एम.फिल में प्रवेश लेगी पहली ट्रांसजेंडर

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
पाकिस्तान की पहली ट्रांसजेंडर
पाकिस्तान की पहली ट्रांसजेंडर

 

कराची. हमारे समाज में जहां किन्नरों को लोगों के सामने तिरस्कार और हाथ फैलाते हुए देखा जाता है, वहीं कराची की किन्नर निशा राव उच्च शिक्षा प्राप्त कर लोगों के विचारों को गलत साबित कर रही हैं.

निशा राव सिंध मुस्लिम कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल करने वाली पाकिस्तान की पहली किन्नर हैं, जिसके बाद उन्हें हाल ही में कराची विश्वविद्यालय में एलएलएम (एम.फिल इन लॉ) में भर्ती कराया गया था.

निशा ने पहले किन्नर के रूप में एम.फिल में भर्ती होने पर खुशी जाहिर की और कहा, “मैं दो महीने से बहुत परेशान थी. एक दिन पहले मुझे बताया गया कि मुझे भर्ती कर लिया गया है.”

अपनी डिग्री के बारे में निशा ने आगे कहा कि दो साल की एलएलएम डिग्री एम.फिल के बराबर होती है, जिसमें पहली बार पाकिस्तान की किन्नर प्रदर्शन करेगी. निशा के मुताबिक, यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. डॉ. खालिद इराकी ने कहा कि कराची यूनिवर्सिटी पाकिस्तान की पहली यूनिवर्सिटी है, जिसने किसी किन्नर को एलएलएम की डिग्री दी है.

किन्नरों की शिक्षा के संबंध में निशा ने कहा कि हमारे देश में इस लिंग के लिए संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा प्राप्त करना बहुत मुश्किल है, उन्हें शिक्षण संस्थानों में प्रवेश नहीं दिया जाता है और उनके लिए कोई कोटा प्रणाली नहीं है.

निशा ने कहा, “मैंने एलएलएम के एक सेमेस्टर के लिए 140,000रुपये की फीस चुकाई है. यहां से अंदाजा लगाइए कि सड़कों पर भीख मांगने वाले किन्नरों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना असंभव है.”

उन्होंने कहा कि यहीं से चुनौतियाँ शुरू होती हैं, चाहे हम भीख माँगें या अपनी शिक्षा पूरी करें. इतने पैसे से किन्नर शिक्षा के बारे में अपना मन नहीं बना पाते हैं. मुझे अपनी एलएलएम की डिग्री पूरी करने में लगभग 4लाख रुपये खर्च होंगे.

निशा ने कहा कि उन्होंने आसानी से विश्वविद्यालय जाने के लिए 170,000रुपये की स्कूटी भी खरीदी है. निशा ने शिकायत की कि किन्नरों के लिए छात्रवृत्ति नहीं है.

निशा का कहना है कि वह अपने लिए छात्रवृत्ति नहीं मांग रही है, लेकिन विश्वविद्यालयों के लिए भीख मांगने की तुलना में किन्नरों को छात्रवृत्ति देना बेहतर है. क्या वे नहीं जानते कि हमारी आजीविका क्या है?

 

मेरे लिए फीस में बेशक कोई छूट नहीं होनी चाहिए, लेकिन जो किन्नर पढ़ना चाहते हैं और जरूरतमंद हैं, उनके लिए फीस कम कर देनी चाहिए. निशा राव ने कहा कि विश्वविद्यालय में प्रशासन का रवैया उनके साथ बहुत अच्छा था और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बुलाया और प्रवेश मिलने पर बधाई दी, जबकि उन्होंने बहुत सहयोग किया.

जब निशा से पूछा गया कि क्या उन्हें इस बात का डर है कि लोग उन्हें परेशान करेंगे या फिर कड़ी सजा देंगे. तो उन्होंने आत्मविश्वास से भरे लहजे में जवाब दिया कि यह सब किन्नर के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है, अगर कोई किन्नर अच्छा बोलता है, कम मेकअप करता है, ठीक से चलता है, लोग उसे परेशान नहीं करते हैं, आज तक मैंने अप्रिय स्थिति का सामना नहीं किया.

कराची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. खालिद इराकी ने जियो न्यूज से कहा कि हमें किन्नरों को सक्रिय नागरिक बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. उन्होंने कहा कि निशा राव को भर्ती करने का निर्णय बोर्ड ऑफ एडवांस स्टडीज एंड रिसर्च (बीएसआर) की बैठक में लिया गया.

बैठक में मौजूद एक डीन ने जंग को बताया कि निशा राव के परीक्षा में कम अंक थे, लेकिन उनके नपुंसक और उच्च शिक्षा में रुचि के कारण, उन्हें विशेष रूप से कानून में एम.फिल करने की अनुमति दी गई थी.

जब खालिद इराकी से पूछा गया कि क्या विश्वविद्यालय में एक हिजड़ा शिक्षक के पद के लिए आवेदन करेगा, तो क्या उसे नौकरी के लिए माना जाएगा? उन्होंने बेहद संक्षिप्त जवाब देते हुए कहा कि फैसला चयन समिति पर निर्भर करेगा.

विश्वविद्यालय के केवीसी ने कहा कि इच्छुक किन्नरों को छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए कोई भी छात्र विश्वविद्यालय के वित्तीय सहायता कार्यालय से संपर्क कर सकता है.

किन्नरों को अनुचित व्यवहार से बचाने के लिए विश्वविद्यालय की नीति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी.