PM Modi's meetings with Muslim countries in 2025: What was the purpose of these diplomatic dialogues?
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
साल 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति में मुस्लिम देशों के साथ रिश्तों को और मज़बूत करने की रणनीति साफ़ तौर पर नज़र आई। इस वर्ष पीएम मोदी ने मुस्लिम बहुल देशों के नेताओं से मुलाकात कर भारत की कूटनीतिक प्राथमिकताओं को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की। इन संवादों का मक़सद सिर्फ़ औपचारिक रिश्तों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसके केंद्र में ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और निवेश बढ़ाना, रक्षा सहयोग, क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक चुनौतियों पर साझा दृष्टिकोण विकसित करना शामिल रहा।
इन मुलाकातों के दौरान आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग, पश्चिम एशिया में शांति, भारतीय प्रवासी समुदाय की सुरक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर भी ज़ोर दिया गया। साथ ही भारत ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह मुस्लिम देशों को केवल रणनीतिक साझेदार नहीं, बल्कि विकास और समृद्धि की साझा यात्रा का अहम हिस्सा मानता है। 2025 की ये कूटनीतिक पहलें भारत की उस नीति को दर्शाती हैं, जिसमें वैश्विक संतुलन, आपसी सम्मान और दीर्घकालिक सहयोग को प्राथमिकता दी जा रही है। साथ ही इस मुलाकात पर कई सारे विद्वानों ने कई लेख भी लिखें हैं| आज इस रिपॉर्ट में आप सभी लेख के बारे में विस्तार से जान सकते हैं|
जब हाल ही में ईरान और इज़राइल के बीच 12दिनों का युद्ध हुआ, तो भारत मुश्किल में पड़ गया. हालाँकि उसने ईरान पर इज़राइल के हमलों की खुलकर निंदा नहीं की, लेकिन उसका समर्थन भी नहीं किया. उसने हिंसा को तुरंत रोकने और दोनों पक्षों से बातचीत की मेज पर लौटने का आह्वान किया. भारत ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम की भी निंदा नहीं की. भारत ने ब्रिक्स समूह द्वारा पहले दिए गए बयान का भी समर्थन किया, हालाँकि उसने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) द्वारा किए गए हमलों की निंदा से खुद को अलग कर लिया है.
पश्चिम एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य सदैव ही अस्थिरता और संवेदनशीलता का केंद्र रहा है.विगत दशक में, इस क्षेत्र की राजनीति का केंद्रीय तनाव ईरान और अरब राष्ट्रों के मध्य टकराव को माना जाता रहा है, जिसके कारण सऊदी अरब तथा अन्य खाड़ी देशों ने अपनी सुरक्षा नीतियाँ पूर्णतः ईरान को ध्यान में रखकर तैयार की थीं.किंतु, वर्तमान परिस्थितियाँ एक निर्णायक मोड़ ले रही हैं.इज़राइल की हालिया आक्रामक सैन्य कार्रवाइयों और गाज़ा में जारी संघर्ष ने अरब जगत की प्राथमिकताओं को बदल दिया है.जो ध्यान पहले ईरान पर केंद्रित था, अब वही आशंका और चिंता का केंद्र इज़राइल बन गया है.
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की जॉर्डन यात्रा, जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना के 75वें वर्ष में, महामहिम किंग अब्दुल्ला के निमंत्रण पर हो रही है, भारत–जॉर्डन संबंधों के समृद्ध इतिहास में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक घटना है। प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों में एक नए युग की शुरुआत करेगी।दोनों नेताओं के बीच गहरा व्यक्तिगत सौहार्द है और उनसे सार्थक परिणामों वाली गंभीर एवं व्यापक चर्चाओं की उम्मीद है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16–17 दिसंबर 2025 को इथियोपिया की यात्रा पर जाने वाले हैं। यह यात्रा इथियोपिया के रणनीतिक महत्व और भारत-इथियोपिया के बीच बढ़ती साझेदारी को उजागर करती है।इथियोपिया अफ्रीका के हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में स्थित है और अफ्रीका, एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है। यह अफ्रीका की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिसकी अनुमानित वार्षिक विकास दर 8.5 प्रतिशत है। इस तेज़ आर्थिक विकास के पीछे इथियोपियाई सरकार द्वारा शुरू की गई बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 17-18 दिसंबर 2025 को होने वाली ओमान यात्रा बहुत ही सही समय पर हो रही है। यह प्रधानमंत्री मोदी की ओमान की दूसरी यात्रा है; इससे पहले वे फरवरी 2018 में वहाँ गए थे। यह यात्रा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत और ओमान एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर हस्ताक्षर करेंगे। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बाद किसी खाड़ी देश के साथ भारत का यह दूसरा ऐसा समझौता होगा।
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