जब एक भारतीय मुस्लिम सैनिक ने पाकिस्तान की सेना में अपने भाई को गोली मार दी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-05-2025
When an Indian Muslim soldier shot his brother in the Pakistan Army
When an Indian Muslim soldier shot his brother in the Pakistan Army

 

"छोटे, शोक मत करो। हम सैनिक हैं और हमने अपना कर्तव्य निभाया।" — यूनुस खान

एम. ग़ज़ाली खान 

मेरे बचपन में, देवबंद में एक अफवाह काफी चर्चित थी कि स्वर्गीय हाजी मस्तान ने एक फिल्म के लिए प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद में शूटिंग की अनुमति मांगी थी. यह फिल्म भारत-पाक विभाजन से पहले की एक मार्मिक कहानी पर आधारित थी: एक हिंदू महिला एक मुस्लिम बच्चे को गोद लेती है और अपने बेटे के साथ उसका पालन-पोषण करती है.

विभाजन के बाद, वह मुस्लिम बच्चा पाकिस्तान चला जाता है. दोनों लड़के अपने-अपने देशों की वायु सेनाओं में पायलट बनते हैं. 1965 के भारत-पाक युद्ध में वे आमने-सामने होते हैं, जहां उनके विमान टकरा जाते हैं और दोनों की मृत्यु हो जाती है. फिल्म का आखिरी दृश्य दिल दहला देने वाला है—मां अपने दोनों बेटों की लाशें अपने कंधों पर उठाए हुए दिखाई देती है.

इस किस्से की याद मुझे उस समय आई जब मैंने पाकिस्तान के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल अमजद शोएब का एक व्लॉग देखा, जिसमें उन्होंने एक वास्तविक घटना साझा की.

उन्होंने बताया कि कैसे साहिबज़ादा याकूब खान, जो आगे चलकर पाकिस्तान के विदेश मंत्री बने, अपने ही बड़े भाई यूनुस खान द्वारा घायल कर दिए गए थे—युद्ध के मैदान में, एक सैनिक के हाथों, एक भाई के हाथों.

साहिबज़ादा याकूब खान का जन्म नवाबी खानदान में रामपुर में हुआ था. विभाजन से पहले, वे और उनके भाई यूनुस खान ब्रिटिश सेना में अधिकारी थे. विभाजन के बाद याकूब पाकिस्तान चले गए और यूनुस भारत में रहे.

1948 के पहले भारत-पाक युद्ध के दौरान, दोनों कश्मीर सीमा पर मेजर के पद पर आमने-सामने आ गए. गोलीबारी के दौरान यूनुस खान ने एक पाकिस्तानी अधिकारी को गोली मारी—जब उन्हें पता चला कि वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि उनका छोटा भाई याकूब था, तो उन्होंने चिल्लाकर कहा,"छोटे, शोक मत करो। हम सैनिक हैं और हमने अपना कर्तव्य निभाया."

जब जनरल मानेकशॉ, जो उस समय भारतीय सेना के शीर्ष अधिकारी थे, को इस घटना की जानकारी मिली, तो उन्होंने यूनुस खान के साहस की सराहना की और याकूब के प्रति सहानुभूति भी जताई.

वर्षों बाद, लगभग 36 साल बीतने के बाद, दोनों भाई कोलकाता में याकूब की शादी में मिले. वे गले लगे और रो पड़े—वह आंसुओं से भीगा मिलन, युद्ध से बिछड़े भाइयों का.

देशभक्ति की मिसाल: मुसलमान और भारत

इस घटना से यह साफ़ होता है कि भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाना न केवल गलत है बल्कि अन्यायपूर्ण भी. बार-बार इतिहास ने यह दिखाया है—चाहे ब्रिगेडियर उस्मान हों, परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद हों, या कारगिल में शहीद हुए मुस्लिम सैनिक—भारतीय मुसलमानों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर देश की रक्षा की है.

कट्टरपंथी विचारधाराओं के लोग, चाहे वे सॉफ्ट हों या हार्ड, यह समझने में असमर्थ हैं कि भारतीय मुसलमान 1947 में भी 'आंतरिक दुश्मन' नहीं थे और आज भी नहीं हैं.

वे उस ज़हर को फैला रहे हैं जो न देश को फायदा पहुंचाता है, न धर्म को। आखिर कौन मूर्ख होगा जो अपने पड़ोसी के घर में लगी आग से खुद को सुरक्षित मानेगा ?

विभाजन ने भारतीय मुसलमानों से न सिर्फ उनका नेतृत्व छीना, बल्कि उन्हें शिक्षित वर्ग और पारिवारिक जुड़ाव से भी वंचित कर दिया. आज भी हजारों परिवार ऐसे हैं जो दोनों देशों की सीमाओं के आर-पार बंटे हुए हैं, जो वर्षों से एक-दूसरे को नहीं देख पाए हैं.

अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में जन्मे भारतीय-पाकिस्तानी मूल के बच्चों को भी अपने दादा-दादी से मिलने के लिए वीजा की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

दिवंगत सांसद सैयद शहाबुद्दीन सही ही कहा करते थे—"भारतीय मुसलमान, विभाजन के असली हताहत हैं।"

 एक सैनिक, एक भाई, एक भारतीय

मेजर यूनुस खान की कहानी, जो एक सैनिक का धर्म निभाते हुए अपने ही भाई को युद्ध में गोली मारने को मजबूर हुए, भारतीय मुसलमानों की जटिल पहचान और सच्ची देशभक्ति का प्रतीक बन चुकी है. ऐसे सैकड़ों नाम हैं जिन्होंने इस मिट्टी के लिए अपना खून बहाया है, और यह हमारे इतिहास का गर्व है.