अलीगढ़. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने कहा कि वे तलाकशुदा महिलाओं को इद्दत की अवधि के बाद गुजारा भत्ता मांगने की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले को चुनौती देंगे, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय में अलग-अलग राय सामने आई है. धर्मगुरु चौधरी इफ्राहीम हुसैन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा करने का फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया जाना चाहिए.
मीडिया से बात करते हुए हुसैन ने कहा, ‘‘जिस तरह से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करना चाहता है, मुझे लगता है कि इसमें जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए. ऐसा इसलिए, क्योंकि यह शरिया, महिलाओं और मानवता से जुड़ा हुआ है. एक तरफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कहता है कि भारत में शरीयत लागू नहीं होती और दूसरी तरफ वे कहते हैं कि शरीयत के अनुसार तलाक लेने वालों को गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए. ये विरोधाभासी बातें हैं.’’
सदाफ फातिमा ने दावा किया कि एआईएमपीएलबी चाहता है कि सभी कानून पुरुषों के लिए हों और वे महिलाओं को अपने अधीन करना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘यह (सुप्रीम कोर्ट का फैसला) सही है. और मैं नहीं चाहती कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसका विरोध करे. ऐसा इसलिए, क्योंकि शरीयत कानून के अनुसार, यह पुरुषों और महिलाओं के लिए समान है. लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चाहता है कि सभी कानून पुरुषों के लिए हों और महिलाओं को अपने अधीन किया जाना चाहिए. मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है. फातिमा ने कहा कि बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी ने कहा कि ‘‘शादी हर धर्म में एक पवित्र बंधन है.’’
फारुकी ने इस्लामी कानून के अनुसार विवाहित जोड़े के कर्तव्यों के बारे में बात करते हुए कहा, ‘‘इस्लाम में, इस बारे में विनिर्देश हैं कि शादी में जोड़े को कैसे व्यवहार करना चाहिए. पतियों की जिम्मेदारी है कि वे अपनी पत्नी का हर तरह से ख्याल रखें...उनकी धार्मिक जिम्मेदारी है कि जब तक वह आपकी पत्नी है, तब तक हर तरह से उसका ख्याल रखें.’’
तलाक के बारे में बात करते हुए, फारुकी ने कहा कि एक बार तलाक हो जाने के बाद अनुबंध समाप्त हो जाता है. उन्होंने कहा, ‘‘अब जब किसी कारण से पति-पत्नी साथ नहीं रह सकते हैं, तो चाहे पत्नी खुद तलाक ले या पति उन्हें तलाक दे. अब वे दोनों अपने अनुबंध संबंधी दायित्व से मुक्त हैं. जिस तरह की सुविधाएं, स्वामित्व और जिम्मेदारियां हैं, दोनों साथी अपने अनुबंध से बंधे हैं. अगर कोई इनका पालन नहीं कर रहा है, तो उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए और उसे धार्मिक कानून के अनुसार दंडित भी किया जाना चाहिए.’’
अपनी पत्नी की देखभाल करने के लिए पति के कर्तव्यों के बारे में बोलते हुए, फारुकी ने कहा, ‘‘इस्लामी कानून के अनुसार, जब तक आप निकाह के पवित्र रिश्ते से बंधे हैं, तब तक पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी की हर चीज का ख्याल रखे, भले ही उसके पास आय का अपना स्रोत हो.’’
बोर्ड ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘मानवीय तर्क के साथ ठीक नहीं है कि जब विवाह ही अस्तित्व में नहीं है, तो पुरुष को अपनी पूर्व पत्नियों के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है.’ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रविवार को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘इस्लामी कानून (शरीयत) के खिलाफ है.’ बोर्ड ने अपने अध्यक्ष को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी संभव उपाय शुरू करने के लिए अधिकृत किया कि यह निर्णय ‘वापस लिया जाए’.
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