-फ़िरदौस ख़ान
जहाँ पाकिस्तान में उर्दू को लेकर अनेक भाषाई टकराव देखने को मिलते हैं, वहीं भारत में यह ज़बान न केवल अपना अस्तित्व बनाए हुए है, बल्कि निरंतर फल-फूल रही है. तमाम साज़िशों और विरोधों के बावजूद उर्दू का नूर भारत में बदस्तूर कायम है. दरअसल, जब तक इस दुनिया में मुहब्बत ज़िंदा है, उर्दू भी रहेगी.
ग़ैर-उर्दू भाषी लोग अक्सर कहते हैं कि जब किसी को इश्क़ होता है, तो वह बेइख्तियार उर्दू बोलने लगता है—शायरी करने लगता है. उर्दू की मख़मली मिठास और नफ़ासत कानों में ऐसी मिठास घोलती है कि दिल उससे जुड़ जाता है. शायद यही वजह है कि इश्क़ करने वाले उर्दू के दीवाने हो जाते हैं.
अनीस देहलवी कहते हैं—
"जो दिल बांधे वो जादू जानता है,
मिरा महबूब उर्दू जानता है।"
अहमद वसी की पंक्तियाँ हैं—
"वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आए,
ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आए।"
उर्दू सचमुच वो ज़बान है जो माहौल को महका देती है. बशीर बद्र की शेर देखें—
"वो इत्रदान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का,
रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुशबू।"
उर्दू का जन्म इसी हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर हुआ. इसका मूल फ़ारसी से है और फ़ारसी की जड़ें अरबी में हैं, इसलिए इन दोनों भाषाओं का गहरा प्रभाव उर्दू पर देखा जा सकता है. उर्दू फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है.
आज़ादी से पहले भारत में अधिकतर सरकारी कामकाज फ़ारसी में होता था, और बाद में उर्दू ने भी अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज की. आज भी ज़मीन-जायदाद से जुड़े कई पुराने दस्तावेज़ फ़ारसी और उर्दू में मिलते हैं. पटवारियों को अब भी उर्दू सीखना ज़रूरी होता है.
उर्दू भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है. उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और दिल्ली में इसे अतिरिक्त आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ है. जम्मू-कश्मीर की पाँच आधिकारिक भाषाओं में भी इसका नाम शामिल है.
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 5 करोड़ 77 लाख लोग उर्दू बोलते हैं. उत्तर प्रदेश इस ज़बान का सबसे बड़ा केंद्र है, इसके बाद बिहार, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, और कर्नाटक में भी उर्दू व्यापक रूप से बोली जाती है. राजधानी दिल्ली में भी उर्दू भाषियों की अच्छी-खासी तादाद है.
भारत के अलावा पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, ईरान, इराक, इंडोनेशिया, मॉरिशस और खाड़ी देशों में भी उर्दू बोली और समझी जाती है.
दुनिया भर में उर्दू बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है और इसका कारण केवल इसका साहित्यिक महत्व नहीं, बल्कि लोगों का अपनी मातृभाषा से गहरा लगाव भी है. चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हों, उर्दू भाषी लोग आपसी संवाद में उर्दू ही इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। यही मुहब्बत उर्दू के वजूद को मजबूती देती है.
भारत सरकार ने उर्दू के प्रचार-प्रसार के लिए 1 अप्रैल 1996 को ‘राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद’ (NCPUL) की स्थापना की. यह शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है, जो उर्दू भाषा के विकास व प्रशिक्षण में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
यह संस्थान निम्नलिखित कोर्स प्रदान करता है:
उर्दू भाषा में एक वर्षीय डिप्लोमा
कंप्यूटर एप्लीकेशन, बिजनेस अकाउंटिंग और बहुभाषीय DTP
अरबी भाषा में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स
कैलीग्राफी और ग्राफिक डिजाइनिंग
पेपर मेशी में सर्टिफिकेट कोर्स
देशभर में कई अन्य संस्थान भी उर्दू को बढ़ावा देने में लगे हैं:
दिल्ली में: ऐवान-ए-ग़ालिब, ग़ालिब अकादमी, अंजुमन तरक़्क़ी-ए-उर्दू (हिन्द)
हैदराबाद में: इदारा अदबियात-ए-उर्दू, मौलाना आज़ाद ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट
मुम्बई में: अंजुमन-ए-इस्लाम उर्दू रिसर्च इंस्टिट्यूट
इसके अतिरिक्त देश के हर राज्य में राज्य स्तरीय उर्दू अकादमियां काम कर रही हैं, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, गुजरात, और जम्मू-कश्मीर की अकादमियाँ.
कुछ प्रमुख विश्वविद्यालय जहाँ उर्दू को विशेष महत्व दिया जाता है:
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU)
जामिया मिल्लिया इस्लामिया
दिल्ली विश्वविद्यालय
उस्मानिया विश्वविद्यालय (हैदराबाद)
कश्मीर विश्वविद्यालय (श्रीनगर)
इनके पुस्तकालयों में उर्दू साहित्य का अद्भुत संग्रह है, जो उर्दू प्रेमियों के लिए किसी ख़जाने से कम नहीं.
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के वजूद में आने के साथ ही उसे एक ऐसी ज़बान की ज़रूरत महसूस हुई जो पूरे देश को जोड़ सके. लिहाज़ा उर्दू को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया गया. उस समय पाकिस्तान दो हिस्सों में था—पूर्वी और पश्चिमी. 1956 में बांग्ला को दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला, लेकिन 1971 में पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया, जहाँ बांग्ला को मुख्य भाषा माना गया.
हालाँकि पाकिस्तान में उर्दू को सांस्कृतिक विरासत के तौर पर देखा जाता है, लेकिन पंजाबी वहाँ सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। एथनोलॉग के अनुसार, पाकिस्तान में कुल 74 भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से 66 स्थानीय और 8 विदेशी भाषाएँ हैं.
उर्दू को साहित्यकारों और शायरों ने अपने लहज़े और अदब से ज़िंदा रखा. दाग़ देहलवी का शेर इस ज़बान की गरिमा को बख़ूबी बयाँ करता है—
"नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो,
कि आती है उर्दू ज़बां आते आते।"
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, एक तहज़ीब है—मुहब्बत की, मिठास की और अदब की. इसका कारवां रुकने वाला नहीं। जब तक दिलों में जज़्बात ज़िंदा हैं, उर्दू का सफ़र भी चलता रहेगा.
(लेखिका शायरा, कहानीकार और पत्रकार हैं)