हूं और दिखाना चाहती हूं कि कश्मीर के लोग नम्र और मेहमाननवाज हैं.’

वह कहती हैं कि कश्मीर में संघर्ष और राजनीति के अलावा और भी बहुत कुछ है. मैं इन चीजों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाना चाहती हूं और यह मौका पाकर मैं बहुत खुश हूं.

पारसा मुफ्ती ने नई दिल्ली के एक विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक किया है. वह एक वकील और राजनीतिक रणनीतिकार हैं और नई दिल्ली में समृद्ध भारत फाउंडेशन के लिए काम करती हैं. वह द ट्रिस्ट की प्रमुख भी हैं, जिसके यूट्यूब पर 300,000से अधिक सब्क्राइबर हैं.

जो छात्र जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए परसा एक प्रेरणास्रोत हैं. यह उपलब्धि उन युवा लड़कों और लड़कियों को प्रेरित करेगी, जो दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में पढ़ना चाहते हैं.

mufti

पारसा का कहना है कि कश्मीर में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. यहां की युवा लड़कियां और लड़के प्रतिभा से भरे हुए हैं, लेकिन इन प्रतिभाओं को सम्मानित करने की जरूरत है. इसके लिए प्लेटफॉर्म मुहैया कराए जाने चाहिए.

कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर और प्लेटफॉर्म की कमी के चलते यहां के युवा आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. इसके अलावा, लोगों में सरकारी नौकरियों को लेकर एक गलत धारणा है, जिसे बदलने की जरूरत है.

निजी नौकरियों की ओर रुझान बहुत कम है. माता-पिता भी चाहते हैं कि उनके बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर या सिविल सेवा परीक्षा के लिए अर्हता प्राप्त करें. कश्मीर में अगर गूगल या फेसबुक के सीईओ आगे बढ़ते हैं, तो यहां के लोग उन्हें हल्के में लेंगे और कहेंगे कि वह एक आम आदमी हैं.

मैं चाहता हूं कि लोग जागरूक हों और इस धारणा से छुटकारा पाएं और सरकारी नौकरियों के अलावा अन्य अवसरों की तलाश करें.