नीति आयोगका खुलासा : भारत से विदेश पढ़ने गए 13.35 लाख छात्र, ब्रेन ड्रेन का खतरा बढ़ा

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 23-12-2025
Brain drain warning: NITI Aayog exposes the reality of higher education.
Brain drain warning: NITI Aayog exposes the reality of higher education.

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली

जब देशभर में बोर्ड परीक्षाएँ और कॉलेजों के सेमेस्टर इम्तिहान अपने चरम पर हैं, उसी बीच सोशल मीडिया पर विदेश में पढ़ाई से जुड़े विज्ञापनों की बाढ़-सी आई हुई है। हर प्लेटफॉर्म पर “स्टडी अब्रॉड” के कोर्स, काउंसलिंग और स्कॉलरशिप के आकर्षक दावे दिखाई दे रहे हैं। आमतौर पर यह धारणा रही है कि विदेशों में पढ़ने का अवसर केवल चुनिंदा अमीर या संपन्न परिवारों के बच्चों को ही मिलता है, जो अमेरिका, लंदन, कनाडा या जर्मनी जैसे देशों का रुख करते हैं। लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग और चौंकाने वाली है।

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नीति आयोग की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, केवल वर्ष 2024 में ही 13 लाख से अधिक भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रुख कर चुके हैं। यह आंकड़ा न सिर्फ भारत की बढ़ती वैश्विक शैक्षणिक उपस्थिति को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि देश के युवा अब सीमाओं से परे जाकर बेहतर अवसरों की तलाश में हैं। दुनिया की सबसे बड़ी कॉलेज जाने योग्य आबादी होने के बावजूद, विदेशी विश्वविद्यालयों पर भारत की निर्भरता लगातार बढ़ रही है।

नीति आयोग की इस रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि भारतीय छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के पांच सबसे पसंदीदा अंतरराष्ट्रीय गंतव्य कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी हैं। वर्ष 2024 में कनाडा भारतीय छात्रों की पहली पसंद बनकर उभरा, जहां लगभग 4.27 लाख भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे थे। इसके बाद अमेरिका का स्थान रहा, जहां 3.37 लाख भारतीय छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। यूनाइटेड किंगडम, जिसे लंबे समय से विश्वस्तरीय शिक्षा और बैरिस्टर जैसी प्रतिष्ठित डिग्रियों के लिए जाना जाता है, इस सूची में तीसरे स्थान पर रहा, जहां करीब 1.85 लाख भारतीय छात्र अध्ययनरत थे।

ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी क्रमशः चौथे और पांचवें स्थान पर रहे। ऑस्ट्रेलिया में लगभग 1.22 लाख भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे थे, जबकि जर्मनी में यह संख्या करीब 43 हजार रही। ये आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अब भारतीय छात्र केवल अंग्रेज़ी भाषी देशों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यूरोप जैसे क्षेत्रों में भी तेजी से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा आयु वर्ग की आबादी है। 18 से 23 वर्ष की आयु के लगभग 15.5 करोड़ युवा भारत में मौजूद हैं। इसके बावजूद, देश में आने वाले विदेशी छात्रों और विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों के बीच भारी असंतुलन देखने को मिलता है। वर्ष 2024 में भारत में पढ़ने आने वाले हर एक अंतरराष्ट्रीय छात्र के मुकाबले लगभग 28 भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए। यह स्थिति एक बड़े “ब्रेन ड्रेन” यानी प्रतिभा पलायन की ओर इशारा करती है।

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‘भारत में उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में 2021-22 के आंकड़ों के आधार पर यह भी बताया गया है कि जहां विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में लगातार तेज़ी से इज़ाफा हो रहा है, वहीं भारत को पढ़ाई के लिए चुनने वाले विदेशी छात्रों की संख्या अभी भी अपेक्षाकृत कम बनी हुई है। यह एक गंभीर संकेत है, जो देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था को वैश्विक स्तर पर और अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता को उजागर करता है।

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023-24 के दौरान केवल कनाडा, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे लगभग 8.5 लाख भारतीय छात्रों ने उच्च शिक्षा पर करीब 2.9 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। यह राशि भारतीय अर्थव्यवस्था से बाहर जाने वाले बड़े वित्तीय प्रवाह को दर्शाती है, जिसे यदि देश के भीतर शिक्षा ढांचे में निवेश किया जाए तो तस्वीर काफी हद तक बदल सकती है।

इसके अलावा, रिपोर्ट में कुछ छोटे यूरोपीय देशों का भी उल्लेख किया गया है, जहां भारतीय छात्रों की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत अधिक है। उदाहरण के तौर पर, लातविया में अंतरराष्ट्रीय छात्र आबादी का 17.4 प्रतिशत हिस्सा भारतीय छात्रों का है। इसके बाद आयरलैंड में यह आंकड़ा 15.3 प्रतिशत और जर्मनी में 10.1 प्रतिशत दर्ज किया गया। यह डेटा बताता है कि भारतीय छात्र अब पारंपरिक विकल्पों से आगे बढ़कर नए और उभरते शैक्षणिक गंतव्यों की ओर भी तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।

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कुल मिलाकर, नीति आयोग की यह रिपोर्ट भारत की युवा पीढ़ी की महत्वाकांक्षाओं, वैश्विक सोच और बेहतर भविष्य की तलाश को दर्शाती है। साथ ही, यह नीति निर्माताओं के लिए भी एक स्पष्ट संकेत है कि देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, अवसरों और अंतरराष्ट्रीय आकर्षण को और सशक्त बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि प्रतिभा देश के भीतर ही पनप सके और भारत वैश्विक शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बन सके।