नयी दिल्ली
जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के ऐतिहासिक परामर्श निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विशेषज्ञों ने गुरुवार को कहा कि यह फैसला समान दृष्टिकोण अपनाने, ऐतिहासिक जिम्मेदारियों को तय करने और जलवायु न्याय के लिए भारत की लंबी अवधि की मांगों को कानूनी मजबूती प्रदान करता है। साथ ही, यह घरेलू स्तर पर कार्रवाई की उम्मीदों को भी बढ़ाता है।
आईसीजे ने जलवायु परिवर्तन को ‘‘अस्तित्व के लिए खतरा’’ बताते हुए तुरंत कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया है। अदालत ने कहा कि जलवायु से जुड़े उपाय करना सभी देशों का दायित्व है और वे इसे कानूनी रूप से निभाने के लिए बाध्य हैं।
संयुक्त राष्ट्र की इस अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को ‘‘अत्यधिक महत्वाकांक्षा’’ के साथ हासिल करना होगा और समय के साथ उनमें सुधार भी करना होगा।
बुधवार रात जारी सलाहकार राय में यह बताया गया कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत राष्ट्रों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार माना जाएगा, जिसमें लोगों को इसके हानिकारक प्रभावों से बचाना भी शामिल है।
विशेषज्ञों ने कहा कि यह फैसला उन देशों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जैसे भारत, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से जलवायु संकट में न्यूनतम योगदान दिया है, लेकिन इसके असमान प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
पर्यावरण रक्षा कोष के मुख्य सलाहकार हिशाम मुंडोल ने कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक फैसला है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु कार्रवाई अब केवल राजनीतिक या नैतिक विकल्प नहीं, बल्कि कानूनी दायित्व है।’’
उन्होंने कहा कि भारत जैसे ‘ग्लोबल साउथ’ देशों के लिए, जिनका ऐतिहासिक और प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम है लेकिन जो जलवायु जोखिम में अधिक हैं, यह निर्णय विशेष रूप से स्पष्ट और सशक्त करने वाला है।
‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया’ के वरिष्ठ सलाहकार शैलेन्द्र यशवंत ने कहा कि आईसीजे की सुनवाई और अन्य वैश्विक मंचों पर समानता तथा जलवायु न्याय पर भारत के लगातार ध्यान केंद्रित करने को इस परामर्श राय में स्वीकार किया गया है, लेकिन इसके साथ ही देश पर बड़ी अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं।
इस वर्ष की शुरुआत में आईसीजे की सुनवाई के दौरान भारत ने यह दलील दी थी कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन की मुख्य जिम्मेदारी लेनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने ऐतिहासिक रूप से वैश्विक उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान दिया है।
भारत की ओर से विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव लूथर एम. रंगरेजी ने कहा था, ‘‘यदि उत्सर्जन में असमानता है, तो जिम्मेदारी लेने में भी असमानता होनी चाहिए।’’भारत ने अदालत से आग्रह किया था कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय जलवायु व्यवस्था से आगे नए दायित्व थोपे न जाएं।