रामलीला के लिए ज़मीन दान: भदोही के अब्दुल रहीम सिद्दीकी बने सांप्रदायिक सौहार्द की पहचान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-12-2025
Land donated for Ramlila: Abdul Rahim Siddiqui of Bhadohi becomes a symbol of communal harmony.
Land donated for Ramlila: Abdul Rahim Siddiqui of Bhadohi becomes a symbol of communal harmony.

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली/भदोही (उत्तर प्रदेश)

सामाजिक सौहार्द, आपसी विश्वास और साझा संस्कृति की एक प्रेरक मिसाल उत्तर प्रदेश के भदोही जिले से सामने आई है। गोपीगंज क्षेत्र के बड़ागांव में रहने वाले 65 वर्षीय दर्जी अब्दुल रहीम सिद्दीकी उर्फ कल्लू ने रामलीला मंचन के लिए अपनी करीब तीन बिस्वा पुश्तैनी ज़मीन दान कर दी। उनका यह कदम न केवल गांव की वर्षों पुरानी समस्या का स्थायी समाधान बना, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता की जीवंत तस्वीर भी पेश करता है।

बड़ागांव में पिछले करीब 94 वर्षों से रामलीला का आयोजन होता आ रहा है, लेकिन आज तक इसके लिए कोई स्थायी मंच या निर्धारित भूमि नहीं थी। हर साल आयोजन के समय जगह को लेकर अस्थायी इंतज़ाम करने पड़ते थे, जिससे आयोजकों और ग्रामीणों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। गांव की इस परेशानी को करीब से देखने और महसूस करने के बाद अब्दुल रहीम सिद्दीकी ने आगे बढ़कर वह कर दिखाया, जिसकी आज पूरे इलाके में चर्चा हो रही है।

करीब छह हजार की आबादी वाले इस गांव में हिंदू और मुस्लिम समुदाय पीढ़ियों से साथ रहते आए हैं। तीज-त्योहार, सुख-दुख और सामाजिक आयोजनों में दोनों समुदायों की साझेदारी यहां की पहचान रही है। सिद्दीकी स्वयं भी वर्षों तक रामलीला मंचन से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं और अलग-अलग पात्रों की भूमिकाएं निभा चुके हैं। हाल के वर्षों में वह मंचन की व्यवस्थाओं और देखरेख में सहयोग कर रहे थे।

गांव के वरिष्ठ नागरिक और पूर्व प्रधान राधेश्याम मिश्रा बताते हैं कि रामलीला के लिए स्थायी स्थान न होने से हर साल असुविधा होती थी। उन्होंने कहा, “यह समस्या लंबे समय से चली आ रही थी, लेकिन अब्दुल रहीम ने जिस उदारता और संवेदनशीलता के साथ अपनी ज़मीन दान की, उससे गांव को हमेशा के लिए एक स्थायी समाधान मिल गया है।”

अब्दुल रहीम सिद्दीकी का कहना है कि उन्होंने यह फैसला पूरी तरह अपनी इच्छा से लिया है। उन्होंने न सिर्फ ज़मीन दान की, बल्कि इसके कानूनी दस्तावेज भी औपचारिक रूप से आदर्श रामलीला समिति, बड़ागांव के नाम करा दिए हैं। सिद्दीकी कहते हैं, “रामलीला हमारे गांव की साझा परंपरा है। जब यह मंच बनेगा, तो यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन का स्थान नहीं होगा, बल्कि भाईचारे और आपसी सम्मान का प्रतीक भी बनेगा।”

उनकी इस पहल का असर तुरंत दिखाई देने लगा। आदर्श रामलीला समिति के सचिव विनय शुक्ला के अनुसार, दान की गई भूमि पर मंच और अन्य आवश्यक निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। विधि-विधान से पूजा-पाठ कर नींव खुदाई का काम प्रारंभ किया गया। खास बात यह रही कि इस अवसर पर हिंदू और मुस्लिम—दोनों समुदायों के लोग बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

सिद्दीकी के इस फैसले से प्रेरित होकर ग्रामीणों ने भी खुलकर सहयोग किया। नींव खुदाई के दौरान ही दोनों समुदायों के लोगों ने करीब सात लाख रुपये की राशि एकत्र कर निर्माण कार्य के लिए समिति को सौंप दी। यह नजारा अपने आप में उस सामाजिक समरसता का प्रमाण था, जिसकी आज के दौर में मिसालें कम ही देखने को मिलती हैं।

भदोही के बड़ागांव में अब रामलीला का मंच केवल एक सांस्कृतिक मंच नहीं रहेगा, बल्कि यह उस सोच का प्रतीक बनेगा, जहां धर्म से ऊपर इंसानियत और परंपरा से ऊपर भाईचारा रखा जाता है। अब्दुल रहीम सिद्दीकी का यह कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक संदेश है कि साझा विरासत को बचाने और आगे बढ़ाने में व्यक्तिगत त्याग कितनी बड़ी भूमिका निभा सकता है।