भारतीय मुसलमान और 1965 का पाकिस्तान आक्रमण

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-05-2025
Indian Muslims and the 1965 Pakistan Invasion
Indian Muslims and the 1965 Pakistan Invasion

 

साकिब सलीम

साल 1965 — भारत चीन के आक्रमण से उबरने की कोशिश कर रहा था और पंडित नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में एक नए युग की शुरुआत हो रही थी. शास्त्रीजी का ध्यान भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाने पर था, लेकिन तभी पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने भारत के खिलाफ सैन्य आक्रमण छेड़ दिया.

पाकिस्तान ने यह प्रचार किया कि वह कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में “मुस्लिम भाइयों” की रक्षा के लिए बाध्य हो गया है. उन्होंने इस्लामिक देशों से भी इस धार्मिक आधार पर समर्थन मांगा.

लेकिन भारत में एक अलग ही सच्चाई सामने आई — देश के मुसलमानों ने पाकिस्तान के इस दुष्प्रचार को नकारते हुए भारत के पक्ष में मजबूती से खड़े होकर एकजुटता का परिचय दिया.

Prime Minister Lal Bahadur Shastri with Indian Military officers atop a Pakistani tank after 1965 Indo-Pak war

भारतीय मुसलमानों का ऐतिहासिक बयान

पाकिस्तान के हमले के दिन, भारत के सभी 36 मुस्लिम सांसदों ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने साफ कहा:“हम आमतौर पर राजनीतिक मुद्दों में धर्म के आधार पर बयान नहीं देते, लेकिन इस बार अपवाद ज़रूरी है क्योंकि पाकिस्तान ने एक जानबूझकर छेड़े गए युद्ध को धार्मिक रंग देने की कोशिश की है.”

इन सांसदों ने मुस्लिम देशों को भेजे अपने संदेश में कहा कि पाकिस्तान न केवल भारत के खिलाफ बिना उकसावे के आक्रमण कर रहा है, बल्कि कश्मीर में हिंसा भड़का रहा है.

इस्लामी विद्वानों की संस्था जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद, जिसकी अध्यक्षता मौलाना सैयद फखरुद्दीन अहमद ने की, ने प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान के आक्रमण की कड़ी निंदा की। प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया:“कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान का यह हस्तक्षेप भारत की संप्रभुता पर हमला है और इसका विरोध करना हर भारतीय का पवित्र कर्तव्य है.”

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भारत के मुसलमानों की सक्रिय भूमिका

देशभर के मुसलमानों ने धन इकट्ठा किया, रक्तदान किया और स्वैच्छिक सैन्य सेवा की पेशकश की. उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान का यह प्रचार उन्हें भ्रमित नहीं कर सकता. विदेश मंत्रालय ने विभिन्न भारतीय दूतावासों को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें भारतीय मुस्लिम सैनिकों की वीरता और उन्हें मिले सैन्य पुरस्कारों का विवरण दिया गया था.

इन बहादुरों में शामिल थे:

  • हवलदार अब्दुल हमीदपरमवीर चक्र

  • लेफ्टिनेंट कर्नल सलीम कालेबमहावीर चक्र

  • मेजर मोहम्मद अली आर शेखवीर चक्र

  • नायब रिसालदार अयूब खानवीर चक्र

  • जमालुद्दीन किदवई, मुश्ताक हुसैन खान, सफदर अली — अन्य उल्लेखनीय नाम

मोहम्मद अयूब खान की वीरता

नायब रिसालदार अयूब खान ने 9 सितंबर 1965 को सियालकोट सेक्टर में पाकिस्तानी पैटन टैंकों को निशाना बनाकर उन्हें नष्ट किया. उन्हें युद्ध के दूसरे ही दिन वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

उनके प्रशस्ति पत्र में लिखा गया:“सुचेतगढ़ में दुश्मन का आक्रमण संचार मार्गों को काट सकता था, लेकिन अयूब खान ने अपने स्क्वाड्रन को इतनी कुशलता से नेतृत्व दिया कि चार टैंक नष्ट कर दिए गए और पाकिस्तानी पैदल सेना पीछे हट गई.”

मेजर मोहम्मद अली राज शेख का बलिदान

गुजरात की मंगरोल रियासत के नवाब परिवार से ताल्लुक रखने वाले मेजर शेख ने सियालकोट में टैंक युद्ध के दौरान दुश्मन के दो टैंक नष्ट कर दिए. वे गंभीर रूप से घायल हुए और अस्पताल में शहीद हो गए. उनकी वीरता को वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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हवलदार अब्दुल हमीद: एक किंवदंती

अब्दुल हमीद की वीरता भारतीय सैन्य इतिहास की अमर गाथा बन चुकी है। 8-10 सितंबर 1965 के बीच, उन्होंने अकेले अपनी जीप पर लगी रिकॉइललेस गन से 8 पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया. जब भारतीय सेना के पास आधुनिक एंटी-टैंक हथियार नहीं थे, हमीद ने असंभव को संभव कर दिखाया.

उनकी रणनीति सरल थी: गन्ने के खेतों में छिपकर सही समय पर हमला करना। दो दिनों में उन्होंने पाकिस्तानी टैंकों की एक पूरी बटालियन को पस्त कर दिया. अंततः 10 सितंबर को एक टैंक पर निशाना साधते समय वे शहीद हो गए. उनके अद्वितीय साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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एक स्पष्ट संदेश: यह देश सबका है

22 सितंबर 1965 को The Statesman ने एक संपादकीय में लिखा:“जब पाकिस्तान बार-बार संघर्ष को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहा है, भारतीय वीरता पुरस्कारों की सूची यह दर्शाती है कि भारत की सेना सभी धर्मों से है — हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी. अब्दुल हमीद को सर्वोच्च वीरता सम्मान मिलना इस बात का प्रतीक है कि भारत की रक्षा में किसी धर्म का एकाधिकार नहीं है.”

संपादकीय ने आगे कहा:“भारत में इस्लाम, संस्कृति और विविधता का अभिन्न हिस्सा है। यहां के मुसलमान किसी भी अन्य नागरिक की तरह भारत के प्रतिनिधि हैं.”

1965 का युद्ध केवल सीमाओं की लड़ाई नहीं थी. यह उस मानसिकता के विरुद्ध भी संघर्ष था जो धर्म के नाम पर समाज को बांटना चाहती थी.

भारतीय मुसलमानों ने न केवल अपने कर्तव्य का पालन किया, बल्कि दुनिया को दिखा दिया कि वे भारत के सच्चे और साहसी सिपाही हैं — एकता के प्रहरी, और देशभक्ति के प्रतीक.