वैंकूवर. ब्रिटिश कोलंबिया के पूर्व प्रीमियर उज्जल दोसांझ ने बढ़ते सिख चरमपंथ को नियंत्रित करने में नाकाम रहने के लिए जस्टिन ट्रूडो की तीखी आलोचना की की. उन्होंने कहा कि कनाडा के प्रधानमंत्री, देश के कुछ अन्य राजनेताओं की तरह, चुनावों में संतुलन बनाने के लिए 'सिख वोट' को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं.
दोसांझ ने कनाडा के नेशनल पोस्ट को दिए इंटरव्यू में कहा, "सामाजिक और राजनीतिक रूप से ट्रूडो एक मूर्ख हैं, और आप वास्तव में मुझे उद्धृत कर सकते हैं. मुझे परवाह नहीं है. वह यह समझने के लिए मूर्ख हैं कि राष्ट्रों का, देशों का निर्माण कैसे किया जाता है."
यह इंटरव्यू उस दिन प्रकाशित हुआ, जिस दिन खालिस्तानी चरमपंथियों ने ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर में हिंदू भक्तों पर हमला किया.
पूर्व पीएम पॉल मार्टिन की लिबरल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे दोसांझ ने खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन को इस हद तक हवा देने के लिए ट्रूडो को दोषी ठहराया. उनके मुताबिक यह कनाडा की एक बड़ी समस्या बन गई है.
दोसांझ ने कहा, "ट्रूडो कभी नहीं समझ पाए कि सिख बहुसंख्यक काफी धर्मनिरपेक्ष है. खालिस्तानी बहुसंख्यक नहीं हैं. तथ्य यह भी है कि डर की वजह से कोई भी उनके खिलाफ नहीं बोलता. खालिस्तानी समर्थक कनाडा में कई गुरुद्वारों को नियंत्रित करते हैं. यह ट्रूडो की गलती है जिसकी वजह से कनाडाई अब खालिस्तानियों को सिखों के बराबर मानते हैं, जैसे कि अगर हम सिख हैं तो हम सभी खालिस्तानी हैं."
पंजाब में जन्मे और वैंकूवर में बसे दोसांझ कहते हैं कि 'सिखों की साइलेंट मेजोरिटी' खालिस्तान से कोई लेना-देना नहीं रखना चाहती. उन्होंने कहा, 'वे इसलिए नहीं बोलते क्योंकि वे हिंसा और हिंसक नतीजों से डरते हैं.' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कनाडा में लगभग 8,00,000 सिखों में से पांच प्रतिशत से भी कम खालिस्तानियों का समर्थन करते हैं.
पूर्व मंत्री ने खुलासा किया कि खालिस्तान के मुद्दे पर ट्रूडो के साथ उनकी 'लंबी बहस' हुई.
दोसांझ ने कनाडाई पब्लिकेशन को बताया, "जस्टिन (ट्रूडो) और मेरे बीच कॉमन्स की लॉबी में एक लंबी बहस हुई थी, जब मैं उनके साथ एक सांसद के रूप में कुछ वर्षों तक था. हम 2008 से 2011 तक एक साथ सांसद थे. मैंने उनसे पहचान, धर्म और इस तरह की अन्य बातों के बारे में लंबी बातचीत की, जिसमें सभी खालिस्तानी टेबल के चारों ओर बैठे थे. और वह मेरे बजाय उनसे सहमत थे.'