आश्चर्य किंतु सत्यः 200 साल पुरानी मस्जिद की सुरक्षा करते हिंदू, देते हैं अजान

Story by  सेराज अनवर | Published by  onikamaheshwari | Date 02-01-2024
Surprise but true: Hindus protect 200-year-old mosque, give azaan
Surprise but true: Hindus protect 200-year-old mosque, give azaan

 

सेराज अनवर / पटना 

यह किसी आश्चर्य से कम नहीं. मस्जिद मुसलमानों की, पर हिंदुओं ने न केवल इसकी साफ-सफाई और सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रखी है, उनके प्रयासों से ही मस्जिद में पांच वक्त अजान हो रही है. ईद पर मस्जिद में रंग-रोगन भी करवाई जाती है. यह अनोखी मस्जिद है बिहार की राजधानी पटना से 66 किलोमीटर दूरी नालंदा और गया जिला की सीमा पर स्थित गांव माड़ी में. इसका सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इस गांव में एक भी मुसलमान नहीं हैं.

पहले इसका नाम मंडी था. यहां की मिट्टी की सोंधी महक और लोगों की खासियत कुछ ऐसी है जिसे भुलाया नहीं जा सकता. ऐसा ही अनोखा दृश्य बेन प्रखंड के माड़ी गांव के लोगों ने पेश किया है, जो दुनिया के लिए नजीर है. यहां हिंदू परिवार गांव की मस्जिद की रखवाली कर रहे हैं.

पांचों वक्त अजान भी होती है

200 साल पुरानी मस्जिद अब भी गांव की धरोहर बनी हुई है. बताते हैं कि दंगों की वजह से इस गांव से मुसलमान पलायन कर गए.उनकी निशानी एक मस्जिद यहां है. इस गांव में एक भी घर मुसलमानों का नहीं है. अब चूंकी गांव में मुसलमान नहीं हैं तो ऐसे में इस गांव के हिन्दू भाईयों ने मस्जिद की देखरेख का बीड़ा उठा रखा है. नमाज नहीं होती है, पर अजान पांच वक्त होती है.इसका तरीका भी हैरान करने वाला है. हिंदुओं को अजान देनी नहीं आती तो वे पेन ड्राइव की मदद से अजान दिलाते हैं.

रिकॉर्डिंग के माध्यम से पांचों वक्त की अजान की आवाज सुनते हैं. चिप में अजान की रिकॉर्डिंग रखते है. ग्रामीणों को अजान के बारे में कोई जानकारी नहीं है. बस समय का पता रहता है. इसके लिए एक चिप की व्यवस्था की गई है जिसे मशीन में लगा कर निर्धारित समय पर अजान दिया जाता है.
 
मस्जिद का रख-रखाव और रंगाई-पुताई का जिम्मा भी हिन्दू परिवार वालों ने उठा रखा है. पूरे गांव के लोग इसमें बढ़ चढकर सहयोग करते हैं. यहां हिंदू समाज के लोग सुबह-शाम मस्जिद की साफ-सफाई करते हैं. हर साल ईद पर मस्जिद का रंग-रोगन किया जाता है. मस्जिद की सफाई का जिम्मा गौतम महतो, अजय पासवान, बखोरी जमादार व अन्य ने ले रखी है.
 
masjid

200 साल का इतिहास

बिहारशरीफ के वरिष्ठ पत्रकार अरुण मयंक बताते हैं कि इस मस्जिद का इतिहास दो सौ साल पुराना है.मस्जिद का निर्माण बिहारशरीफ स्थित सदरे आलम स्कूल के निदेशक खालिद आलम के दादा बदरे आलम ने 200 वर्ष पहले कराया था.
 
माड़ी गांव में 1981 से पहले अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समाज के लोग मिल-जुलकर रहते थे. 1981 में हुए दंगा के बाद मुस्लिम परिवार गांव से पलायन कर गए. इसके बाद से इस गांव में बहुसंख्यक समाज के ग्रामीण रहते हैं और गांव में बनी मस्जिद की देखभाल करते हैं. वह कहते हैं कि गांव में मंदिर होने के बाद भी हिंदू समाज के लोग मस्जिद को गांव की अनमोल धरोहर मानते हैं.
 

 
मंडी से नाम पड़ा माड़ी
 
बिहारशरीफ निवासी इमरान सगीर के मुताबिक पहले इस गांव का नाम मंडी था. यह जिले में एक बाजार के रूप में स्थापित था. जब नालंदा विश्वविद्यालय था तब वहां मंडी लगा करती थी, इसलिए गांव का नाम मंडी था. इसे बोलचाल में लोग माड़ी कहने लग गए. गांव में बार-बार बाढ़ व आग लगने से हुई तबाही के बाद इसका नाम बदलता चला गया. पहली तबाही के बाद इसका नाम नीम माड़ी पड़ा. फिर पाव माड़ी.
 
इसके बाद मुशारकत माड़ी और अंत में इस्माइलपुर माड़ी. जब नालंदा विश्वविद्यालय था तब वहां मंडी लगा करती थी. इसलिए गांव का नाम मंडी था. इसे बोलचाल में लोग माड़ी कहने लग गए. इमरान कहते हैं कि हजरत इस्माइल के दौर में गांव काफी खुशहाल था. वह करीब 5 से 6 सौ साल पहले गांव में आए थे. उनके आने के बाद गांव में कभी तबाही नहीं आई. शादी के बाद लोग सबसे पहले हजरत के आस्ताने पर जाकर सलाम पेश करते है. मस्जिद के सामने एक मजार भी है, जिस पर लोग चादरपोशी करते हैं.
 
आज ये मस्जिद व हजरत का आस्ताना गांव की धरोहर बन चुकी है. यही वजह है कि इस गांव में आज भी इंसानियत जिंदा है. पता ही नहीं चलता कि इस गांव में मुस्लिमों की आबादी नहीं है.
 
मस्जिद में गहरी आस्था
 
ग्रामीणों की मस्जिद से गहरी आस्था जुड़ी है. ऐसी कि कोई भी शुभ कार्य के शुरू में मस्जिद का पहला दर्शन जरूरी है .सदियों से जारी इस परंपरा को लोग निभा रहे हैं. गांव में पहले अक्सर आग लगती और बाढ़ आती थी.इस दौरान एक बुजुर्ग हजरत इस्माइल गांव के रास्ते से गुजर रहे थे.
 
वे वहां रुके और वहां उनका देहांत हो गया.उसके बाद यहां अगलगी और सैलाब आना बंद हो गया. तब से गांव को इस्माइलपुर माड़ी कहा जाने लगा. गांव वालों का कहना है कि यह मस्जिद उनकी आस्था से जुड़ी हुई है.
 
किसी शुभ कार्य से पहले हिंदू परिवार के लोग इस मस्जिद में आकर दर्शन करते हैं. गांव में कभी भी किसी परिवार के घर अशुभ होता है तब वह परिवार मजार पर दुआ मांगने पहुंच जाता है. यह भी मान्यता है कि जो मस्जिद के दर्शन नहीं करता उस पर आफत आती है.
 
बहरहाल, माड़ी गांव की इस मस्जिद से भले ही मुस्लिमों का नाता-रिश्ता टूट गया हो, परंतु हिंदुओं ने इसे बरकरार रखा है.सांप्रदायिक झगड़ों की बुनियाद डालने वालों और हिन्दू-मुसलमान के बीच भेद पैदा करने वालों के लिए सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बना हुआ है यह गांव.

माड़ी गांव के लोगों को आवाज द वॉयस का सलाम
 
कुछ बातें नादंला की

नालंदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है. यह सूफी मखदूम-ए-जहां  शेख शरफुद्दीन अहमद यहिया मनेरी की भी नगरी है. बिहारशरीफ में उनकी दरगाह है.हिंदू-मुसलमान दोनों यहां आस्था के साथ शीश नवाते हैं. ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी के लिए भी यह शहर जाना जाता है.नालंदा विश्व गुरु बना, क्योंकि इसने अनेक खूबियों को खुद में समेट रखा है.