आवाज द वॉयस / नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों में गोधरा ट्रेन नरसंहार में राज्य के उच्च पदाधिकारियों और अन्य संस्थाओं को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने पिछले चौदह दिनों तक याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, एसआईटी की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और गुजरात राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद आज यह निर्णय सुनाया. पीठ ने 9 दिसंबर, 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी हत्याकांड में मारे गए कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी ने एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
इसमें गोधरा हत्याकांड के बाद सांप्रदायिक दंगों को भड़काने के लिए राज्य के उच्चाधिकारियों पर बड़ी साजिश के आरोप लगाए थे. हालांकि, हाईकोर्ट ने जाफरी को आगे की जांच की मांग करने की स्वतंत्रता दी है. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता के तर्क का सारांश सिब्बल के तर्क का सार था कि एसआईटी ने मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं पर जांच नहीं की.
यह एक बड़ी साजिश को स्थापित करने के लिए आवश्यक है. उन्होंने पुलिस की निष्क्रियता और मिलीभगत के संबंध में जांच में अपर्याप्तता, अहमदाबाद शहर के पुलिस कंट्रोल रूप में अशोक भट्ट और ज़दाफिया नाम के दो मंत्रियों की उपस्थिति, पुलिस अधिकारियों के मोबाइल फोन डेटा, वीएचपी से सम्बद्ध व्यक्तियों की नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं.
लोक अभियोजक आदि इस बात से नाराज हैं कि याचिकाकर्ता द्वारा आधिकारिक रिकॉर्ड से एकत्र और प्रस्तुत किए गए सबूतों को एसआईटी द्वारा पूरी तरह से बिना सोचे समझे दरकिनार कर दिया गया. सिब्बल द्वारा विशेष रूप से इंगित किया गया था कि तहलका टेप जो नरोदा पाटिया मुकदमे में दोषसिद्धि हासिल करने में सफल रहे हैं,
जांच एजेंसी द्वारा रणनीतिक रूप से अनदेखी की गई. सिब्बल ने एक कदम आगे बढ़कर तर्क दिया कि एसआईटी द्वारा जिस तरह से जांच की गई, उससे लगता है कि वे कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके विपरीत, रोहतगी ने तर्क दिया कि एसआईटी ने अपना काम किया, जो अक्सर न्याय की खोज में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सीमा होती है.
उन्होंने जोर देकर कहा कि जकिया के आरोप किसी भी आपराधिक मामले का खुलासा नहीं करते. उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि वर्तमान में याचिका जकिया द्वारा नहीं बल्कि याचिकाकर्ता नंबर 2 यानी तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा संचालित की जा रही है, जिसका इसे आगे बढ़ाने का इरादा है .
गुजरात की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दंगों से निपटने में राज्य की तत्परता पर संक्षिप्त रिपोर्ट पेश की. उन्होंने वर्तमान याचिका को आगे बढ़ाने के खिलाफ याचिकाकर्ता संख्या 2 की याचिका का विरोध करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर भरोसा जताया . अपने रिज्वाइंडर तर्क में जांच में कमियों को इंगित करने के अलावा, सिब्बल ने तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ बयानबाजी पर भी पलटवार किया.