इकबाल के शेर पर अमल करते हुए बीपीएससी में हासिल की कामयाबी

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 09-10-2021
सैफुर रहमान को मुंह मीठा करवाते हुए उनके माता-पिता
सैफुर रहमान को मुंह मीठा करवाते हुए उनके माता-पिता

 

मोहम्मद अकरम

नहीं तेरी नशेमन कसरे सुल्तानी के गुम्बद पर

तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चट्टानों में

अल्लामा इकबाल के इस शेर को जब मैं गुनगुनाता या सुनता था, तो हमेशा कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा होता था, जब मेरा दिल थोड़ा सा मायूस होता, तो उनकी लिखी हुई किताब कुल्लियात-ए-इकबाल को पढ़ता. उनके इस शेर से मुझे इश्क हो गया, जिसके बाद मैंने कुछ कर गुजरन का ख्वाब अपनी आंखों मे देखा था. आज मैं बहुत खुश हूं कि मुझे बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) की 65वीं परीक्षा में कामयाबी मिली है. ये कहना है बीपीएससी में 191वां रैंक हासिल करने वाले सैफुर रहमान का.

सैफुर रहमान दरभंगा जिले के केवटी प्रखंड के अंतर्गत बाढ़ सेमरा गांव के रहने वाले हैं, उनके पिता का नाम अब्दुल मोबीन है, जो पुलिस विभाग से रिटायर्ड हैं.

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एक सेल्फी हो जाएः भाईयों और मित्रों के साथ

सैफुर रहमान ने आवाज‘-द वॉयस से बात करते हुए बताया कि मेरी शुरुआती शिक्षा दरभंगा के स्कूल में हुई. उसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए मैं दिल्ली पहुंचा, जहां दिन-रात मेहनत करके जामिया मिल्लिया इस्लामिया में दाखिला लिया. वहां से बी.टेक इन कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन की तैयारी शुरू की. इस दौरान तैयारी में कई उतार-चढ़ाव आए. मगर मैं हमेशा अल्लामा इकबाल के इस शेर ‘नहीं तेरी नशेमन कसरे सुल्तानी के गुम्बद पर, तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चट्टानों में’ को याद करके मंजिल की जुस्तजू मे लग जाता था.

इस शेर के अलावा उन्हें अपने माता-पिता से भी प्रेरणा मिलती थी. वे बताते हैं, मेरे माता पिता ने हमें उंगली पकड़ कर पढ़ाया, जब भी पिता जी छुट्टी में घर पर आते, तो पढ़ने पर जोर देते थे और मां शाम को चिराग जला कर पढाने बैठती थीं, इन्हीं कारणों से आज कामयाब हुआ हूं.

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सैफुर रहमान 


तीन भाई और चार बहन में छठे नंबर पर सैफुल्लाह ने बताया कि अगर दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो मंजिल मिल ही जाती है. मैं अब आगे यूपीएससी की तैयारी कर रहा हूं.

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नौजवानों को नेट से फायदा उठाना चाहिए. हर चीज इंटरनेट पर मौजूद हैं, बस अपनी कोशिश को हमेशा जारी रखनी चाहिए. मुस्लिम नौजवानों में जागरूकता की कमी है. जरूरत है कि कोई आगे बढ़कर रहनुमाई करें, तो वे अच्छा कर सकते हैं.

उन्होंने बताया कि अल्लामा इकबाल उनके सबसे पसंदीदा शायर हैं. उनकी लिखी हुई किताब कुलियात-ए-कलीम को अच्छी तरह पढ़ा है. उसे नौजवानों को जरूर पढ़ना चाहिए.

सैफुर रहमान ने बताया कि उन्हें हालात-ए-हाजरा पर नज्म लिखने का शौक भी है. उनकी लिखी एक नज्मः

तेरी जिंदगी तेरा इंतकाम लेगी।

आखिरत में तेरा दामन भी चाक देगी।।

रोने के सिवा कुछ नहीं होगा तेरे पास जानी*।

जब दोजख तेरा इम्तिहान लेगी।।

किसी को न हमदर्दी न मायूसी होगी।

तुझे खुद की हरकत भी याद होगी।।

बच्चों की तड़प पर न गम खाने वाले।

तेरी आखिरत भी तार-तार होगी।।

*जानी (बलात्कारी)