विज्ञान के क्षेत्र में लोहा मनवाने वाली दो आधुनिक भारतीय मुस्लिम महिला वैज्ञानिक बुशरा अतीक और खुशबू मिर्जा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 11-02-2023
डॉ खुशबू मिर्जा
डॉ खुशबू मिर्जा

 

मंजीत ठाकुर

डॉ. बुशरा अतीक कई मायनों में प्रेरणास्रोत हैं. पहली बात तो यही कि वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की छात्रा रही हैं और उन्हें पिछले साल 2020 में भारत के सबसे प्रतिष्ठित विज्ञान पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया गया है. उन्हें यह पुरस्कार मेडिकल साइंस के क्षेत्र में उनके अहम योगदान के लिए दिया गया है.

यह योगदान छोटा-मोटा नहीं है.

आइआइटी कानपुर में डिपार्टमेंट ऑफ बायोलजिकल साइंसेज ऐंड बायोइंजीनियरिंग में प्रोफेसर बुशरा अतीक की अगुआई में कई संस्थानों को मिलाकर बनी टीम ने एक अध्ययन किया और कैंसर के 15 फीसद मरीजों पर असर डालने वाले बेहद आक्रामक स्पिंक 1-पॉजिटिव (SPINK1-positive) प्रोस्टेट कैंसर के एक सब-टाइप की मॉलेक्यूलर मैकेनिज्म और उसकी पैथोबायोलजी का पता लगा लिया.

डॉ अतीक ने अपनी बीएससी, एमएससी और पीएचडी का पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ जूलॉजी से की. बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन के मिशीगन सेंटर फॉर ट्रांसलेशनल पैथोलजी में उन्होंने डॉ अरुल चिन्नैय्या के तहत पोस्टडॉक्टोरल फेलो के रूप में प्रशिक्षण हासिल किया.

डॉ अतीक के शोध में कैंसर बायोमार्कर्स, कैंसर जीनोमिक्स, नॉन-कोडिंग आरएनए, ड्रग टारगेट और प्रोस्टेट कैंसर जैसे विषय शामिल हैं.

डॉ बुशरा अतीक (फोटोः फर्स्टपोस्ट)

उनका काम प्रोस्टेट, स्तन और बड़ी आंत के कैंसर पर केंद्रित है. उनका शोध कैंसर बायोमार्कर और मॉलेक्यूलर बदलावों पर आधारित है जिससे प्रोस्टेट और स्तन कैंसर में बढ़ोतरी होती है.

वेबसाइट फर्स्टपोस्ट को दिए अपने इंटरव्यू में वह कहती हैं, “हमारी प्रयोगशाला कैंसररोधी उपचार के टारगेट्स की खोज करना चाहती है.” वह साथ में कहती हं कि इन टारगेट्स की पहचान से कैंसर का जल्दी ही पता लगाया जा सकेगा, और यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि जल्दी से पता लगने से कामयाबी के साथ उपचार होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

2019 में, डॉ. अतीक ने उस टीम की अगुआई कर रही थी जिसने जिसने स्पिंक1 पॉजिटिव प्रोस्टेट कैंसर सबटाइप के आणविक तंत्र और रोगविज्ञान को खोज निकाला. डॉ अतीक ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू को बताया, "हमने पाया कि EZH2 प्रोटीन का बढ़ा हुआ स्तर SPINK1 पॉजिटिव कैंसर में इन दो माइक्रोआरएनए के संश्लेषण में कमी को ट्रिगर करता है. और दो माइक्रोआरएनए के निम्न स्तर बदले में SPINK1 के अधिक उत्पादन की ओर ले जाते हैं.,

उन्होंने सीएसआइआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ और कनाडा, अमेरिका और फिनलैंड के प्रोस्टेट कैंसर पर काम करने वाले अन्य समूहों के सहयोग से आइआइटी कानपुर के अन्य शोधकर्ताओं के साथ हाल के एक अध्ययन में इस बात का पता लगाया कि एंड्रोजन डिप्रिवेशन थेरेपी, जिसका उपयोग प्रोस्टेट के उपचार के लिए किया जाता है, वह इसे ठीक करने के बजाय इसे बढ़ा देता है. प्रोफेसर अतीक ने रिसर्च मैटर्स को बताया, “फिलहाल, प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों के लिए एण्ड्रोजन डिप्रिवेशन थेरेपी के व्यापक उपयोग को देखते हुए, हमारे निष्कर्ष खतरनाक हैं. प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों को एंटी-एंड्रोजन थेरेपी देने से पहले काफी सोच-विचार लेना चाहिए.”

अब बुशरा भारतीय आबादी के म्युटेशनल परिदृश्य को जीन सीक्वेंसिंग के जरिए खोजना चाहती हैं. इसके साथ ही वह ऐसी विधि भी खोज निकालना चाहती हैं जिसके तहत प्रोस्टेट कैंसर के खास बायोमार्कर्स विकसित किए जा सकें और जिसकी पहचान महज यूरिन टेस्ट के जरिए ही हो सके. अभी प्रोस्टेट ग्रंथि में 12 छेद मोटी सुइयों से करके बायोप्सी की जाती है और तब उस कैंसर का पता लगाया जाता है. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा भी है, “बायोप्सी होते देखना ही काफी दर्दनाक है, और इस वजह से मुझे लगता है कि कोई खून के परीक्षण या यूरिन बेस्ड जांच का तरीका खोजा जाना चाहिए.” डॉ अतीक को लगता है कि प्रोस्टेट कैंसर की जांच के लिए यूरिन टेस्ट में बायोमार्कर्स खोजे जा सकते हैं.

भारत के सबसे बड़े विज्ञान पुरस्कार के बाद डॉ बुशरा अतीक के लिए उनका महिला होना मायने नहीं रखता. लेकिन करियर की शुरुआत में उनके एक सहपाठी ने उन्हें अंडर-ग्रेजुएट कॉलेज में टीचर बनने की सलाह दी थी. जाहिर है, डॉ. बुशरा ने उसकी बात को तवज्जो नहीं दी थी.

आज भी उनकी सलाह यही है, धीरज रखो और आलोचनाओं को आड़े न आने दो.

लगता तो यही है कि भारतीय विज्ञान का भविष्य डॉ बुशरा अतीक जैसे वैज्ञानिकों के हाथ मे सुरक्षित है.

 

खुशबू मिर्जा

चौगोरी मोहल्ला दिल्ली से लगभग 200किमी दूर उत्तर प्रदेश के अमरोहा शहर में एक छोटा सा मुस्लिम इलाका है. उस स्थान तक पहुँचने के लिए, मुरादाबाद से लगभग 40किमी पहले इटारसी से NH-24से उतरना पड़ता है, और उबड़-खाबड़ और धूल भरी सड़क पर 10किमी की ऊबड़-खाबड़ ड्राइव से गंतव्य तक पहुँचा जा सकता है.

संकरी गली में उर्दू के नेमप्लेट वाले पुराने पक्के घर हैं. टोपी पहने पुरुष और बुर्का में महिलाएं आज भी इलाके को पारंपरिक रूप देती हैं. अमरोहा, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों रहते हैं, को अमन की नगरी (शांति का शहर) कहा जाता है. इसने कभी सांप्रदायिक दंगा नहीं देखा.

Dr Khusboo Mirza

इस शांतिपूर्ण शहर की रहने वाली एक युवती खुशबू मिर्जा है, जो इस शहर में चांद पर जाने वाली महिला के रूप में जानी जाती हैं. खुशबू मिर्जा असल में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में वैज्ञानिक एफ निदेशक-स्तर के पद पर पहुंच गई है और चंद्रयान 1और चंद्रयान 2मिशनों की टीमों का हिस्सा थी.

24जुलाई 1985को जन्मी खुशबू ने अपने पिता सिकंदर मिर्जा को खो दिया था जब वह सिर्फ सात साल की थीं. एक असामान्य कदम में, उसकी मां फरहत ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अपने पति का पेट्रोल पंप चलाने के लिए धार्मिक मानदंडों को तोड़ा. खुशबू ने कक्षा 10तक एक हिंदी माध्यम के स्कूल में पढ़ाई की. उसने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में बी.टेक के लिए आवेदन किया और खेल कोटा के तहत सीट हासिल की क्योंकि वह एक वॉलीबॉल खिलाड़ी थी.

Dr khusboo mirza

उत्तर प्रदेश में बहुत से लोग सोचते हैं कि वह चांद पर गई थीं और इसीलिए उनको मून गर्ल कहा जाता है. खुशबू उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम आइकन और एक महिला आइकन के रूप में उभरी हैं. खुशबू का मानना है कि देश में कोई भी व्यक्ति अच्छा प्रदर्शन कर सकता है यदि उसे अच्छी शिक्षा प्रदान की जाए.

खुशबू मिर्जा की सफलता की कहानी से देश भर की लड़कियों को प्रेरित करने और परिवारों को अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद है, जिससे न केवल इन परिवारों बल्कि पूरे देश के बेहतर भविष्य की उम्मीद जगी है.