मंजीत ठाकुर
निशात जहां 36 साल की हैं और दो बच्चो की मां है. लेकिन जब वह दीवारों की चिनाई करती हैं तो ईंटों को गारे पर रखने में उनमें वही कुशलता और शक्ति दिखती है जो परिवार की देखरेख में वह दिखाती रही हैं.
निशात जहां की काम करने की रफ्तार से गांव लोग हैरान हैं क्योंकि सूरज चढ़ने से पहले ही वह निर्माणाधीन शौचालय की आधी दीवार चिन चुकी होती हैं.निशात जहां की सहेली ऊषा रानी भी उनके साथ काम कर रही हैं और वह भी ईंट और सीमेंट में सनी हुई हैं और निर्माण के काम में लगी हैं.
निशात जहां झारखंड की 50,000 प्रशिक्षित रानी मिस्त्रियों में से एक हैं
विश्व बैंक ने निशात जहां जैसी भवन निर्माण के काम में लगी महिलाओं पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है.
निशात जहां और ऊषा दोनों झारखंड के हजारीबाग में सिलबार खुर्द गांव में शौचालय निर्माण के काम में लगी हुई हैं. विश्व बैंक के मुताबिक, झारखंड में निर्माण कार्य के लिए 50,000 महिलाओं के मिस्त्री के रूप में प्रशिक्षित किया गया है. निशात जहां उनमें से एक हैं.
यहां से थोड़ी दूर पर स्थित सड़क के किनारे ढाबे के पास एक और शौचालय के काम में लगी 40 साल की उर्मिला देवी दो साल से ईंट चिनाई के काम में आई हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, उर्मिला देवी ने अब तक 1,000 से अधिक शौचालयों का निर्माण किया है. उर्मिला शौचालय निर्माण के काम के लिए बिहार के चंपारण तक जाकर मिस्त्री का काम कर आई हैं. उनके साथ काम कर रही पूनम देवी ने भी पिछले एक साल में 900 शौचालयों के निर्माण में मिस्त्री का काम किया है.
भारत में आम तौर पर राजमिस्त्री का काम मर्दों का काम मानने की एक धारणा रही है. इन्हें राजमिस्त्री कहा जाता है. हालांकि, हिंदी में यह शब्द राज, राजा से आया है. पारंपरिक रूप से महिलाएं निर्माण गतिविधियों में सहायकों की भूमिका में रही हैं. वह ईंटे ढोती नजर आती रही हैं, गारे तैयार करती दिखती हैं, और राजमिस्त्रियों के निर्देश पर बाकी के काम करती दिखती रही हैं.
लेकिन, झारखंड में महिला मजदूरों ने मिस्त्री के काम में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ दिया है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, इन महिलाओं ने पहली दफा मिस्त्री का काम में हाथ तब डाला जब स्वच्छ भारत मिशन के तहत बड़ी संख्या में शौचालयों का निर्माण शुरू हुआ.
हालांकि, राजमिस्त्रियों में से अधिकतर लोग पलायन कर के बड़े शहर जा चुके थे या फिर जो बचे थे उनको शहरों में बनने वाले शौचालयों के लिए काम मिल गया था. अधिकतर राजमिस्त्रियों को इस काम के लिए मिलने वाली मजदूरी भी कम लगी थी.
आज की तारीख में झारखंड में 50 हजार से अधिक कुशल महिला मिस्त्रियों ने सूबे को खुले में शौच से मुक्त बनाने के अभियान में अपना उम्दा योगदान दिया है. गौरतलब है कि झारखंड राज्य नवंबर, 2018 में ओडीएफ यानी ओपन डेफिकेशन फ्री (खुले में शौच से मुक्त) घोषित कर दिया गया.
इन प्रशिक्षित महिला मिस्त्रियों ने पुरुष मिस्त्रियों (राजमिस्त्रियों) की तर्ज पर खुद को रानी मिस्त्री कहना शुरू कर दिया है.
गौरतलब है कि झारखंड उन राज्यों में से एक है जिसे स्वच्छ भारत अभियान की योजना बनाने और उसको लागू करने के लिए विश्व बैंक की ओर से तकनीकी मदद (टेक्निकल असिस्टेंस) मिली थी. इस तकनीकी मदद के हिस्से के रूप में विश्व बैंक ने टॉयलेट बनाने के लिए राजमिस्त्रियों को प्रशिक्षित के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया था और उनमें से कई कार्यक्रमों में महिला मजदूरों ने भी हिस्सा लिया था.
हालांकि, शुरुआत में गांव के लोग, खासतौर पर खुद महिलाएं, इस काम को लेकर अनिच्छुक थीं. कई रानी मिस्त्रियों के परिवार वाले इस काम को सीखने को लेकर उनके खिलाफ खड़े हो गए. पर संघर्ष करके इन रानी मिस्त्रियों ने अपना मुकाम पा ही लिया.
इन महिलाओं ने एक अन्य वर्जना को तोड़ा है. पहले मजदूरी करने के दौरान भी यह महिलाएं अपने गांव से बाहर जाने या बाहर जाकर काम करने की सोच भी नहीं सकती थीं. यह महिलाएं या तो अपने घरेलू कामकाज करती थीं, या फिर खेतों में मजदूरी किया करती थीं. लेकिन अब परिदृश्य बदल गया है.
निशात जहां मुस्लिम समुदाय से हैं और ऐसे में उनके लिए परदे से बाहर निकलना भी बड़ी चुनौती थी. लेकिन उन्होंने बाकी महिलाओं के साथ रांची जाकर प्रशिक्षण हासिल किया. विश्व बैंक के हफ्ते भर की अवधि के इस कार्यक्रम में उन्होंने टॉयलेट बनाने की तकनीकी जानकारी हासिल की.
उन्होंने सोक पिट और ट्विन पिट बनाने की तकनीक सीखी. हफ्ते भर के बाद सीनियर राजमिस्त्री के तहत उनको काम करने का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया.
अब इन महिलाओं कमाई निर्माण मजदूरी के दौरान मिलने वाली दिहाड़ी से दोगुनी हो गई है. निशात के पति बेरोजगार है, ऐसे में वह अपने परिवार की बेहतर देखरेख कर पा रही है.
सबसे बड़ी बात कि इन महिलाओं में गजब का आत्मविश्वास आया है.
इन रानी मिस्त्रियों की तर्ज पर महिलाएं सामने आ रही हैं. स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज पर देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे जल जीवन कार्यक्रम (हर घर नल) कार्यक्रम में अब यह महिलाएं बतौर प्लंबर काम करना चाह रही है.
इन रानियों ने आत्मविश्वास के साथ अपना नया रास्ता चुना है. यह रास्ता ठोस है और इन पर चलकर प्लंबिंग और बढ़ईगीरी जैसे पुरुषों के वर्चस्व वाले कई कामकाज में महिलाएं जोर से दरवाजा खटखटा रही हैं.