बासित जरगर / श्रीनगर
इस्लाम के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब की जयंती यानी ईद मिलाद उन-नबी के अवसर पर मुतवल्ली (देखभालकर्ता) ने हजरतबल दरगाह में शुक्रवार को पैगंबर मुहम्मद के पवित्र अवशेष यानी मू-ए-मुबारक वाले ताबूत को इमारत की पहली मंजिल की खिड़की से प्रदर्शित किया, तो श्रद्धालु फूट-फूट कर रोने लगे.
पुरुष, महिलाएं और बच्चे इस अवशेष के दीदार के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे थे, जो श्रीनगर में डल झील के तट पर स्थित भव्य दरगाह में स्थित है.
श्रीनगर के हजरतबल दरगाह में प्रार्थना करते पुरुष और महिला श्रद्धालु
जैसे ही पवित्र अवशेष का ताबूत मंडली के लिए प्रदर्शित किया गया, भक्तों ने प्रार्थना में अपने हाथ उठा लिए. इससे पहले एक विशाल जुलूस शहर की सजी-धजी सड़कों और गलियों से गुजरता हुआ मंदिर पहुंचा. प्रतिभागियों ने पवित्र पैगंबर की प्रशंसा करते हुए बैनर, झंडे और तख्तियां ले रखी थीं. श्रीनगर शहर और विशेष रूप से हजरतबल तीर्थ के आसपास के इलाकों को उत्सवों और रोशनी से सजाया गया है.
हजरतबल दरगाह पर प्रार्थना करती महिलाएं
कल रात सैकड़ों श्रद्धालुओं ने दरगाह में शब, रात भर चलने वाला प्रार्थना सत्र मनाया. इस अवसर के लिए हजरतबल दरगाह को खूबसूरती से सजाया गया है. दरगाह के बाहर पारंपरिक भोजन परोसने वाली दुकानें भी खुल गई हैं.
मिलाद उन नबी के अवसर पर हजरतबल दरगाह
पवित्र अवशेष 1635 में एक व्यापारी सैयद अब्दुल्ला द्वारा भारत लाए गए थे. उनके बेटे सैयद हामिद ने इसे नूरुद्दीन नाम के एक कश्मीरी व्यापारी को दे दिया. 17वीं शताब्दी के अंत में, मुगल सम्राट औरंगजेब ने नूरुद्दीन को जेल में डाल दिया और अवशेष जब्त कर लिए. उन्होंने इसे अजमेर शरीफ में स्थानांतरित कर दिया. बाद में, औरंगजेब 1700 में इस अवशेष को उसके मालिक को लौटाना चाहते थे. हालांकि, तब तक नूरुद्दीन की मृत्यु हो चुकी थी और उनके परिवार ने इसे संरक्षित किया और अंततः इसे वर्तमान हजरतबल दरगाह में स्थानांतरित कर दिया.
ये भी पढ़ें : बेगम जहाँआरा शाहनवाज ने भारतीय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाया
ये भी पढ़ें : श्रीनगर: ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर रात में हजरतबल पर उमड़ी भीड., आज पांच बार कराए जाएंगे मू-ए-मुबारक के दर्शन
ये भी पढ़ें : कभी ज़ायका लिया है निज़ामुद्दीन के हलवा पराठे का ?
ये भी पढ़ें : खाने की बर्बादी के पीछे का मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र क्या है ?