मौलाना आज़ाद फेलोशिप की रकम अटकी, छात्रों ने कहा— अकादमिक करियर अधर में

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-05-2025
Maulana Azad Fellowship amount stuck, students said- academic career in limbo
Maulana Azad Fellowship amount stuck, students said- academic career in limbo

 

आवाज़ द वॉयस | नई दिल्ली

देश भर के सैकड़ों अल्पसंख्यक शोधार्थी इन दिनों गहरी चिंता और अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। कारण है — मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (MANF) की लंबित किश्तें, जिनका भुगतान महीनों से नहीं हुआ है. इस योजना को सरकार द्वारा 2022 में बंद कर दिया गया था, लेकिन उस वक्त यह स्पष्ट वादा किया गया था कि जिन शोधार्थियों को 2021-22 तक यह फेलोशिप स्वीकृत हुई थी, उन्हें उनके शोध कार्य की अवधि पूरी होने तक नियमित रूप से वित्तीय सहायता मिलती रहेगी.

अब, दो साल बीतने के बाद, जब न तो फेलोशिप समय पर मिल रही है और न ही इसकी निरंतरता को लेकर कोई स्पष्ट घोषणा हुई है, तो यह पूरा मुद्दा शिक्षा, समानता और न्याय के व्यापक सवाल में तब्दील हो गया है.

हाल ही में, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने टाइम्स ऑफ इंडिया के एक सवाल के जवाब में कहा —"वर्तमान में, इस योजना के तहत 2021-22 के बाद की प्रतिबद्ध देनदारियों की स्वीकृति का प्रस्ताव सरकार के सक्रिय विचाराधीन है."

यह वक्तव्य उन सभी शोधार्थियों के लिए गहरी निराशा का कारण बना है जो पहले ही आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं. मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अब यह योजना केवल उन्हीं लाभार्थियों तक सीमित है जिन्हें 2021-22 तक फेलोशिप मिली थी.

परंतु, अब जब योजना की देनदारियों को 'प्रस्ताव' और 'विचाराधीन' बताया जा रहा है, तो छात्र यह सवाल पूछ रहे हैं — क्या सरकार अपने वादे से पीछे हट रही है?

 योजना का सफर और अचानक आई रुकावट

2009 में शुरू हुई MANF योजना का उद्देश्य छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों—मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी—से आने वाले MPhil और PhD छात्रों को आर्थिक सहयोग प्रदान करना था. NET उत्तीर्ण करने वाले, सीमित पारिवारिक आय वाले छात्र इस योजना के पात्र होते थे.

इस योजना ने देश भर में हज़ारों छात्रों को उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने का हौसला दिया. लेकिन दिसंबर 2022 में, केंद्र सरकार ने इस योजना को यह कहते हुए बंद कर दिया कि यह अन्य मौजूदा फेलोशिप योजनाओं—जैसे UGC-JRF और CSIR—से "ओवरलैप" करती है.

हालाँकि, तत्कालीन वक्त में सरकार ने संसद में और लोकसभा में दिए गए जवाबों में यह वादा दोहराया था कि मौजूदा छात्र अपनी अवधि तक सहायता पाते रहेंगे.

 नियमितता की जगह देरी, संकट में शोधार्थी

अक्टूबर 2022 से इस योजना की जिम्मेदारी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (NMDFC) को सौंपी गई. लेकिन छात्र बताते हैं कि तभी से फेलोशिप मिलने में असाधारण देरी शुरू हो गई.

छात्रों के अनुसार:फरवरी 2022 तक भुगतान नियमित था.इसके बाद, 6 से 8 महीने की देरी का दौर शुरू हुआ.जनवरी 2024 से मई 2025 तक, कई छात्रों को 5 से 6 महीने तक फेलोशिप नहीं मिली.

एक कश्मीरी मुस्लिम शोधार्थी ने बताया —"आज मैं अपने चचेरे भाई के जनाज़े में नहीं जा सका क्योंकि मेरे पास फ्लाइट का किराया नहीं था. पाँच-छह महीने से फेलोशिप नहीं मिली. हम पूरी तरह टूट चुके हैं."

जनवरी 2024 में UGC ने अपने JRF और SRF शोधार्थियों के लिए हाउस रेंट अलाउंस (HRA) बढ़ाया. लेकिन MANF शोधार्थियों को इसका कोई लाभ नहीं दिया गया.

छात्रों का कहना है कि यह न सिर्फ तकनीकी विसंगति है बल्कि सरकार की मानसिकता को दर्शाता है, जिसमें अल्पसंख्यक छात्रों को द्वितीय श्रेणी का माना जा रहा है.

छात्रों की चार प्रमुख मांगे

बकाया फेलोशिप राशि का तत्काल भुगतान

UGC के अनुसार HRA बढ़ोतरी का लाभ MANF छात्रों को भी

मासिक भुगतान की नियमितता सुनिश्चित की जाए

योजना के भविष्य को लेकर स्पष्ट और लिखित दिशानिर्देश जारी हों

MANF जैसे योजनाएं सिर्फ आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि देश के सबसे हाशिये पर खड़े युवाओं के लिए शिक्षा की आखिरी उम्मीद होती हैं. जब सरकार खुद ही अपने वादों पर स्पष्ट नहीं होती, तो यह छात्रों के आत्मविश्वास को गहरा आघात पहुंचाता है.

एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी ने कहा —"हम सिर्फ छात्र नहीं हैं। हम शोधकर्ता हैं जो भारत के ज्ञान और विज्ञान जगत को समृद्ध कर रहे हैं. लेकिन अब हमारी ऊर्जा शोध में नहीं, बल्कि ईमेल और कॉल के जवाब पाने में खर्च हो रही है."

अगर इस संकट का समाधान समय रहते नहीं किया गया, तो यह सिर्फ कुछ छात्रों का नुकसान नहीं होगा. यह भारत के अनुसंधान, अकादमिक प्रतिष्ठा और शिक्षा व्यवस्था की नींव को हिला देगा.

यह समय है कि सरकार पुराने वादों को याद करे, फेलोशिप भुगतान में पारदर्शिता लाए, और इन युवा शोधकर्ताओं का भरोसा बहाल करे. क्योंकि यह सिर्फ एक स्कीम का मामला नहीं है, यह न्याय, अवसर और भविष्य का सवाल है.