खुशबू मिर्जा: तालीम के पंखों से उड़कर चांद की बेटी बनने की कहानी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
 खुशबू मिर्जा: तालीम के पंखों से उड़कर चांद की बेटी बनने की कहानी
खुशबू मिर्जा: तालीम के पंखों से उड़कर चांद की बेटी बनने की कहानी

 

रत्ना शुक्ला आनंद/ नई दिल्ली

कहते हैं, प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती. अपने कदमों की आहट से वो अपने होने का एहसास करा ही देती है. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर अमरोहा की खुशबू मिर्जा पर ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं.

खुशबू मिर्जा देश की वो बेटी हैं जो अपनी तालीम के दम पर अमरोहा से इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान पहुंची. फिर चंद्रयान के मिशन 1और 2 का हिस्सा बनीं. अमरोहा के मोहल्ला चाहगौरी की रहने वाली खुशबू चंद्रयान-1 की चेकआउट टीम की लीडर और मिशन में सबसे कम उम्र की सदस्य रहीं. फिर चंद्रयान-2 की रिसर्च टीम का हिस्सा बनीं.

आसान नहीं था सफर   

कहते हैं, एक पुरुष को पढ़ाने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है, जबकि एक स्त्री पढ़ले तो पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है. दरअसल, खुशबू जब महज 7साल की थीं तभी पिता का साया सिर से उठ गया.

घर में खुशबू के अलावा बड़ा भाई खुशतार मिर्जा और छोटी बहन महक थे. खुशबू की मां फरहत मिर्जा मुरादाबाद से स्नातक थीं. तालीम की अहमियत समझती थीं. ऐसे में उन्होंने तीनों बच्चों को बेहतर तालीम देने का बीड़ा उठाया. उनकी परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी. फरहत मिर्जा ने तीनों बच्चों का दाखिला वहां के सबसे अच्छे स्कूल कृष्णा बाल मंदिर में करवाया.

खुशबू के पिता सिकंदर मिर्जा का पेट्रोल पंप था. उनके इंतकाल के बाद मां फरहत ने परंपरागत बेड़ियां तोड़कर पेट्रोल पंप का कामकाज सम्भाला. इसके लिए उन्हें समाज के ताने भी सुनने पड़े, पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की.

पिता थे प्रगतिशील विचारों के    

खुशबू के पिता सिकंदर मिर्जा स्वयं इंजीनियर थे. अपने बच्चों को भी इंजीनियर बनाने के सपने देखते थे. एक छोटे शहर के पारंपरिक मुस्लिम समुदाय के परिवार के लिए बेटे के साथ बेटियों को भी इंजीनियर बनाने का विचार ही अपने आप में बहुत हटकर है वो भी आज से करीब 35साल पहले.

मगर खुशबू के पिता की यही प्रगतिशील सोच और उनकी मां फरहत की खुद की तालीम ही फरहत के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा और ताकत बनी. पति के अचानक गुजर जाने के बाद इस ताकत ने उन्हें टूटने से बचा लिया. स्वर्गीय सिकंदर मिर्जा और फरहत के तीनों बच्चों ने इंजीनियरिंग की.

बहुआयामी प्रतिभा की धनी   

30 जुलाई, 1985 को जन्मी खुशबू ने शहर के कृष्णा बाल मंदिर स्कूल से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की. उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एमएमयू) से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग से बीटेक किया.

खुशबू अपने बैच की गोल्ड मेडलिस्ट रहीं. खुशबू की खेलों में बचपन से रुचि रही. वह जिला स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान खेलकूद में हिस्सा लेती रहती थीं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बीटेक की पढ़ाई के दौरान खुशबू ने छात्र संघ चुनाव में हिस्सा लिया.  

वह एमएमयू में छात्र संघ चुनाव लड़ने वाली पहली लड़की बनीं. उन्हें चुनाव में कामयाबी तो नहीं मिली, पर वह अन्य लड़कियों के चुनाव में हिस्सा लेने के लिए प्रेरणा बन गईं.

khushboo

वैज्ञानिक बनने की चाहत

बीटेक पूरा करने के बाद उन्हें अडोबी कंपनी में नौकरी मिली. चूंकि उनके भीतर वैज्ञानिक बनने की इच्छा थी, लिहाजा उन्होंने अपना ध्यान अपनी इस ख्वाहिश को पूरा करने में लगाया. खुशबू 2006 में अपनी मेहनत के दम पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान में तकनीशियन के पद पर पहुँच गईं.

उस टीम का हिस्सा बनी जो सैटेलाइट से डाटा ग्रहण करने के लिए उपकरण और सॉफ्टवेयर बना रहा था.  आखिरकार 2008 में चंद्रयान-1 मिशन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके बाद उन्हें चंद्रयान-2मिशन के लिए चुना गया. खुशबू 2012 के इसरो के राष्ट्रीय सम्मेलन की महत्वपूर्ण वक्ता थीं. इसके अलावा उन्होंने इसरो की तरफ से कई वैज्ञानिक कार्यक्रमों में शिरकत की.

आस्था और विज्ञान का मेल

चंद्रयान-2 मिशन को सफल बनाने में खुशबू ने एक साल और दस महीने तक कड़ी मेहनत की. इसरो में काम करते हुए खुशबू ने रमजान के पाक महीने में रोजे रखे. नमाज पढ़ी. परीक्षण केंद्र में ही ईद मनाई. खुशबू के बड़े भाई के मुताबिक, उनका परिवार जितना प्रगतिशील है उतना ही आस्था और परंपराओं का सम्मान करने वाला है. लेकिन दकियानूसी नहीं है.

अमरोहा की बच्चियों बनी प्रेरणा

खुशबू के बड़े भाई खुशतार मिर्जा के मुताबिक, उन सबका बचपन बड़ा संघर्षमय रहा. खास तौर से खुशबू जब इसरो जा रही थीं, उस दौरान मां ही उनके साथ भागदौड़ करती थीं. साथ ही समाज का विरोध भी झेलती थीं. चूंकि बुर्का पहनकर खुशबू के लिए बाहर की भागदौड़ मुश्किल थी. ऐसे में मां ने उन्हें जीन्स पहनने देने का साहस किया. खुशतार बताते हैं कि चंद्रयान-1मिशन के बाद जब अमरोहा के एक अखबार में राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के साथ खुशबू का फोटो छपा तब जैसे समाज की नजरों उनके सारे गुनाह माफ हो गए.

आज अमरोहा की बच्चियों के लिए खुशबू प्रेरणा हैं. लोग अब बच्चियों को स्कूल भेजना चाहते हैं ताकि देश की तरक्की में उनकी भी भागीदारी हो. खुशबू को कई शिक्षण संस्थाओं में बतौर मुख्य अतिथि और वक्ता के तौर पर  बुलाया जाता है.

खुशतार स्वयं दिल्ली के जामिया मिलिया  विश्वविद्यालय से इंजीनियर हैं. छोटी बहन महक भी इंजीनियर है. एक बच्चे की मां भी हैं. खुशबू मिर्जा भी हाल ही में विवाह के बंधन में बंधी हैं। खुशबू फिलहाल इसरो के रीजनल रिमोट सेन्सिंग सेन्टर में पदस्थ हैं, जबकि अमरोहा के उनके परिवार ने अब समाज में बच्चों को तालीम देने का बीड़ा उठा रखा है.