अर्सला खान/नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश का देहरियावां गांव भारत की गंगा-जमुनी तहजीब की जीवंत तस्वीर पेश करता है. यह गांव उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो मानते हैं कि धर्म और संस्कृति के नाम पर समाज को बाँटा नहीं जा सकता. देहरियावां की खासियत यह है कि यहां एक ही प्रांगण में मंदिर और मस्जिद स्थित हैं, और दोनों धार्मिक स्थलों में बिना किसी भेदभाव के पूजा और नमाज अदा की जाती है.
इस गांव की निवासी संगीता यादव बताती हैं कि हम यहां नमाज अदा करते हैं और वे पूजा करते हैं. यहां कोई भेदभाव नहीं है. उनका यह बयान केवल एक विचार नहीं, बल्कि गांव की सामूहिक सोच और भावना का प्रतिबिंब है.
देहरियावां में सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे की भावनाओं का पूरा सम्मान करते हैं. त्योहारों पर यह गांव एक रंगीन और प्रेम से भरा नज़ारा पेश करता है. दीपावली हो या ईद, यहां हर धर्म के लोग मिलकर खुशियां मनाते हैं.
गांव के एक और बुजुर्ग नवी अहमद कहते हैं कि नमाज का समय तय होता है. जब हम नमाज पढ़ते हैं, तो मंदिर में बजने वाले ढोल और आवाजें कुछ समय के लिए बंद कर दी जाती हैं. उसके बाद, फिर से पूजा और भजन होते हैं. हम एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं का पूरा ध्यान रखते हैं." इस आपसी समझ और सौहार्द से यह गांव आज पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है.
शांत और एकजुट रहते हैं लोग
देहरियावां गांव के लोग यह भी गर्व से बताते हैं कि जब 1992 में अयोध्या और आस-पास के क्षेत्रों में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था, तब भी उनका गांव पूरी तरह शांत और एकजुट रहा. उस कठिन समय में भी यहां के लोगों ने एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा. यह केवल उनके आपसी रिश्तों की गहराई को नहीं, बल्कि उनके द्वारा अपनाई गई मूल भारतीय संस्कृति की भी मिसाल है.
दो धर्मों को जोड़ने वाला स्थल
गांव में स्थित मंदिर और मस्जिद केवल धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि वे दो दिलों को जोड़ने वाली पुल की तरह हैं. यहां आकर यह महसूस होता है कि धर्म का मकसद लोगों को जोड़ना है, तोड़ना नहीं.
देहरियावां गांव उस भारत का प्रतिनिधित्व करता है जिसकी नींव भाईचारे, मोहब्बत और आपसी सम्मान पर रखी गई है. आज जब देश के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर तनाव और राजनीति हो रही है, देहरियावां एक रोशनी की किरण बनकर सामने आता है. यह गांव सिखाता है कि अगर दिलों में सच्ची इंसानियत हो, तो कोई भी दीवार इतनी ऊंची नहीं कि उसे लांघा न जा सके.