फजल पठान / पुणे
महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में पुणे शहर की पहचान है. पुणे में विभिन्न त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते हैं. पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी गणेश विसर्जन और ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का जुलूस एक साथ आया था.
पुणे के मुस्लिम समुदाय ने इस वर्ष भी पैगंबर की जयंती के उपलक्ष्य में निकाले जाने वाले जुलूस को आगे बढ़ाकर धार्मिक सद्भाव का संदेश दिया. इस्लाम द्वारा सिखाई गई सद्भाव और समन्वय की शिक्षा का पालन करते हुए, पुणे की सिरत कमिटी और जिले की 200 से अधिक मस्जिदों के प्रमुखों ने मिलकर 21 सितंबर को जुलूस निकालने का निर्णय लिया.
20 सितम्बर पुणे के पी ए इनामदार विश्वविद्यालय के आज़म कैंपस में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में पुणे शहर के सैकड़ों मुस्लिम धर्मगुरु और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे. इस अवसर पर जुलूस से संबंधित एक एहम और काबिल ए तारीफ़ फैसला भी लिया गया.
इसलिए लिया गया फैसला
महाराष्ट्र में धार्मिक त्योहारों को धार्मिक सौहार्द बनाए रखते हुए मनाया जाता है. हाल में संपन्न हुए गणेशोत्सव के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता के कई उदाहरण देखने को मिले. दूसरी ओर, पिछले दो वर्षों से गणेश विसर्जन और पैगंबर जयंती का जुलूस एक ही तारीख पर आ रहे थे.
लेकिन, पुणे पुलिस प्रशासन की विनती का सम्मान करते हुए, पुणे के मुस्लिम समुदाय ने पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी ईद-ए-मिलाद के जुलूस को कुछ आगे बढ़ाने का निर्णय लिया.
इस निर्णय के बारे में बताते हुए मौलाना इरफान अशरफ ने कहा, “गणेश विसर्जन मिरवणुकी में बड़ी संख्या में हिंदू भाई शामिल होते हैं, जबकि मुस्लिम भाई जुलूस में भाग लेते हैं. इतनी बड़ी भीड़ को संभालना प्रशासन के लिए कठिन हो सकता है. समाज में सुख-शांति बनी रहे, यही मुस्लिम समाज की भूमिका है.इसलिए हमने जुलूस को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया.”
सिरत कमेटी के अध्यक्ष मौलाना गुलाम अहमद कादरी ने कहा, "हिंदू-मुस्लिम भाइयों के बीच भाईचारा बना रहे और हमारी सौहार्दपूर्ण संस्कृति सुरक्षित रहे, इसलिए हमने सभी ने मिलकर 17 तारीख का जुलूस 21 सितंबर को निकालने का निर्णय लिया है."
मुस्लिम मौलवियों का एक और काबिल ए तारीफ
हमारी परंपरा है कि त्योहारों को पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। लेकिन हाल के समय में यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है, और त्योहारों ने एक विकृत रूप धारण कर लिया है. इसमें कानफोड़ू डीजे, उस पर बजने वाले अश्लील गाने और नाच का बड़ा योगदान रहा है.
आजकल, इन्हीं डीजे के गानों पर युवा धूमधाम से जश्न मनाते दिखाई देते हैं। डीजे का तेज शोर, लेज़र लाइटिंग आदि से आम जनता को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस पर विचार करते हुए मुस्लिम उलेमाओंने डीजे-मुक्त ईद-ए-मिलाद मनाने का निर्णय लिया है.
डीजे पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय पर मौलाना गुलाम अहमद कादरी ने कहा, "इस समय बड़ी संख्या में नौजवान डीजे की ओर आकर्षित होते हैं. लेकिन उटपटांग हरकते करना या डीजे बजाकर मिलाद मनाना इस्लाम में स्वीकार्य नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "जिस मार्ग से जुलूस गुजरता है, वहां कई अस्पताल हैं. डीजे के शोर से आम नागरिकों को बड़ी परेशानी होती है, तो रोगियों की क्या स्थिति होती होगी? इसलिए हमने इस साल से डीजे-मुक्त जुलूस निकालने का निर्णय लिया है.
डीजे के कारण पैसे बेकार जाते हैं. अगर इन पैसों का सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो कई जरूरतमंदों की मदद हो सकती है. हमने मोमिनपुरा में एक मंडल से मुलाकात की. उस मंडल ने डीजे के पैसे बचाकर 3000 जरूरतमंदों को भोजन कराया. सभी को इसका अनुकरण करना चाहिए."
ऐसा होगा जुलूस का स्वरूप
जुलूस के स्वरूप के बारे में जानकारी देते हुए गुलाम अहमद कादरी ने कहा, "हर साल की तरह इस बार भी पैगंबर जयंती का जुलूस निकलेगा. यह जुलूस शांतिपूर्ण होगा और त्योहार की पवित्रता को बनाए रखने वाला होगा.
इसमें किसी भी प्रकार के नाच-गाने और हुल्लड़बाजी नहीं होगी. अल्लाह और पैगंबर का स्मरण करते हुए यह जुलूस बहुत ही सदगीसे निकलेगा. जुलूस यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आम नागरिकों को इससे किसी प्रकार की असुविधा न हो."
उन्होंने आगे कहा, "मनुशाह मस्जिद से जुलूस निकलते समय सबसे पहले सिरत कमेटी के नात पढ़ने वाले सदस्य होंगे, जो जुलूस का नेतृत्व करेंगे. उनके पीछे घोषणाएं देने वाले छोटे बच्चे होंगे, और उसके बाद उलेमा-ए-किराम शामिल होंगे. जैसे-जैसे जुलूस आगे बढ़ेगा, विभिन्न स्थानों के मुस्लिम समाज के लोग एकत्र होकर इसमें शामिल होते जाएंगे."
इस अवसर पर सिरत कमेटी की ओर से स्थानीय नागरिकों से भी अपील की गई कि वे डीजे-मुक्त जुलूस में हिस्सा लें और पारंपरिक तथा शांतिपूर्ण तरीके से पैगंबर की जयंती मनाएं.
मुस्लिम समाज देना चाहता है शांति और एकता का सन्देश
बिना किसी को तकलीफ दिए डीजे-मुक्त ईद-ए-मिलाद मनाकर मुस्लिम समाज देशवासियों को एक सकारात्मक संदेश देना चाहता है. इस बारे में बताते हुए गुलाम अहमद कादरी कहते हैं, “इस साल की जुलूस को डीजे-मुक्त और शांतिपूर्ण तरीके से मनाकर हम एक सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं.
आने वाले समय में अधिक से अधिक मुस्लिम भाइयों को डीजे-मुक्त जुलूस निकालते हुए समाज में शांति बनाए रखनी चाहिए। उन्हें पैगंबर की जयंती पारंपरिक तरीके से मनानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी किसी भी गतिविधि से किसी को कोई परेशानी न हो.
हम यह संदेश देना चाहते हैं कि देश और समाज में एकता और शांति बनी रहे, जिसमे मुसलमानों का अहम योगदान हो। इससे समाज में मुस्लिमों की छवि को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.”
समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखने तथा हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच भाईचारा बढ़ाने के लिए मुस्लिम समाज द्वारा लिया गया यह निर्णय सभी के लिए एक आदर्श उदाहरण है.