आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
बॉलीवुड में पारिवारिक रिश्तों की गहराई को बहुत खूबसूरती से दर्शाया गया है, और उनमें से "पिता" का किरदार एक ऐसा स्तंभ रहा है जो हर दौर में दर्शकों के दिल को छूता आया है. हिंदी सिनेमा में पिताओं को सिर्फ अनुशासन और कठोरता का प्रतीक नहीं बल्कि ममता, संघर्ष और त्याग की मिसाल के रूप में भी दिखाया गया है. फादर्स डे के मौके पर आइए नजर डालते हैं कुछ यादगार बॉलीवुड फिल्मों पर जिन्होंने पिता-पुत्र या पिता-पुत्री के रिश्ते को संवेदनशीलता के साथ पेश किया.
‘वक्त: द रेस अगेंस्ट टाइम’ (2005)
इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार की जोड़ी ने एक पिता और बेटे के टकराव को शानदार तरीके से पर्दे पर उतारा. एक पिता कैसे अपने बेटे को जिम्मेदारी का एहसास दिलाने के लिए कठोर फैसले लेता है, यह फिल्म भावनाओं और पारिवारिक मूल्यों का अच्छा उदाहरण है.
‘पापा कहते हैं’ (1996)
यह फिल्म एक बेटी और उसके खोए हुए पिता के रिश्ते पर आधारित थी. जुगल हंसराज और मयूरी कांगो की यह फिल्म दर्शकों को उस समय में भावुक कर गई थी. एक बेटी का अपने पिता को ढूंढने का सफर और उससे मिलने की लालसा इस फिल्म की जान है.
‘दंगल’ (2016)
महावीर फोगाट और उनकी बेटियों की यह बायोपिक एक सशक्त पिता की कहानी कहती है जो समाज की सीमाओं को तोड़कर अपनी बेटियों को विश्व स्तर का खिलाड़ी बनाता है. आमिर खान ने एक सख्त लेकिन प्रेरणादायक पिता का किरदार निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया.
‘चक दे! इंडिया’ (2007)
हालांकि यह पूरी तरह से पिता पर आधारित फिल्म नहीं है, लेकिन इसमें कबीर खान (शाहरुख खान) का कोच के रूप में व्यवहार, पिता जैसे मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है. यह बताता है कि कैसे एक व्यक्ति किसी के जीवन को सही दिशा दे सकता है.
‘पीकू’ (2015)
इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने एक बुजुर्ग पिता का किरदार निभाया जो अपनी बेटी पीकू (दीपिका पादुकोण) पर पूरी तरह निर्भर है. फिल्म एक हल्के-फुल्के लेकिन भावुक अंदाज़ में दिखाती है कि उम्र बढ़ने पर एक पिता भी बच्चों पर निर्भर हो जाता है और रिश्तों की भूमिका कैसे बदलती है.
‘कभी ख़ुशी कभी ग़म’ (2001)
यशराज फिल्म्स की इस क्लासिक फिल्म में पिता (अमिताभ बच्चन) का कठोर लेकिन अंदर से भावुक रूप देखने को मिलता है. यह फिल्म बताती है कि कैसे पिता के अहम फैसले भी कभी-कभी बच्चों से दूरियाँ बढ़ा देते हैं.
बॉलीवुड फिल्मों में पिताओं को सिर्फ पारंपरिक, सख्त और कठोर छवि तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि उन्हें समय के साथ संवेदनशील, समझदार और प्रेरणादायक रूप में भी प्रस्तुत किया गया है. ये फिल्में हमें यह सिखाती हैं कि पिता चाहे जैसे भी हों—उनका प्यार, मार्गदर्शन और त्याग अमूल्य होता है. फादर्स डे पर इन फिल्मों को देखना न केवल मनोरंजन का ज़रिया हो सकता है, बल्कि अपने पिता के साथ रिश्ते को और गहरा बनाने का अवसर भी है.