पुंछ ‘हत्याओं’ पर दिल्ली का संकेतः कर्तव्य से कोई समझौता नहीं

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 27-12-2023
Delhi’s signal on Poonch ‘killings’: No compromise on professionalism
Delhi’s signal on Poonch ‘killings’: No compromise on professionalism

 

अहमद अली फैयाज

पुंछ में पूछताछ के दौरान कथित तौर पर मारे गए तीन नागरिकों के परिवारों को पर्याप्त मुआवजा देने और सेना तथा केंद्र शासित प्रदेश सरकार से पूछताछ शुरू करके केंद्र ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील जम्मू-कश्मीर में व्यावसायिकता या मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के उल्लंघन पर कोई समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 

पिछले तीन वर्षों में यह दूसरी बार है कि राजनीतिक प्रतिष्ठान के उच्चतम स्तर, जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने सभी संबंधित पक्षों को कहा है कि किसी भी मानवाधिकार का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, जैसा कि 1990 से 2002 तक कई अवसरों पर देखा गया है.

संयोग से पिछला प्रकरण भी जुलाई 2020 में कश्मीर के शोपियां जिले के अमशीपोरा में एक फर्जी मुठभेड़ में जम्मू के राजौरी जिले के तीन नागरिकों की मौत के बाद आया था. यह 10 साल से अधिक के लंबे अंतराल के बाद हुआ कि तीन युवा और गरीब मजदूरों की हत्या कर दी गई थी. एक फर्जी मुठभेड़ और ‘विदेशी आतंकवादी’ करार दिया गया.

पीएम नरेंद्र मोदी के निर्देश पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा राजौरी पहुंचे. उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और उन्हें धन और सरकारी नौकरियों के रूप में पर्याप्त मुआवजा देने का वादा किया. सेना ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गठित की. इसके निष्कर्षों के कारण एक कैप्टन को दोषी ठहराया गया और बर्खास्त कर दिया गया, जिसकी वर्तमान में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) में समीक्षा चल रही है. यह स्थापित हो गया कि सेना के एक अधिकारी ने बिना किसी उकसावे के और व्यक्तिगत लाभ के लिए फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया था.

गुरुवार, 21 दिसंबर 2023 को जम्मू-राजौरी-पुंछ रोड पर डेरा की गली (डीकेजी) इलाके में एक आतंकी हमले में सेना के चार जवान शहीद हो गए. बाद में, कथित तौर पर मारे गए सैनिकों में से दो के सिर कटे हुए पाए गए.

शुक्रवार, 22 दिसंबर को, जब उधमपुर स्थित उत्तरी कमान, नगरोटा स्थित व्हाइट नाइट कोर के वरिष्ठ अधिकारी, साथ ही जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक और आईजीपी जम्मू एक सैन्य गठन में स्थिति का जायजा ले रहे थे, कथित तौर पर सैनिक उसी पड़ोस में नौ ‘संदिग्धों’ को उठाया और उनसे निरंतर पूछताछ की. स्थानीय पुलिस इस प्रक्रिया से जुड़ी नहीं थी.

देर शाम यह खबर फैल गई कि हिरासत में लिए गए तीन लोगों की पूछताछ के दौरान मौत हो गई है. दो विशेष वीडियो, जिनमें कथित तौर पर सैनिकों को बंदियों पर डंडे मारते और उनके नग्न अंगों पर लगे घावों पर मिर्च पाउडर छिड़कते हुए दिखाया गया है, इंटरनेट की गति पहले कम होने और बाद में पूरी तरह से निलंबित होने के बाद भी सोशल मीडिया पर फैल गए. धिकारिक संस्करणों में कहा गया है कि तीन व्यक्ति ‘रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए.’

जब जम्मू-कश्मीर पुलिस और नागरिक प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी हिरासत में हुई तीन मौतों से उपजे गुस्से से निपटने की कोशिश कर रहे थे, तभी उच्चतम स्तर पर एक नोटिस लिया गया. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ हत्या के मामले में एफआईआर दर्ज की. जाहिर तौर पर शीर्ष स्तर के निर्देशों के तहत, सेना ने आंतरिक जांच और सेक्टर कमांडर और उसके तीन अन्य अधीनस्थ अधिकारियों को हटाने की घोषणा की.

यह वस्तुतः अप्रैल 2010 में माछिल की फर्जी मुठभेड़ के बाद जुलाई 2020 में केवल विचलन के साथ भारतीय सेना द्वारा बनाए गए लोकाचार और एसओपी के उल्लंघन को स्वीकार करने के समान था.

1990 के बाद यह केवल दूसरी बार था कि ब्रिगेडियर रैंक के किसी अधिकारी को जांच शुरू करके हटाया गया था. प्रतिष्ठित सूत्रों के अनुसार, केंद्र के पास लोगों के बीच विश्वास बहाल करने और रणनीतिक रूप से अति संवेदनशील सीमा क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ उनके दशकों पुराने संबंधों की रक्षा करने के प्रयास में एक स्पष्ट, सख्त कार्रवाई शुरू करने के लिए बाध्यकारी कारण थे.

इसके अलावा, 1990 के बाद यह पहली बार था कि जम्मू-कश्मीर में कथित तौर पर यातनापूर्ण पूछताछ के दौरान तीन नागरिकों की मौत हो गई. पिछली घटनाओं में एक से अधिक बंदी की मौत नहीं हुई थी.

जहां तक हिरासत में कई नागरिकों की हत्याओं का सवाल है, ऐसी सभी घटनाएं फर्जी मुठभेड़ थीं और एक या दो अधिकारियों द्वारा आग्नेयास्त्रों के साथ अंजाम दी गई थीं. इससे पहले कभी भी एक समय में पूछताछ के दौरान तीन नागरिकों की मौत नहीं हुई थी. किसी क्षेत्र में वरिष्ठ पुलिस और सेना अधिकारियों की मौजूदगी के दौरान ऐसा कृत्य पहले कभी नहीं किया गया था.

दूसरा, कथित तौर पर एक शिविर से निकले भयानक वीडियो ने यह धारणा बनाई कि सुरक्षा बल रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में नागरिक आबादी के साथ ‘दुश्मन’ जैसा व्यवहार कर रहे थे. और इसमें शामिल आबादी में गुज्जर-पहाड़ी जातीय अल्पसंख्यक शामिल थे, जिनके सुरक्षा बलों के साथ बेहद मैत्रीपूर्ण संबंध हैं और उन्हें कई उग्रवाद विरोधी अभियानों में मदद करने वाला माना जाता है.

1 दिसंबर 2013 को जम्मू में अपनी पहली ‘ललकार रैली’ में, मोदी ने गुर्जर समुदाय की राष्ट्रवादी साख और गुजरात के साथ संबंधों का विशेष उल्लेख किया. मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे.

राजौरी-पुंछ के सीमावर्ती इलाके के हजारों लोग, जिनमें ज्यादातर गुज्जर, बकरवाल और पहाड़ी हैं, जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ, बीएसएफ और सेना में काम करते हैं. यहां तक कि यूटी पुलिस में भी, इस बेल्ट के कर्मियों को ‘पूर्ण राष्ट्रवादी’ और ‘सबसे भरोसेमंद’ माना जाता है. निवासी अभी भी पुंछ की एक स्थानीय महिला पुलिस अधिकारी की कहानियां सुनाते हैं, जिन्होंने विशेष अभियान समूह (एसओजी) राजौरी में स्वेच्छा से अपनी पोस्टिंग करवाई थी और सबसे बुरे समय में उग्रवाद का लगभग सफाया कर दिया था.

अनुच्छेद 370 हटने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने केवल दो बार जम्मू-कश्मीर का दौरा किया. दोनों ही मौकों पर उन्होंने राजौरी जिले में सुरक्षा बलों के साथ दिवाली मनाई. गृह मंत्री अमित शाह ने एक भारी उपस्थिति वाली सार्वजनिक रैली में 15 लाख मजबूत पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की घोषणा करने के लिए राजौरी को चुना. तीन नागरिकों की मौत ऐसे समय में हुई है, जब केंद्र की भाजपा सरकार ने लोकसभा और संभावित विधानसभा चुनावों से पहले एसटी आबादी के लिए यूटी विधानसभा में 9 सीटें आरक्षित की हैं.

25 दिसंबर को सेना प्रमुख की यात्रा और 26 दिसंबर को राष्ट्रपति के साथ उनकी बैठक और 27 दिसंबर को रक्षा मंत्री की पुंछ यात्रा दोनों को शीर्ष स्तर से मिले संकेतों के परिणाम के रूप में देखा जा रहा है, जो शुरुआती चुप्पी के विपरीत है. और सुरक्षा बलों की ओर से प्रतिक्रियाओं पर पहरा दिया गया.

अभी तक सकारात्मक संकेत हैं कि कोई कानून-व्यवस्था की स्थिति नहीं बनी और कोई कर्फ्यू नहीं लगाया गया. स्थिति को सावधानी से संभाला जा रहा है, क्योंकि लोगों का विश्वास जीतना और पीओके की सीमा से लगे क्षेत्र में सेना का मनोबल ऊंचा रखना दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. एक अधिकारी ने कहा, हमारी तत्काल प्राथमिकता उस क्षेत्र में 30-35 युद्ध-कठिन पाकिस्तानी आतंकवादियों के समूहों का सफाया करना है, जो स्थानीय आबादी के निरंतर समर्थन से ही संभव है. उन्होंने विश्वास जताया कि ‘एक गलती’ सेना के सैकड़ों स्वच्छ अभियानों को नष्ट नहीं कर सकती, जिनमें से प्रत्येक पूरी व्यावसायिकता के साथ चलाया गया था.