डॉ. उज़मा खातून
22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए. इस हमले की क्रूरता- जिसमें हथियारबंद आतंकवादियों ने हिंदू पर्यटकों को उनके नाम और धार्मिक पहचान पूछने के बाद निशाना बनाया- न केवल निर्दोष लोगों पर हमला था, बल्कि भारत की एकता और धर्मनिरपेक्ष लोकाचार को तोड़ने का एक सुनियोजित प्रयास था.
हमलावरों द्वारा जानबूझकर धर्म के आधार पर पीड़ितों को निशाना बनाना सांप्रदायिक घृणा को भड़काने की एक भयावह रणनीति थी. उनका उद्देश्य न केवल हत्या करना था, बल्कि मुसलमानों, खासकर कश्मीरी मुसलमानों के प्रति भारतीय हिंदुओं में संदेह और आक्रोश के बीज बोना था.
इस तरह से हिंसा को अंजाम देकर, आतंकवादियों ने नफरत और प्रतिशोध के चक्र को भड़काने की कोशिश की, जिससे भारतीय समाज को परिभाषित करने वाली शांति और बहुलता को अस्थिर करने की उम्मीद थी.
हालांकि, देश की प्रतिक्रिया ने उल्लेखनीय परिपक्वता और एकता का प्रदर्शन किया है. आतंकवादियों के मंसूबों के आगे झुकने के बजाय, पूरे भारत में लोगों ने संयम दिखाया है, और किसी भी बड़े सांप्रदायिक संघर्ष या बदले की कार्रवाई की खबर नहीं आई है.
यह सामूहिक ज्ञान इस गहरी समझ को दर्शाता है कि आतंकवाद पर सच्ची जीत सिर्फ़ अपराधियों को सज़ा देने में नहीं है, बल्कि देश को विभाजित करने के उनके लक्ष्य को नकारने में है.
हिमांशी नरवाल की विधवा, भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल, जो अपने हनीमून के दौरान हमले में मारे गए थे, की विधवा हिमांशी नरवाल की आवाज़ विशेष रूप से शक्तिशाली और मानवीय थी.
हिमांशी ने राष्ट्र से एक भावनात्मक अपील की: “हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ़ जाएँ. हम शांति चाहते हैं और सिर्फ़ शांति. बेशक, हम न्याय चाहते हैं, लेकिन सरकार को उन लोगों के खिलाफ़ सटीक कदम उठाने चाहिए जिन्होंने हमारे साथ गलत किया”. उ
नके शब्दों ने व्यापक रूप से प्रतिध्वनित किया, जनता से किसी भी समुदाय के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने या प्रतिशोध की मांग न करने का आग्रह किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि न्याय को लक्षित किया जाना चाहिए न कि सामान्यीकृत किया जाना चाहिए.
हिमांशी का बयान ऐसे समय में आया है जब दुर्भाग्य से देश के विभिन्न हिस्सों में मुसलमानों और कश्मीरियों के खिलाफ़ हिंसा और भेदभाव की घटनाओं सहित प्रतिक्रिया की खबरें आई हैं. नफरत नहीं, शांति और न्याय के लिए उनके आह्वान की व्यापक रूप से सराहना की गई है और यह उस लचीलेपन और करुणा का प्रतीक बन गया है जिसे भारत बनाए रखने की आकांक्षा रखता है.
इस हमले की निंदा करने में सभी राजनीतिक नेताओं ने एकजुटता दिखाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सभी प्रमुख दलों के नेताओं ने पीड़ितों के साथ एकजुटता व्यक्त की है और आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्र के संकल्प की पुष्टि की है
. एक सर्वदलीय बैठक में नेताओं ने सरकार को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपने पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया और शांति और एकता बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया.
कांग्रेस कार्य समिति ने एक विशेष प्रस्ताव में कहा, "यह राजनीति का समय नहीं है, बल्कि एकता, शक्ति और राष्ट्रीय संकल्प का समय है. हमें पक्षपातपूर्ण विभाजन से ऊपर उठना चाहिए और एक स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि भारत एकजुट है और टूटेगा नहीं".
मुस्लिम समुदाय के लिए, विशेष रूप से कश्मीर में, यह आत्मनिरीक्षण और मुखरता का क्षण भी है. पाकिस्तानी तत्व अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए धर्म का दुरुपयोग करना जारी रखेंगे.
लेकिन भारतीय मुसलमानों को जोर से और बार-बार घोषणा करनी चाहिए कि उनकी पहली वफादारी भारत के प्रति है. दबाव में नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास से. वे पाकिस्तान के प्रतिनिधि नहीं हैं; वे इस धरती के बेटे और बेटियाँ हैं. यह उनका देश है जिस पर हमला हो रहा है.
यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि हमले के पीड़ितों में हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे. मारे गए लोगों में स्थानीय मुसलमान भी शामिल थे, जिनमें एक टट्टू संचालक भी शामिल था, जो दूसरों को बचाने की कोशिश में मर गया, यह दर्शाता है कि आतंकवाद किसी को नहीं बख्शता और इसके शिकार सभी पृष्ठभूमि से आते हैं.
पहलगाम की घटना इस बात की याद दिलाती है कि असली लड़ाई सिर्फ़ बंदूकों और बमों के खिलाफ़ नहीं है, बल्कि उन कथाओं के खिलाफ़ भी है जो विभाजन करना चाहती हैं.
सद्भाव को बढ़ावा देने और नफ़रत को खारिज़ करने की ज़िम्मेदारी हर नागरिक, नेता और संस्था की है. मारे गए अधिकारी की विधवा की एकजुट और दयालु प्रतिक्रिया, पार्टी लाइन से परे नेताओं का समर्थन और सभी धर्मों के लोगों द्वारा दिखाई गई एकजुटता आतंकवादियों के उद्देश्यों का सबसे स्पष्ट खंडन है.
पहलगाम हमला सिर्फ़ एक अपराध नहीं था - यह एक परीक्षा थी. हमारी ताकत, हमारे धैर्य और हमारे मूल्यों की परीक्षा. आतंकवाद ने हमें तोड़ने की कोशिश की, लेकिन भारत के लोग एक साथ खड़े रहे. आतंकवादियों को नफ़रत की सुर्खियाँ चाहिए थीं; उन्हें जो मिला वह एकता की कहानी थी.
यह भारत की भावना है - एक ऐसा राष्ट्र जहाँ एक मुसलमान एक हिंदू पर्यटक को बचाते हुए मर जाता है, जहाँ हिंदू मुस्लिम पीड़ितों के लिए शोक मनाते हैं, और जहाँ शांति एक नारा नहीं बल्कि एक साझा लक्ष्य है.
दुनिया को हमारा यही संदेश होना चाहिए: हम सबसे पहले भारतीय हैं, और कुछ भी - न आतंक, न दुष्प्रचार, न घृणा - इसे बदल सकता है.
(डॉ. उज़मा खातून ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाया है)