नफ़रत भाईचारे की दुश्मन, तरक्की की राह में सबसे बड़ा रोड़ा : मौलाना मदनी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 11-08-2025
Hatred is the enemy of brotherhood, the biggest obstacle in the path of progress: Maulana Madani
Hatred is the enemy of brotherhood, the biggest obstacle in the path of progress: Maulana Madani

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा—“अगर हम इस देश में इज़्ज़त के साथ जीना चाहते हैं, तो हमें कुर्बानी देनी होगी.” उन्होंने वक़्फ़ संपत्तियों को सरकारी दख़ल और हेरफेर से बचाने की सख़्त ज़रूरत पर जोर देते हुए, एसजीपीसी (SGPC) की तर्ज़ पर वक़्फ़ प्रबंधन के लिए एक स्वायत्त निकाय बनाने की पुरानी मांग दोहराई.

मौजूदा हालात में उन्होंने सलाह दी कि नई संपत्तियों को वक़्फ़ में दर्ज कराने की बजाय निजी ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत करना ज़्यादा सुरक्षित है, क्योंकि सरकारी कब्ज़े का खतरा हमेशा बना रहता है. “हमारे पास इस खतरे की कई ज़िंदा मिसालें मौजूद हैं,” उन्होंने चेतावनी दी.

मौलाना मदनी ने मुस्लिम समुदाय से शिक्षा, संगठन और व्यापार पर ध्यान केंद्रित करने और नफ़रत का जवाब अच्छे चरित्र, सेवा और हिकमत से देने की अपील की.

उन्होंने याद दिलाया कि भारत की आज़ादी यूं ही नहीं मिली, बल्कि एक सदी से अधिक के संघर्ष और बलिदान के बाद हासिल हुई.उन्होंने कहा, “इतिहास सिखाता है कि कोई भी क़ौम अपनी पहचान, संस्कृति और ईमान को बचाना चाहती है तो उसे कुर्बानी देनी पड़ती है. अगर आज हम कुर्बानी से बचेंगे, तो आने वाली नस्लों को और बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ेंगी.” .

नफ़रत और इंसाफ़ के क्षरण पर चिंता

उन्होंने चेतावनी दी कि देश एक ख़तरनाक मोड़ पर खड़ा है, जहां नफ़रत को देशभक्ति का लिबास पहनाया जा रहा है और जालिमों को क़ानून से बचाया जा रहा है. यह सिर्फ मुसलमानों का मसला नहीं, बल्कि पूरे भारत के भविष्य का सवाल है. “सांप्रदायिकता सिर्फ अल्पसंख्यकों को नहीं, बल्कि मुल्क की बुनियाद को चोट पहुंचाती है। जहां भाईचारा खत्म होता है, वहां तरक्की जड़ नहीं पकड़ सकती.”

उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकार मौजूद हैं, लेकिन उनकी हिफ़ाज़त जनता की जिम्मेदारी है. “आज न संसद पर भरोसा किया जा सकता है, न हुकूमत पर। हमारी आखिरी उम्मीद अदालते और क़ानूनी बिरादरी हैं, चाहे उसमें खामियां क्यों न हों. हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए.”

तरक्की के तीन स्तंभ—शिक्षा, संगठन और व्यापार

मौलाना मदनी ने कहा कि कामयाबी की बुनियाद शिक्षा, संगठन और व्यापार में है. उन्होंने माना कि दक्षिण भारत के मुसलमान कई मामलों में उत्तर भारत के मुसलमानों से आगे हैं.

मगर अब भी बहुत काम बाकी है.खासकर लड़कियों की तालीम में. उन्होंने प्राथमिक स्तर पर दीनी और आधुनिक तालीम को साथ जोड़ने की सलाह दी, ताकि बच्चे कुरआन की समझ के साथ-साथ मौजूदा दौर के विषयों में भी माहिर बन सकें.

नशाखोरी पर सख़्त चेतावनी

उन्होंने रासायनिक आधारित नशों के तेजी से फैलते खतरे पर चिंता जताई और कहा कि यह बला अब शहरों से निकलकर क़स्बों और गांवों तक पहुंच चुकी है. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण और माता-पिता की सक्रिय भागीदारी की मांग की.

इस मौके पर एडवोकेट आसिम शहज़ाद ने वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 के संवैधानिक पहलुओं पर रोशनी डालते हुए अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा की ज़रूरत पर जोर दिया.

हारमेन ट्रस्ट के चेयरमैन रफ़ीक़ हाजीआर ने धार्मिक और मुख्यधारा की शिक्षा में निवेश की अहमियत बताई. टी. रफ़ीक़ अहमद (TAW ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़) ने शिक्षा को सशक्तिकरण की कुंजी बताया, जबकि फ़रीदा ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के चेयरमैन मक्का रफ़ीक़ अहमद ने एकता और संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता को राष्ट्रीय तरक्की के लिए जरूरी बताया.

मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के. एन. बाशा ने अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका पर प्रकाश डाला और कई ऐतिहासिक फैसलों का ज़िक्र किया.