कश्मीर का बुलबुल अब खामोश: नहीं रहे मशहूर लोक गायक ग़ुलाम नबी शाह

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 12-06-2025
The nightingale of Kashmir is now silent: Famous folk singer Ghulam Nabi Shah is no more
The nightingale of Kashmir is now silent: Famous folk singer Ghulam Nabi Shah is no more

 

अर्सला खान/नई दिल्ली

कश्मीर घाटी की लोक-संगीत परंपरा को एक नई ऊंचाई देने वाले प्रसिद्ध कश्मीरी लोक गायक उस्ताद ग़ुलाम नबी शाह, जिन्हें लोग मोहब्बत से ‘हाम्ले बुलबुल’ (पहाड़ी बुलबुल) कहा करते थे, अब इस दुनिया में नहीं रहे. बुधवार को उन्होंने अपने पैतृक घर, डांगीवाचा रफियाबाद (जिला बारामुला) में अंतिम सांस ली. उनके निधन से संपूर्ण कश्मीर घाटी में शोक की लहर दौड़ गई है.
 
संगीत के प्रतीक, कश्मीर की आवाज़

उस्ताद शाह सिर्फ गायक नहीं थे, वह कश्मीर की लोक आत्मा की जीवंत अभिव्यक्ति थे. उन्होंने कश्मीर की पारंपरिक गायकी, विशेषकर सारंगी वादन को नई पहचान दी. उनकी भावपूर्ण आवाज़ में ऐसा जादू था, जो दिल को छू जाता था.
 
लोक संस्कृति में उन्होंने 'गिलास नृत्य' (सिर पर पानी से भरा गिलास रख कर नृत्य करना) को भी जीवित रखा. इसके अलावा, वे 'बच्चा नागमा' नामक पारंपरिक नृत्य के भी बड़े उस्ताद थे, जिसमें लड़के महिलाओं के वेष में पारंपरिक गीतों पर नृत्य करते हैं.
 
शाह साहब ने तीन दशकों से अधिक समय तक जम्मू-कश्मीर सरकार के सूचना विभाग में कार्य किया. उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीरी संगीत की प्रतिनिधित्व कर ना सिर्फ विभाग, बल्कि पूरे राज्य का गौरव बढ़ाया. उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2011 में ‘शेर-ए-कश्मीर शेख मोहम्मद अब्दुल्ला अवॉर्ड’ से नवाजा गया था.
 
शोक सभा और श्रद्धांजलि

उनके निधन पर सूचना विभाग के संयुक्त निदेशक सय्यद शहनवाज़ बुखारी की अध्यक्षता में एक शोकसभा आयोजित की गई, जिसमें विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया.
 
बुखारी ने कहा, 'आज कश्मीरी संगीत और कला का बुलबुल खामोश हो गया. उस्ताद शाह ने जो विरासत छोड़ी है, वह पीढ़ियों तक लोगों को प्रेरित करती रहेगी'
 
एक युग का अंत

उस्ताद शाह का जीवन कश्मीर की कला, संस्कृति और संगीत को समर्पित था. उन्होंने लोक परंपराओं को संरक्षित करने के साथ-साथ उसे आम जनता और युवा पीढ़ी तक पहुंचाया. उन्होंने अपनी कला से यह साबित किया कि लोक संगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर है.
 

उस्ताद ग़ुलाम नबी शाह के निधन से कश्मीरी लोक संगीत ने न सिर्फ एक बेहतरीन गायक, बल्कि एक युग को खो दिया है. उनकी रचनाएं, उनका संगीत और उनकी सादगी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर बनकर रहेंगी. "हाम्ले बुलबुल" अब भले ही खामोश हो गया हो, लेकिन उसकी गूंज हमेशा कश्मीर की वादियों में गूंजती रहेगी.