पिंक टैक्स क्या है: महिलाओं से जुड़ी चीज़ें क्यों पड़ती हैं ज़्यादा महंगी

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 22-12-2025
What is the pink tax? Why are products marketed to women more expensive?
What is the pink tax? Why are products marketed to women more expensive?

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली  

पिंक टैक्स (Pink Tax) कोई आधिकारिक या सरकारी टैक्स नहीं है, बल्कि यह एक आर्थिक और सामाजिक अवधारणा है। इसका मतलब है— एक जैसे या लगभग समान उत्पाद और सेवाएं जब महिलाओं के लिए बेची जाती हैं, तो उनकी कीमत पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा रखी जाती है। यह अतिरिक्त कीमत बिल में “टैक्स” के रूप में नहीं दिखाई देती, बल्कि कीमत में छिपा हुआ लिंग आधारित भेदभाव होती है।

What Is Pink Tax In India? Meaning & Its Impact On Women

पिंक टैक्स कैसे और क्यों लगाया जाता है

कंपनियां अक्सर महिलाओं के उत्पादों को:

  • अलग रंग (गुलाबी, पेस्टल)

  • अलग पैकेजिंग

  • “for women”, “gentle”, “premium” जैसे शब्दों

के साथ बेचती हैं और इसी आधार पर कीमत बढ़ा देती हैं, जबकि उत्पाद का काम और गुणवत्ता लगभग समान होती है।

पिंक टैक्स कितना होता है? (Percentage के साथ)

अलग-अलग अध्ययनों और उपभोक्ता रिपोर्ट्स के अनुसार:

  • औसतन पिंक टैक्स: 7% से 13%

  • कुछ उत्पादों में यह 20% से 40% तक भी पाया गया है

  • कुछ मामलों में अंतर 50% तक दर्ज किया गया है

भारत में कोई आधिकारिक सरकारी आंकड़ा नहीं है, लेकिन बाजार में कीमतों की तुलना करने पर यही ट्रेंड देखने को मिलता है।

Pink Tax: क्या है पिंक टैक्स, महिलाओं को पता होनी चाहिए इससे जुड़ी ये खास  बातें

किन उत्पादों पर पिंक टैक्स सबसे ज़्यादा लगता है

1. पर्सनल केयर और ग्रूमिंग प्रोडक्ट्स

इन पर पिंक टैक्स सबसे ज्यादा देखा जाता है।

उत्पाद पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए कीमत
रेज़र और ब्लेड 10%–30% ज्यादा
शेविंग क्रीम / हेयर रिमूवल 20%–40% ज्यादा
डियोडरेंट 10%–25% ज्यादा
शैम्पू और बॉडी वॉश 5%–15% ज्यादा

अक्सर महिलाओं के प्रोडक्ट छोटे पैक में और ज़्यादा कीमत पर मिलते हैं।

2. कपड़े और फुटवियर

  • महिलाओं के कपड़े: 8%–20% महंगे

  • महिलाओं के जूते: 10%–30% महंगे

  • बच्चों में भी:

    • लड़कियों के कपड़े, लड़कों के मुकाबले 5%–15% ज्यादा महंगे

यह अंतर तब भी रहता है जब कपड़े का कपड़ा और निर्माण लागत समान होती है।

3. सेवाएं (Services)

सेवाओं में पिंक टैक्स ज्यादा साफ दिखाई देता है।

सेवा अतिरिक्त शुल्क
महिलाओं का हेयरकट पुरुषों से 30%–60% महंगा
ड्राई क्लीनिंग 15%–40% ज्यादा
सैलून और ब्यूटी सर्विस 20%–50% ज्यादा

अक्सर वजह बताई जाती है “ज्यादा समय” या “ज्यादा मेहनत”, लेकिन यह हर मामले में सही नहीं होती।

4. हेल्थ और हाइजीन प्रोडक्ट्स

  • सैनिटरी पैड

  • टैम्पॉन

  • पीरियड से जुड़े अन्य उत्पाद

भारत में:

  • 2018 से पहले सैनिटरी पैड पर 12% GST लगता था

  • विरोध और जागरूकता के बाद सरकार ने GST हटा दिया

हालांकि टैक्स हटने के बावजूद कई ब्रांड्स की कीमतें अब भी ऊंची बनी हुई हैं।

भारत में पिंक टैक्स की स्थिति

  • भारत में पिंक टैक्स को लेकर कोई अलग कानून नहीं है

  • यह पूरी तरह से कंपनियों की प्राइसिंग और मार्केटिंग रणनीति पर निर्भर करता है

  • GST ढांचे में जेंडर के आधार पर अलग टैक्स नहीं है, लेकिन बाजार में कीमतों का अंतर बना हुआ है

महिलाओं पर इसका आर्थिक असर

  • महिलाओं का लाइफटाइम खर्च पुरुषों की तुलना में ज्यादा हो जाता है

  • समान आय होने के बावजूद खर्च अधिक

  • मध्यम और निम्न आय वर्ग की महिलाओं पर ज्यादा असर

  • इसे आर्थिक विशेषज्ञ Gender-based economic discrimination मानते हैं

कंपनियां पिंक टैक्स क्यों लगाती हैं

  1. यह मानकर कि महिलाएं पर्सनल केयर पर ज्यादा खर्च करेंगी

  2. “प्रीमियम” और “स्पेशल” दिखाने की रणनीति

  3. ब्रांडिंग और पैकेजिंग को कीमत बढ़ाने का आधार बनाना

  4. उपभोक्ताओं द्वारा कम सवाल पूछना

क्या पिंक टैक्स गैरकानूनी है?

  • कानूनी रूप से: नहीं

  • नैतिक और सामाजिक रूप से: भेदभावपूर्ण

इसी वजह से कई देशों में जेंडर-न्यूट्रल प्राइसिंग की मांग तेज़ हो रही है।

The Real Cost of Pink Tax

पिंक टैक्स कोई सरकारी टैक्स नहीं, बल्कि बाजार की वह सच्चाई है जिसमें महिलाओं से चुपचाप ज्यादा कीमत वसूली जाती है।

भारत में सैनिटरी पैड से GST हटाना एक अहम कदम था, लेकिन कपड़े, पर्सनल केयर और सेवाओं में यह भेदभाव अब भी बना हुआ है। जब तक उपभोक्ता कीमतों की तुलना नहीं करेंगे और कंपनियों से जवाबदेही नहीं मांगेंगे, तब तक पिंक टैक्स बिना नाम के हमारी रोज़मर्रा की खरीदारी का हिस्सा बना रहेगा।

पिंक टैक्स कोई सरकारी टैक्स नहीं है, बल्कि महिलाओं के उत्पादों और सेवाओं में छिपा हुआ कीमत भेदभाव है। सैनिटरी पैड पर GST हटना भारत में इस दिशा में एक सकारात्मक कदम था, लेकिन कपड़े, कॉस्मेटिक्स और सेवाओं में पिंक टैक्स अब भी मौजूद है। इससे बचने के लिए उपभोक्ताओं को कीमतों की तुलना करनी होगी और कंपनियों से जवाबदेही मांगनी होगी।