आरएसएस नेता और मुस्लिम बुद्धिजीवि बोले-आगे आएं, खुले दिल से मिलें, सब ठीक होगा !

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 26-01-2023
आरएसएस नेता और मुस्लिम बुद्धिजीवि बोले-आगे आएं, खुले दिल से मिलें, सब ठीक होगा !
आरएसएस नेता और मुस्लिम बुद्धिजीवि बोले-आगे आएं, खुले दिल से मिलें, सब ठीक होगा !

 

मनसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

देश में हिंदू और मुसलमानों के बीच बहुत बड़ी गलतफहमियां हैं. एक दूसरे के बारे में अच्छे विचारों की कमी है. इसे दूर करने के लिए दोनों समुदायों के लोगों को आगे आना होगा, लेकिन यह रातोंरात नहीं होगा. इसमें समय लगेगा. इसके लिए हमें मिलते रहना है. खुले दिल से एक-दूसरे के दुख-दर्द को सुनना है और उसका समाधान करना है. देश के लिए यह समय की सबसे बड़ी जरूरत है.

ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के तीन महत्वपूर्ण नेताओं की देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों, विद्वानों और महत्वपूर्ण मुस्लिम हस्तियों के साथ चर्चा के दौरान व्यक्त किए गए. जिसमें दोनों पार्टियों ने इस बात पर जोर दिया कि देश को आगे बढ़ाने के लिए दोनों वर्गों को एक-दूसरे के करीब लाना होगा.
 
दरअसल, यह मुलाकात देश के पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के साथ शुरू की गई बातचीत के सिलसिले की एक नई कड़ी बनकर सामने आई है.बता दें कि इससे पहले पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने राजधानी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से बात की थी और देश के मौजूदा हालात को बदलने के लिए बातचीत की पेशकश की थी.
 
जिसे मोहन भागवत ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.उन्होंने इस संबंध में आगे की चर्चा के लिए राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार, आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक राम लाल और आरएसएस की ओर से कृष्ण गोपाल को नियुक्त किया.
 
अब इन तीनों नेताओं ने 14 जनवरी को दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग, पूर्व चुनाव आयुक्त शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी, पत्रकार और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी, होटल मालिक सईद शेरवानी ने मुलाकात की. एएमयू के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्त जमीरुद्दीन शाह बैठक में नहीं पहुंच सके.
 
खास बात यह है कि जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा हिंद और दारुल उलूम देवबंद के धर्मगुरु भी इस बैठक में मौजूद थे. जबकि 13 जनवरी को मुस्लिम धार्मिक संगठनों के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने नजीब जंग से पत्रकार शहीद सिद्दीकी के आवास पर मुलाकात की और आरएसएस प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक से पहले बिंदु तैयार किए.
 
जाने-माने उद्योगपति सईद शेरवानी ने आवाज द वॉयस को बताया कि हमारी मुलाकात ढाई घंटे तक चली जो बहुत सफल रही. इस बार जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा हिंद और दारुल उलूम देवबंद के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल हुए. मुख्य उद्देश्य हमारे द्वारा शुरू की गई पहल के दायरे को विस्तृत करना है.
 
बातचीत के बारे में उन्होंने आवाज द वॉयस से कहा कि दोनों पक्षों ने माना है कि बातचीत से हर समस्या का समाधान हो सकता है, इसलिए गलतफहमी दूर करना जरूरी है. इसमें समय लगेगा. यह रातों-रात संभव नहीं है. इसके लिए मुलाकातों का सिलसिला जारी रखना होगा.
 
सईद शेरवानी ने कहा कि चर्चा के दौरान सभी की एक राय थी कि हर वर्ग या संप्रदाय में अच्छे और बुरे तत्व होते हैं. शिकायत है कि मुसलमान अपने मजहब को नहीं समझते. इसी तरह मुस्लिम प्रतिनिधियों ने कहा कि हर चीज को जिहाद और मुसलमानों को जिहादी कहने की प्रथा दर्दनाक हो गई है, इसलिए मुसलमान इससे पीड़ित हैं.

सईद शेरवानी ने कहा कि मैंने कहा कि जब मैं बिजनेस ट्रिप पर देश से बाहर जाता हूं और कोई पूछता है कि भारत में मुसलमानों के साथ क्या हो रहा है, तो दुख होता है, मुझे अच्छा नहीं लगता. आरएसएस के प्रतिनिधिमंडल ने इसे स्वीकार किया।
 
बैठक में अभद्र भाषा, दंगे, मॉब लिंचिंग, सरकार द्वारा आबादी पर बुलडोजर चलाने और काशी मथुरा मंदिर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई. सईद शेरवानी के मुताबिक, हमने नफरत का मुद्दा उठाया.
 
धर्म संसद से लेकर मीडिया तक जिस तरह के बयान दिए जा रहे हैं, उससे मुसलमानों को भी काफी पीड़ा हो रही है. जिस पर आरएसएस के प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि हर किसी पर हमारा नियंत्रण नहीं है.
 
आरएसएस देश के सभी हिंदुओं का प्रतिनिधि नहीं करता, इसलिए पूरा समाज संगठन को न तो सुनेगा और न ही मानेगा. ये अलग-अलग संगठन और अलग-अलग नेता हैं. आरएसएस उनकी बातों पर विश्वास नहीं करता.
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उन्होंने कहा कि हम सब इस बात पर सहमत हुए हैं कि हम बातचीत का दायरा बढ़ाएंगे. इस प्रक्रिया को अलग-अलग शहरों में ले जाएंगे. वहीं मोहन भागवत ने कहा है कि जब भी उनकी जरूरत होगी वह भी उस चर्चा का हिस्सा बनेंगे जो उनकी पहल पर शुरू की गई है.
 
दरगाह अजमेर शरीफ के प्रमुख और चिश्ती फाउंडेशन के प्रमुख सैयद सलमान चिश्ती ने आवाज द वॉयस से बात करते हुए कहा कि बैठक बहुत सकारात्मक रही, जिसमें दोनों पक्षों ने खुलकर अपने विचार व्यक्त किए.
 
दोनों पक्षों की ओर से शिकायत थी कि कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिससे चोट लगती है. आरएसएस के नेताओं ने कहा कि हम काफिर शब्द के इस्तेमाल से परेशान हैं, जिस पर हम सहमत थे कि कुछ बदमाश ऐसे काम करते हैं जो स्वीकार्य नहीं हैं. उनका उद्देश्य शरारत करना है. इसी तरह मुस्लिमों को जिहादी कहने पर भी चर्चा हुई.

  सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि मैंने आरएसएस के प्रतिनिधिमंडल को अजमेर शरीफ दरगाह आने का न्यौता दिया है. आरएसएस के नेताओं ने भी हमें नागपुर आने का न्यौता दियाहै.
 
आरएसएस के प्रतिनिधिमंडल ने मानवीय सेवा की भावना को सलाम करते हुए कहा कि हमें सूफी विचार और तरीके पसंद हैं. नेताओं ने मुस्लिम प्रतिनिधियों से नागपुर आकर संगठन की सेवाओं की समीक्षा करने को कहा.
 
सैयद सलमान चिश्ती ने आवाज द वॉयस से बात करते हुए कहा कि आरएसएस नेताओं ने माना है कि देश में 20 करोड़ मुसलमानों को अलग-थलग करके विकास के बारे में नहीं सोचा जा सकता.
 
इससे देश का ही नुकसान होगा. संघ के नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि देश में विभिन्न मंच बनाए जाने चाहिए, जिन पर इस तरह के संवाद शुरू किए जा सकें. सूफी और संत भी आगे आए.
 
सैय्यद सलमान चिश्ती ने कहा कि इस देश का धार्मिक सहिष्णुता का इतिहास रहा है. बड़े दुख की बात है कि हम नई पीढ़ी को इसके बारे में नहीं बता पाए.इतिहास की उन घटनाओं को दोहराने की जरूरत है, जो इस देश की खूबसूरती की गवाह हैं.
 
आरएसएस के प्रतिनिधिमंडल से बात करने के बाद पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने कहा कि हमारी एक और सुखद मुलाकात हुई. जिसमें मुस्लिमों को किनारे रखकर समाज की चिंताओं से अवगत कराया गया. उन्होंने कहा कि वह दूसरे शहरों में फिर से मिलने के लिए उत्सुक हैं.

जमात-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय सचिव मलिक मुतस्सिम खान ने कहा कि आरएसएस नेताओं के सामने अभद्र भाषा का मुद्दा उठाया गया, जिस पर आरएसएस के नेताओं ने माना कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की बदनामी हुई है.
 
तीन घंटे तक चली मैराथन बैठक में यह प्रतिबद्धता भी दोहराई गई कि इस तरह की बैठकें अन्य शहरों में भी आयोजित की जाएंगी.बता दें कि इससे पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले साल 22 अगस्त को पांच बड़े मुस्लिम बुद्धिजीवियों से पहली बार मुलाकात की थी.