आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर पूरी दुनिया में गुरु नानक जयंती श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है। सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देव जी ने मानवता, समानता, सत्य और सेवा का जो अमर संदेश दिया, वह सीमाओं, भाषाओं और धर्मों से परे है। उनका जीवन एक ऐसा प्रकाशस्तंभ है, जिसने समाज को अंधकार से निकालकर प्रेम और एकता की ओर अग्रसर किया।
इस अवसर पर हम विश्वभर के कुछ प्रसिद्ध गुरुद्वारों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं — जहाँ न केवल श्रद्धालु आस्था से सिर झुकाते हैं, बल्कि मानवता का दीप भी प्रज्वलित होता है।

यह वही पावन भूमि है जहाँ 15 अप्रैल 1469 को गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। ननकाना साहिब (पूर्व नाम – राय भोई दी तलवंडी) आज सिख धर्म के सबसे प्रमुख तीर्थों में गिना जाता है।
इस विशाल परिसर में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे स्थित हैं —
गुरुद्वारा जन्म स्थान: जहाँ गुरु जी का जन्म हुआ था।
गुरुद्वारा बाल लीला साहिब: जहाँ बालक नानक ने अपनी करुणा और ज्ञान से सबको चकित किया।
गुरुद्वारा तंबू साहिब और गुरुद्वारा ननकाना साहिब जनम स्थान: ये सभी स्थान गुरु जी के जीवन की विविध घटनाओं से जुड़े हैं।
हर वर्ष गुरु नानक जयंती पर पाकिस्तान सरकार की अनुमति से हजारों भारतीय श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक, बल्कि भारत–पाक संबंधों में आस्था और सद्भावना का सेतु भी है।
करतारपुर वह पावन धरा है जहाँ गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष बिताए। यहीं उन्होंने “नानक नाम लेवा” समुदाय की स्थापना की थी और सेवा, नाम-सिमरन तथा समानता का संदेश दिया था।
2019 में भारत-पाक सीमा के आर-पार खुला करतारपुर कॉरिडोर श्रद्धालुओं के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं। अब भारतीय सिख बिना वीज़ा यहाँ दर्शन कर सकते हैं। सफेद संगमरमर से सजा यह विशाल गुरुद्वारा आज भी शांति, भाईचारे और सीमाओं से परे मानवता का प्रतीक बना हुआ है।

हसन अब्दाल शहर में स्थित यह गुरुद्वारा एक अद्भुत कथा से जुड़ा है। कहा जाता है कि जब एक स्थानीय सूफी संत वली क़ांदारी ने गाँव वालों को जल देने से मना किया, तब गुरु नानक देव जी ने अपने हाथ से पत्थर पर प्रहार किया और वहाँ से पानी का झरना फूट पड़ा। क्रोधित वली ने पत्थर फेंका, जिसे गुरु जी ने अपने हाथ से रोक लिया — और उसी पत्थर पर उनका पवित्र पंजा निशान आज भी विद्यमान है। यह स्थान गुरु जी की करुणा और अहंकार पर विजय का प्रतीक है।
विश्वभर में प्रसिद्ध हरमंदिर साहिब सिख आस्था का केंद्र है। यद्यपि इसका निर्माण पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी ने करवाया था, लेकिन इसकी नींव मुस्लिम संत साईं मियाँ मीर ने रखी — यह इस बात का उदाहरण है कि सिख परंपरा में धार्मिक सहिष्णुता और एकता कितनी गहराई से रची-बसी है।
स्वर्ण मढ़ित गुंबद, पवित्र अमृत सरोवर, और चौबीसों घंटे चलने वाला लंगर — हर आगंतुक के लिए यह अनुभव ईश्वर के साक्षात्कार जैसा होता है। यहाँ जात, पंथ या भाषा का कोई भेद नहीं।
दिल्ली का सबसे प्रसिद्ध गुरुद्वारा — बंगला साहिब। यह स्थान आठवें गुरु, गुरु हरकृष्ण जी से जुड़ा है, जिन्होंने दिल्ली में फैली महामारी के समय बीमारों की सेवा की थी। परंतु यहाँ गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं की गूंज हर कोने में सुनाई देती है।
इसके सरोवर का जल (अमृत) पवित्र माना जाता है। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु यहाँ लंगर सेवा में भाग लेते हैं। गुरुद्वारे के भीतर का शांत वातावरण, कीर्तन की मधुर ध्वनि और सेवा का भाव — हर व्यक्ति को अंदर तक छू लेता है।

यहाँ गुरु तेग बहादुर जी ने अपने प्राण मानवता की रक्षा के लिए न्योछावर किए थे। यह स्थान सिख बलिदान और गुरु नानक देव जी की उस शिक्षा का प्रतीक है जिसमें कहा गया है — “न डरना, न डराना, सच्चे मार्ग पर डटे रहना।”
यह वह स्थान है जहाँ गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्रा के दौरान ओडिशा में लोगों को समानता और ईश्वर की एकता का संदेश दिया था। यह दक्षिण भारत में सिख संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
मध्य पूर्व का सबसे विशाल गुरुद्वारा — गुरु नानक दरबार दुबई — आधुनिक स्थापत्य कला और सिख परंपरा का संगम है। यहाँ हर धर्म के लोग बिना भेदभाव के आते हैं। यह स्थान “सरबत दा भला” (सभी का कल्याण) की भावना को जीता-जागता उदाहरण बनाता है।
लंदन का यह गुरुद्वारा ब्रिटेन में बसे प्रवासी सिख समुदाय का आध्यात्मिक केंद्र है। यहाँ न केवल धार्मिक आयोजन होते हैं, बल्कि शिक्षा, रक्तदान, भोजन वितरण और आपदा राहत जैसी सामाजिक सेवाएँ भी नियमित रूप से होती हैं।
कनाडा के वैंकूवर, टोरंटो और अमेरिका के युबा सिटी में सिख समुदाय ने दर्जनों गुरुद्वारे स्थापित किए हैं। ये केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि समाज सेवा के केंद्र हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान कनाडा और अमेरिका के इन गुरुद्वारों ने हजारों लोगों को लंगर सेवा के माध्यम से भोजन उपलब्ध कराया था।
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न और सिडनी में भी भव्य गुरुद्वारे हैं जहाँ गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं पर आधारित कार्यक्रम और कीर्तन निरंतर आयोजित होते हैं।
सिंगापुर और मलेशिया में सिख समुदाय ने सेवा, शिक्षा और भाईचारे की परंपरा को जीवित रखा है। यहाँ गुरु नानक देव जी के जन्मदिन पर भव्य नगर कीर्तन और रक्तदान शिविर आयोजित किए जाते हैं।
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन से तीन प्रमुख सिद्धांत दिए —
नाम जपो – प्रभु का स्मरण करो।
किरत करो – ईमानदारी से जीवनयापन करो।
वंड छको – अपने श्रम और सुख का फल सबमें बाँटो।
उनकी शिक्षाएँ जाति, धर्म या वर्ग की सीमाओं से परे थीं। उन्होंने कहा:
“ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान — सब ईश्वर की संतान हैं।”
आज जब दुनिया विभाजन और संघर्ष से जूझ रही है, गुरु नानक देव जी का यह संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो उठा है।

हर गुरुद्वारा केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि समाज सेवा का केंद्र भी है।
लंगर की परंपरा, जो गुरु नानक देव जी ने शुरू की थी, इस विचार पर आधारित है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे। आज हर देश में गुरुद्वारे भूख, भेदभाव और असमानता के खिलाफ मानवता की सबसे बड़ी सामूहिक आवाज़ हैं।
गुरु नानक जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की जागृति है — जो हमें याद दिलाती है कि सच्ची पूजा ईश्वर की नहीं, उसकी सृष्टि की सेवा में है।
गुरु जी ने कहा था:
“जिसने मन जीता, उसने जग जीता।”
आज जब हम दुनिया भर के इन पवित्र गुरुद्वारों की ओर नज़र डालते हैं, तो हमें एक ही बात समझ आती है — गुरु नानक का प्रकाश कहीं बुझा नहीं है; वह हर हृदय में जगमगा रहा है। वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तेह।