खुसरो फाउंडेशन की तीन किताबों का विमोचनः एनबीटी निदेशक बोले-नारी को संवैधानिक अधिकार देने के लिए सारे प्रयास किए जाएं

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 08-02-2025
खुसरो फाउंडेशन की तीन किताबों का विमोचनः एनबीटी निदेशक बोले-नारी को संवैधानिक अधिRelease of three books of Khusro Foundation: NBT Director said- All efforts should be made to give constitutional rights to womenकार देने के लिए सारे प्रयास किए जाएं
खुसरो फाउंडेशन की तीन किताबों का विमोचनः एनबीटी निदेशक बोले-नारी को संवैधानिक अधिRelease of three books of Khusro Foundation: NBT Director said- All efforts should be made to give constitutional rights to womenकार देने के लिए सारे प्रयास किए जाएं

 

आवाज द वाॅयस / नई दिल्ली

नेशनल बुक ट्रस्ट आॅफ इंडिया के निदेशक युवराज सिंह ने कहा है कि नारी को सम्मान और बराबरी कर दर्जा देने के लिए संवैधानिक तौर पर हमें जो कुछ भी करना पड़े करना चाहिए.उन्होंने कहा कि हमारे वेदों में भी नारी के सम्मान की बातें कही गई हैं. उन्हें बराबरी का दर्ज देने की बात कही गई है. समाज को उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी को समझना होगा. लेखक इसे बखूबी समझते हैं.

उन्होंने कहा कि दुनिया में लेखक हमेशा से अनसंग हीरो रहे हैं. प्रकाशक भी उसी कैटेगरी में आते हैं, समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है, पर लेखक यह बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वह विश्व पुस्तक मेले में खुसरो फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे.

इस मौके पर खुसरो फाउंडेशन की तीन पुस्तकों 'मुस्लिम वुमेन ए मेनिफेस्टो फार चेंज', 'सारा संसार एक परिवार', 'मजाहिब ए आलम में इंसाफ का तसव्वुर' का लोकार्पण किया गया, जिसमें प्रमुख बुद्धिजीवियों, शिक्षा विशेषज्ञों, मानवाधिकार और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों ने भाग लिया.


इस मौके पर विशेष अतिथि के तौर पर मौजूद जामिया मिलिया इस्लामिया के मानविकी विभाग के डीन प्रोफेसर इक्तिदार मोहम्मद खान ने कहा कि  हम संविधान की छाया में रहते हैं. हमें उससे केवल वही मिलना चाहिए जो हमारे लिए लाभदायक हो, बाकी को नजरअंदाज कर दें.

इससे बड़ा कोई अन्याय नहीं हो सकता. इसके लिए किसी धर्म, किसी आस्था, किसी रंग या किसी नस्ल की कोई समस्या नहीं है. हम सभी भारतीय होने के अपने अधिकार का प्रयोग करें. यही सबसे बड़ा न्याय होगा. प्रोफेसर  इक्तिदार ने प्रोफेसर ख्वाजा अब्दुल मुंतकीम की पुस्तक ' विश्व के धर्मों में न्याय की अवधारणा  ' पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए  कहा कि हम भारत में रहते हैं, और हमें भारतीय नागरिक होने का गौरव प्राप्त है.

अतः यह उचित और न्यायसंगत है कि जिस संविधान के तहत हम रह रहे हैं, उसे अपने लिए सर्वोत्तम नागरिक मार्गदर्शक के रूप में अपनाएं, अन्यथा यह हमारा दोगलापन कहा जाएगा. प्रोफेसर इक्तिदार ने आगे कहा कि पुस्तक  की प्रस्तावना के आलोक में मुझे यह समझ में आया  कि इसमें विश्व के सभी धर्मों में समान बातों का उल्लेख है.

यह सामान्य बात है ईश्वर के सार में विश्वास, जिसे धर्म कहते हैं. इस सिद्धांत या विचार को सृष्टिकर्ता की अवधारणा कहा जाता है.  इसके साथ ही हर धर्म में जो समान है, वह है न्याय.इस विषय पर बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि चूंकि मैं यहां एक इस्लामी विद्वान के रूप में हूं, इसलिए मुझे पता है कि कुरान बार-बार कहता है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान न्यायी है और न्याय करने वालों से प्यार करता है.

यह कई बार दोहराया गया है. इसके लेखक, चाहे पैगंबर के अंतिम उपदेश का जिक्र करते हैं  या कई अन्य घटनाओं का उल्लेख करते हुए, हमें इस्लाम में न्याय की स्थिति के बारे में बताते हैं. इसके साथ ही हिंदू धर्म और ईसाई धर्म पर भी चर्चा की गई. लगभग सात या आठ धर्मों का उल्लेख किया गया है.

प्रोफेसर इक्तिदार ने आगे कहा कि धर्म को छोड़ दें. कोई भी संस्था जिसमें न्याय नहीं है, वह नष्ट हो जाएगी. चाहे वह धार्मिक संस्था हो, राजनीतिक संस्था हो या सामाजिक संस्था हो. यदि कोई भी संस्था न्याय के मार्ग से भटक जाती है, तो उसका पतन निश्चित है. न्याय में देरी हो सकती है. इसमें कुछ समय लग सकता है, लेकिन इसे भुलाया नहीं जाएगा. 

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज की इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. सैयद मुबीन ज़हरा ने डॉ. मुहम्मद मारूफ़ शाह की पुस्तक 'मुस्लिम वुमेन ए मेनिफेस्टो फार चेंज' पर प्रकाश डाला. 

उन्होंने कहा कि सबसे पहले मैं के लेखक को बहुत-बहुत बधाई देना चाहूँगी. इस विषय पर उनके विचार सुनने के बाद मैंने उनमें जो उत्साह महसूस किया, वह काबिले तारीफ़ है. उन्होंने कहा कि मैं कई वर्षों से महिला अधिकारों और समानता पर काम कर रही हूँ,

जबकि संयुक्त राष्ट्र का मानना ​​है कि लैंगिक समानता के सपने को साकार करने में कई सौ वर्ष लगेंगे. मेरा यह भी मानना ​​है कि जब तक हम इस लक्ष्य में सफल नहीं होते, हमें चैन से नहीं बैठना चाहिए. यह एक लंबी यात्रा है. एक लंबा संघर्ष  है. मेरा मानना ​​है कि बेशक मुसलमानों में महिलाएँ बहुत पिछड़ी हुई हैं, लेकिन यह लैंगिक मुद्दा एक आम मुद्दा है. ये ऐसे मुद्दे हैं जो एक दर्द हैं. 

उन्होंने कहा कि हमारा संविधान हमें अधिकार देता है. मेरा अनुरोध है कि हितधारकों को महिला विभाग की इस संवैधानिक गारंटी का लाभ उठाना चाहिए. हमें भी इस मामले में पहल करनी होगी. हमें एक दूसरे की मदद करनी होगी. उन्होंने आगे कहा कि निस्संदेह समय बदल रहा है.

कई बदलाव आ रहे हैं. इसका एक उदाहरण यह है कि जामिया मिलिया इस्लामिया, जहां अब तक कोई महिला कुलपति नहीं थी, इस संस्थान को भी अपनी पहली महिला कुलपति मिली. इसके साथ ही जीएनयू को भी यह सम्मान मिला. जेएनयू  में भी एक महिला कुलपति आई. इसका एक उदाहरण अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय है, जहां एक महिला कुलपति पहली महिला कुलपति बनी.

इससे पहले प्रोफेसर ख्वाजा अब्दुल मुंतकीम ने अपनी पुस्तक 'विश्व धर्मों में न्याय की अवधारणा' पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस कृति का शीर्षक ही स्वतः स्पष्ट है. यद्यपि न्याय के प्रावधान के संबंध में सभी धर्मों का दृष्टिकोण लगभग एक जैसा है, तथापि न्याय किस प्रकार प्रदान किया जाना चाहिए,

इस संबंध में प्रत्येक धर्म और प्रत्येक विचारधारा के अपने-अपने मानक हैं. हमने इस कार्य में ऐसी कोई बात शामिल नहीं की है जिससे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे.हिंदू धर्म में न्याय की अवधारणा हिंदू कानून के सिद्धांतों पर आधारित है.

इनमें हिंदू धार्मिक परंपराओं से संबंधित पवित्र ग्रंथ शामिल हैं, जैसे वेद, उपनिषद, महाभारत, गीता, रामायण, सूत्र और पुराण. इन सिद्धांतों का आधार धर्मशास्त्र में धर्म शब्द से गहरा और अविभाज्य संबंध है, जिसका प्रतिपादन वेद, प्राण और स्मृति आदि में किया गया है.

इस संबंध में उन्होंने प्राचीन भारतीय दर्शन वसुधैव कुटुम्बकम को लिया है, जिसका अर्थ है कि विश्व एक परिवार है, और यह माना जाता है कि किसी के साथ अन्याय होने की कोई संभावना नहीं है. इस मान्यता के अनुसार संपूर्ण विश्व एक परिवार है और संपूर्ण विश्व को इसकी संतान माना जाता है. 

उन्होंने कहा कि इस्लाम में न्याय और निष्पक्षता का स्रोत सर्वशक्तिमान ईश्वर है तथा इस स्रोत से निकलने वाले कानूनों के कार्यान्वयन का दायित्व मुस्लिम समुदाय को सौंपा गया है. इसीलिए इस्लाम में न्याय को सबसे महत्वपूर्ण मानवीय कर्तव्यों में शामिल किया गया है . इसे सरकार का पहला कर्तव्य घोषित किया गया है. 

उन्होंने कहा कि इस्लाम में न्याय और निष्पक्षता की अवधारणा नामक अध्याय में पाठकों को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो शांति, सौहार्द और सौहार्द का संदेश देता है। यह वह धर्म है जो एक व्यक्ति के हत्यारे को समस्त मानवता का हत्यारा घोषित करता है तथा यह भी कहता है कि जिसने अन्यायपूर्वक एक व्यक्ति की हत्या की,

उसने समस्त मानवता की हत्या कर दी तथा जिसने एक व्यक्ति का जीवन बचाया, उसने समस्त मानवता का जीवन बचाया. इसके अलावा, कुरान की आयतों और हदीसों के संदर्भ में यह समझाने का प्रयास किया गया है कि अन्य धर्मों की तरह इस्लाम में भी हिंसा या आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है. 

 उन्होंने आगे कहा कि ईसाई धर्म में भी अन्य धर्मों की तरह न्याय को एक महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है, लेकिन ईसाई धर्म में न्याय की इस अवधारणा को ईश्वर का सार माना जाता है. जिस प्रकार ईश्वर अपने सेवकों का उनके कर्मों के अनुसार न्याय करेगा तथा कभी अन्याय नहीं करेगा, उसी प्रकार ईसाई धर्म में भी न्याय का अर्थ यही है: जिस प्रकार बाइबल में ईश्वर को न्यायी बताया गया है,

उसी प्रकार हम सभी मनुष्यों का यह कर्तव्य है कि हम सभी के प्रति न्यायपूर्ण रहें तथा किसी के साथ अन्याय न करें. जिस प्रकार इस्लाम लोगों को सर्वशक्तिमान ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांगने के लिए प्रोत्साहित करता है, उसी प्रकार ईसाई धर्म भी पापियों को ईश्वर से क्षमा मांगने का अवसर देता है.

उन्होंने पुस्तक के विभिन्न अध्यायों के बारे में भी बात की और उनके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि "मुसलमानों की नज़र में न्याय और इंसाफ़ के महान अग्रदूत हज़रत मुहम्मद" नामक अध्याय में हमने यह दिखाने की कोशिश की है कि न केवल इस्लाम के अनुयायी बल्कि गैर-मुस्लिम विचारकों ने भी न्याय और समानता के बारे में पैगंबर के विचारों की प्रशंसा की है और उन्हें अपने जीवन में लागू किया है

.इसके साथ ही पुस्तक में "न्याय और समानता को बढ़ावा देने में धार्मिक नेताओं, शिक्षकों और अभिभावकों की मार्गदर्शक भूमिका" नामक अध्याय में उनकी भूमिका के महत्व को दर्शाया गया है. उन्होंने कहा कि पुस्तक के एक अध्याय अलविदा खुतबा में पवित्र पैगम्बर द्वारा अपने अंतिम खुतबे में दिया गया मानवता, न्याय, भाईचारे और समानता का संदेश न्याय, निष्पक्षता और समानता का स्पष्ट संकेत है.

इतना ही नहीं, 'स्वामी विवेकानंद का सामाजिक न्याय और समानता का संदेश' नामक अध्याय में हमने सामाजिक न्याय और समानता पर स्वामी विवेकानंद के विचारों को शामिल करते हुए बताया है कि उन्होंने न केवल कानूनी न्याय की बात की, बल्कि इसके नैतिक पहलुओं को भी काफी महत्व दिया.

बच्चों की पुस्तक ' सारा संसार एक परिवार ' के लेखक मुहम्मद अली शाह शोएब ने  इसके महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि इस पुस्तक की कहानियाँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि बच्चों के दिलो-दिमाग को झकझोरने और उन्हें जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाने का एक प्रयास है.

इन कहानियों में ऐसे पात्र और घटनाएं हैं जो न केवल बच्चों को उनकी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करेंगी, बल्कि उन्हें यह भी सिखाएंगी कि समाज में हर धर्म, हर जाति और हर लिंग के लोग समान हैं. किसी के प्रति घृणा या पूर्वाग्रह मानवता के विरुद्ध है.

यह पुस्तक बच्चों को यह संदेश देने का प्रयास करती है कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं, बल्कि संवाद और भाईचारे से हर समस्या का समाधान किया जा सकता है. सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है. यह वाक्य हमें उस मूल सिद्धांत की याद दिलाता है जो हमारी सभ्यता का आधार है- वसुधैव कुटुम्बकम . इस्लाम में भी यही सिखाया जाता है: "सारी सृष्टि अल्लाह का परिवार है." दोनों का उद्देश्य यह है कि यह विश्व एक परिवार की तरह है और सबसे अच्छा इंसान वह है जो इस परिवार के कल्याण के लिए काम करता है.

पृथ्वी पर शांति स्थापित करता है. उन्होंने कहा कि जब बच्चे समझेंगे कि पूरा विश्व एक परिवार की तरह है, तो उनके दिल में दूसरों के लिए करुणा, सम्मान और भाईचारे की भावना विकसित होगी. यह जुनून उन्हें एक ऐसे नागरिक के रूप में ढालेगा जो न केवल अपने परिवार और समुदाय के लिए बल्कि पूरे देश और दुनिया के लिए भी उपयोगी होगा.

मुहम्मद अली शाह ने आगे कहा कि आज के युग में ऐसी पुस्तकों की आवश्यकता है जो न केवल बच्चों को जानकारी प्रदान करें, बल्कि उन्हें सोचने और अपने विचारों को विकसित करने का अवसर भी प्रदान करें. "सारा संसार एक परिवार इसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास है."

डॉ. मुहम्मद मारूफ शाह ने अपनी पुस्तक 'मुस्लिम वुमेन ए मेनिफेस्टो फार चेंज' पर प्रकाश डाला. उन्होंने इस अवसर पर कहा कि महिला अधिकारों और अन्य मुद्दों पर कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. यह सिलसिला जारी रहेगा क्योंकि ये मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं और इतनी चर्चा के बावजूद कई लोगों के लिए बुनियादी बिंदुओं पर स्पष्टता का अभाव है.

मुस्लिम महिलाओं से संबंधित कई मुद्दों पर अत्यधिक विरोधाभासी सोच है, जिसमें विभिन्न विचारधाराएं एक-दूसरे पर इस्लामी शिक्षाओं से भटकने या औपनिवेशिक शासकों की नकल करने का आरोप लगाती हैं. कई पुस्तकें इन समस्याओं का विस्तार से वर्णन करती हैं, ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भों का हवाला देती हैं या स्थिति पर दुख व्यक्त करती हैं, लेकिन कोई स्पष्ट व्याख्या या कार्ययोजना प्रस्तुत करने में विफल रहती हैं.

 यह पुस्तक महिला जीवन के विभिन्न क्षेत्रों और क्षेत्रों की महिलाओं के साथ व्यापक संवाद के माध्यम से प्राप्त सुझावों पर आधारित है. इसमें महिला मुद्दों पर प्रमुख महिला लेखकों और महिला अधिकारों का समर्थन करने वाले पुरुष विचारकों के विचार भी शामिल हैं, जिनके विचारों को व्यापक स्वीकृति मिली है. उन्होंने कहा कि यह पुस्तक किसी भी सैद्धांतिक रुख को अपनाने से बचते हुए केवल कुछ सुझाव प्रस्तुत करती है जिन पर विचार किया जा सकता है. 

खुसरो फाउंडेशन के संयोजक डॉ. हफीज-उर-रहमान ने समारोह के आरंभ में संगठन के उद्देश्यों का उल्लेख किया. कहा कि फाउंडेशन ने ऐसे विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित करने का साहस दिखाया है, जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता. हमारा उद्देश्य विभिन्न मुद्दों पर, विशेषकर मुसलमानों के बीच, गलत धारणाओं को दूर करना और जागरूकता पैदा करना है.

उन्होंने कहा कि खुसरो फाउंडेशन ने संवेदनशील विषयों पर तथ्यों को पूरी निर्भीकता के साथ प्रस्तुत किया है. महत्वपूर्ण बात यह है कि फाउंडेशन ने न्यूनतम मूल्य पर पुस्तकें उपलब्ध कराने का प्रयास किया है . अंत में उन्होंने कहा कि विश्व पुस्तक मेले में खुसरो फाउंडेशन की पहली भागीदारी सफल और यादगार रही है.

हम भविष्य में इसे और भी बेहतर एवं प्रभावी बनाने का प्रयास करेंगे.इस मौके पर खुसरो के निदेशक शांतनु मुखर्जी और रामबीर सिंह भी मौजूद रहे.