नई दिल्ली/ढाका
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश में हालिया हिंसा और अशांति को लेकर अंतरिम सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है और हिंसा “सामान्य” बन चुकी है, जबकि सरकार या तो इनकार कर रही है या उसे रोकने में असमर्थ है।
एएनआई को ईमेल इंटरव्यू में शेख हसीना ने कहा कि उनके शासन को गिराने वाली “अराजकता” यूनुस के दौर में और बढ़ गई है। उनका कहना है कि ऐसी घटनाएं न केवल बांग्लादेश को भीतर से अस्थिर करती हैं, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को भी नुकसान पहुंचाती हैं। “भारत इस अराजकता, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और संस्थानों के क्षरण को देख रहा है,” उन्होंने कहा।
यह टिप्पणी 27 वर्षीय युवा कार्यकर्ता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद आई है। हादी को 12 दिसंबर को ढाका के बिजयनगर इलाके में रिक्शा से जाते समय करीब से गोली मारी गई थी। गंभीर हालत में उन्हें सिंगापुर ले जाया गया, जहां 18 दिसंबर को उनकी मौत हो गई। इसके बाद राजधानी ढाका में शाहबाग चौराहे सहित कई जगहों पर न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन हुए।
शेख हसीना ने अंतरिम सरकार पर कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि यूनुस ने दोषी आतंकियों को जेल से रिहा किया और चरमपंथियों को सत्ता संरचनाओं में जगह दी। उन्होंने दावा किया कि अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से जुड़े समूहों को सार्वजनिक जीवन में भूमिका दी जा रही है, जिससे देश की धर्मनिरपेक्ष परंपरा खतरे में है।
भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी उन्होंने गंभीर चिंता जताई। हसीना ने कहा कि अंतरिम सरकार की “भारत-विरोधी बयानबाजी”, धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफलता और भीड़ हिंसा ने रिश्तों में तनाव पैदा किया है। हाल में हिंदू युवक दीपु चंद्र दास की कथित ईशनिंदा के आरोप में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या और शव जलाए जाने की घटना पर उन्होंने सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
चटगांव में भारतीय वीज़ा आवेदन केंद्र द्वारा सुरक्षा कारणों से सेवाएं निलंबित किए जाने को लेकर हसीना ने कहा कि भारत की चिंताएं “पूरी तरह जायज़” हैं। उनका आरोप है कि उग्रवादी तत्वों को सत्ता का संरक्षण मिला हुआ है और राजनयिक मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार विफल रही है।
शेख हसीना ने अंत में कहा कि बांग्लादेश की ताकत उसकी धर्मनिरपेक्ष राजनीति रही है और इसे “कुछ उग्रवादियों की सनक” के हवाले नहीं किया जा सकता। उनके मुताबिक, लोकतंत्र की बहाली और जिम्मेदार शासन लौटते ही देश फिर स्थिरता और पड़ोसी देशों के साथ संतुलित साझेदारी की राह पर आएगा।