इस्लामाबाद
पाकिस्तान की संघीय कैबिनेट ने गुरुवार को आतंकवाद विरोधी कानून के तहत दक्षिणपंथी राजनीतिक और धार्मिक संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को मंजूरी दे दी। यह कदम देश में इजरायल विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पुलिस और टीएलपी समर्थकों के बीच हुई हिंसक झड़पों में पांच लोगों की मौत के कुछ दिनों बाद उठाया गया है।
सरकारी बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय पंजाब प्रांतीय सरकार की सिफारिश पर लिया गया। बैठक में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पार्टी की गतिविधियों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि टीएलपी के प्रदर्शनों ने कई बार देशभर में कानून-व्यवस्था की स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। रिपोर्ट सुनने के बाद कैबिनेट ने सर्वसम्मति से संगठन पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
बयान में कहा गया कि “तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान ने 2016 में अपनी स्थापना के बाद से लगातार हिंसा को बढ़ावा दिया है। इस समूह की कार्रवाइयों से देश के विभिन्न हिस्सों में बार-बार झड़पें और तोड़फोड़ की घटनाएँ हुई हैं।”
टीएलपी एक अति-दक्षिणपंथी सुन्नी इस्लामवादी संगठन है, जो 2015 में ईशनिंदा (Blasphemy) कानूनों की रक्षा के नाम पर उभरा था। बाद में यह 2016 में एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत हुआ। इस संगठन के समर्थक अक्सर सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करते हैं, जिससे कई बार पाकिस्तान सरकार को बड़े पैमाने पर प्रशासनिक और आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा है।
गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने भी 2021 में हिंसक प्रदर्शनों के बाद इस पार्टी पर प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, छह महीने बाद सरकार ने कुछ शर्तों के साथ यह प्रतिबंध हटा लिया था, जब पार्टी नेताओं ने भविष्य में हिंसा न करने का वादा किया था।
हाल में इजरायल के खिलाफ निकाले गए प्रदर्शनों में टीएलपी के समर्थकों ने कई शहरों में पुलिस बलों से झड़प की, जिसमें पांच लोगों की मौत और कई दर्जन घायल हुए। इसके बाद पंजाब सरकार ने संघीय कैबिनेट से संगठन पर फिर से प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की।
सरकार का कहना है कि टीएलपी की गतिविधियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता के लिए खतरा बन चुकी हैं, इसलिए इसे आतंकवाद विरोधी अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किया गया है।
इस कदम को पाकिस्तान में राजनीतिक और धार्मिक हलकों में मिले-जुले प्रतिक्रियाएँ मिल रही हैं। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम देश में बढ़ती धार्मिक उग्रता पर नियंत्रण पाने के लिए आवश्यक था, जबकि टीएलपी समर्थकों ने इसे “राजनीतिक दमन” बताया है।
(स्रोत: डॉन, रॉयटर्स)