दयाराम वशिष्ठ
हौसला बुलंद व आत्मविश्वास मजबूत हो तो विकट परिस्थितियां भी घुटने टेकने को विवश हो जाती हैं. गुजरात कच्छ के शिल्पकार अब्दुल हलील खत्री इसका जीता जागता उदाहरण है. कच्छ जिले में जनवरी 2001 में आए विनाशकारी भूकंप ने शिल्पकार अब्दुल हलील खत्री के सभी अरमानों पर पानी फेर दिया था.
इस भूकंप में हजारों लोग मारे गए थे. लाखों घर क्षतिग्रस्त हो गए थे. गांव के गांव तबाह हो गए थे. उन गांवों में शिल्पकार अब्दुल हलील खत्री का गांव धमडका भी शामिल था, जो पूरी तरह उजड़ गया.
शिल्पकार अब्दुल हलील ने अपना दर्द बयां करते हुए awazthevoice.in को बताया कि उस समय वह सोया हुआ था.उम्र मुश्किल से 20साल थी.सपना था पिता के काम में हाथ बंटाकर बेहतर कारीगर बनूं. भूकम्प से मची तबाही से आंख खुली तो सब कुछ उजड़ चुका था.
शहर मानो मलबे के ढेर में तब्दील हो गया था. पिता उस्मान की मौत हो चुकी थी.चारों ओर चीख पुकार मची थी. जैसे तैसे बुरे दिन गुजरे. उनके उजड़े गांव को दूसरी जगह अजरक में बसाया. जब तक सब कुछ तबाह हो चुका था.उनका कीमती सामान उस भूकम्प में बर्बाद हो गया.
बर्बादी में नौकरी करके परिवार का किया पालन पोषण
22 साल पहले की दास्तां सुनाते हुए अब्दुल हलील खत्री ने बताया कि उनके पिता अजरक हैंड प्रिंट नेचुरल कलर डाइ के जाने माले शिल्पकार थे.जब सब कुछ बर्बाद हो गया तो मुंबई में नौकरी करके परिवार का पालन पोषण किया.आर्थिक तौर पर कुछ मजबूती हासिल की.
सरकार से मिली सहायता,फिर किया कारोबार शुरू
अब्दुल हलील खत्री ने बताया,“कुछ सामान ऐसा था, जो पूरी तरह खराब नहीं हुए था. ऐसे बचे सामान को बेचकर कुछ काम धंधा किया.सरकार की ओर से भी डेढ लाख रुपये की आर्थिक सहायता मिली.अन्य लोगों ने भ्री सहायता की,जिसके चलते उन्होंने पिता का कारोबार फिर से शुरू किया.
आयरन व फिटकरी से निकाले जाने वाले नेचुरल कलर का इस्तेमाल
शिल्पकार अब्दुल हलील खत्री ने बताया,“सूरजकुंड मेला में नेचुरल कलर से बनाई गई मॉडल साडियों के अलावा दुपट्टा, कॉटन सूट समेत अन्य कई कैटेगरी शामिल हैं.मेला में 4हजार तक की मॉडल साडी उपलब्ध हैं.अब तक वह हैदराबाद, मैसूर, दिल्ली, सूरजकुंड के अलावा कई शहरों में स्टॉल लगा चुके हैं, जहां ग्राहक उनकी साडियों को खूब पसंद कर रहे हैँ।
गुजरात से मिल चुका है स्टेट अवार्ड
नेचुरल कलर साडी का यह कारोबार उनका पुस्तैनी कारोबार है.इस कार्य के लिए उन्हें गुजरात से स्टेट अवार्ड मिल चुका है.शॉल या पोशाक जैसे अजरक वस्त्र टिकटों के साथ ब्लॉक प्रिंटिंग का उपयोग करके बनाए गए विशेष डिजाइन और पैटर्न प्रदर्शित करते हैं.
अजरक सिंधी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है .अजरक प्रिंट सिंधु घाटी सभ्यता के प्रभाव के कारण भारत के पड़ोसी क्षेत्रों गुजरात में भी प्रसिद्ध हैं.सिंधु घाटी सभ्यता के प्रभाव के कारण अजरक प्रिंट भारत के पड़ोसी क्षेत्रों गुजरात में भी प्रसिद्ध हैं .
निचली सिंधु घाटी में प्रारंभिक मानव बस्तियों ने कपड़े बनाने के लिए आमतौर पर पेड़ कपास के रूप में जाने जाने वाले गोसिपियम आरबोरियम की खेती और उपयोग करने का एक तरीका खोजा.ऐसा माना जाता है कि इन सभ्यताओं को सूती कपड़े बनाने की कला में महारत हासिल थी.
अजरक को सिंध और सिंधी लोगों की पहचान कहा जा सकता है.अजरक पुरुषों के लिए गौरव और सम्मान तथा महिलाओं के लिए गौरव का प्रतीक है.सिंधी लोग अपने मेहमानों के आतिथ्य के तौर पर अजरक भी भेंट करते हैं.
अजरक शिल्प उत्पाद प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं.उत्पादों के संपूर्ण उत्पादन में वनस्पति रंग और खनिज रंग दोनों शामिल. इंडिगो एक प्रमुख रंग है.हैंडलूम हैंडीक्राफ्ट एग्जीबिशन गुजरात के मार्केटिंग मैनेजर डॉक्टर स्नेहल मकवाना ने बताया कि इस मेला में गुजरात से 50 शिल्पकार आए हुए हैं.
उन्होंने मेले में अलग अलग स्टॉल लगाए हुए हैं.इनमें अजरक ब्लॉक प्रिंट की साडी की ज्यादा सेल होती है.वुडन पर लोहे का ब्लॉक बनाकर इससे नेचुरल कलर तैयार किया जाता है.
परिधान पर ज्यामिति का स्तर मुद्रण की एक विधि के उपयोग से आता है जिसे वुडब्लॉक प्रिंटिंग कहा जाता है.जिसमें प्रिंट को कपड़े पर जोर से दबाकर लकड़ी के ब्लॉकों पर उकेरी गई ज्यामितीय आकृतियों से स्थानांतरित किया जाता था.