आवाज द वाॅयस /नई दिल्ल्ली
भारत में एक बार फिर इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर तनाव और विवाद खड़ा हो गया है।. पिछले साल की तरह इस बार भी 'आई लव मोहम्मद' लिखे पोस्टरों को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गई हैं. यह नया मसला देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों और प्रमुख संगठनों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है.
इन सभी ने एक स्वर में गिरफ्तारियों का कड़ा विरोध किया है. साथ ही इस विवाद को बेवजह बढ़ावा देने की आलोचना भी की है, जबकि शांति और संवैधानिक अधिकारों के सम्मान पर जोर दिया है.
प्रख्यात इस्लामी विद्वान मौलाना ज़हीर अब्बास रिज़वी ने इस पूरे विवाद पर गहरा दुःख व्यक्त किया है. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कोई भी धर्म संघर्ष, हिंसा या घृणा को बढ़ावा नहीं देता. शांति बनाए रखने और बहाल करने की अपील करते हुए, मौलाना रिज़वी ने कहा कि हर धर्म का सबसे महत्वपूर्ण संदेश “जियो और जीने दो” है.
'आवाज़' से बात करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म ही इंसान को सच्चा इंसान बनाता है, न कि पशु. उन्होंने आगाह किया कि जिन पूज्य हस्तियों के नाम पर अशांति फैलाई जा रही है, वे वास्तव में हर धर्म के अनुयायियों के लिए सम्मान के पात्र हैं.
मौलाना रिज़वी ने स्पष्ट रूप से कहा, "हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए. सद्भाव से रहना चाहिए, क्योंकि इससे एक सुव्यवस्थित और शांतिपूर्ण समाज का संदेश जाता है."
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि देश का माहौल शांतिपूर्ण बना रहना चाहिए और सभी संवेदनशील मामलों में कानून और संविधान का सम्मान किया जाना चाहिए. उनका आग्रह है कि किसी भी स्थिति में कानून का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, न ही किसी को कानून अपने हाथ में लेना चाहिए और न ही संवैधानिक अधिकारों का हनन करना चाहिए. उनके अनुसार, ये एक समृद्ध राष्ट्र और सभ्य समाज की सच्ची निशानियाँ हैं.
अजमेर दरगाह और चिश्ती फाउंडेशन के प्रमुख सैयद सलमान चिश्ती ने इस संवेदनशील मुद्दे पर संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है. उन्होंने कहा कि प्रत्येक भारतीय को कानून का सम्मान करना चाहिए, संविधान की रक्षा करनी चाहिए और किसी भी तरह के टकराव या विवाद से दूर रहना चाहिए.
सैयद सलमान चिश्ती ने दोनों पक्षों के लिए सावधानी बरतने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि एक ओर, 'आई लव मुहम्मद' का नारा लगाने वालों को सावधानी बरतनी चाहिए, वहीं दूसरी ओर, अधिकारियों को भी इस संवेदनशील मुद्दे से पूरी सावधानी से निपटना चाहिए.
उन्होंने कहा कि किसी भी युवा या प्रदर्शनकारी को कानून और संविधान के विरुद्ध कार्य नहीं करना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही, सरकार और पुलिस को संवैधानिक स्वतंत्रताओं की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए.
उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर विशेष ज़ोर दिया, जो प्रत्येक भारतीय को प्राप्त है,चाहे वह सोशल मीडिया पर हो या सार्वजनिक सभाओं और प्रदर्शनों के माध्यम से.
उन्होंने खेद व्यक्त किया कि ऐसी परिस्थितियों में कुछ तत्व माहौल बिगाड़ने की कोशिश करते हैं, जिससे निर्दोष युवाओं के साथ अन्याय होता है. चिश्ती ने अपील की कि इस्लाम के पैगंबर के प्रति प्रेम को टकराव का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए. लोगों को धार्मिक सहिष्णुता का प्रदर्शन करना चाहिए, जो उनके अनुसार इस देश का गौरव और सार है.
इस पूरे मामले में एआईएमआईएम (AIMIM) के सदर असदुद्दीन ओवैसी सबसे मुखर रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में इस विवाद को बढ़ाने की आलोचना करते हुए कहा है कि पैगंबर मोहम्मद इस्लाम के आखिरी नबी थे और कोई भी मुसलमान इन्हें माने बिना मुसलमान नहीं हो सकता.
ओवैसी का तर्क है कि अगर मुसलमान 'आई लव मोहम्मद' कह रहे हैं, तो इसे विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए. उन्होंने तल्ख़ लहजे में पूछा, "यदि आप लव (मुहब्बत) का विरोध कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आप मुहब्बत के विरोधी हैं."
अपने बयान को व्यापक बनाते हुए उन्होंने कहा कि अगर कोई हिंदू 'आई लव महादेव' कहे, तो इस पर भी किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. उन्होंने आगाह किया कि इस तरह के विवादों से दुनिया में भारत की छवि खराब होती है.
ओवैसी के अलावा, मुंबई की रज़ा अकादमी और द मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (MSO) जैसे प्रमुख सुन्नी समूहों ने भी सुलझा हुआ और संतुलित बयान दिया है. उन्होंने 'आई लव मोहम्मद' को लेकर हुई गिरफ्तारियों का कड़ा विरोध किया है, वहीं इस पर विवाद खड़ा करने वालों को संयम से काम लेने की नसीहत भी दी है.
इन दोनों संगठनों ने विरोध और नसीहत से एक कदम आगे बढ़कर कानूनी रुख अपनाया है. मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (एमएसओ) और रज़ा अकादमी ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है, जहाँ उन्होंने 'आई लव मुहम्मद' लिखे पोस्टरों से संबंधित कई प्राथमिकियों (FIRs) और गिरफ्तारियों को चुनौती दी है. उन्होंने दावा किया है कि ये पोस्टर महज़ "भक्ति की अभिव्यक्ति" थे.
दायर जनहित याचिका (PIL) में कहा गया है कि दर्ज की गई प्राथमिकी 'सांप्रदायिक प्रकृति' की हैं और याचिकाकर्ताओं के 'मौलिक अधिकारों' का उल्लंघन करती हैं. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ये प्राथमिकी उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर "मुस्लिम समुदाय के उन साधारण नागरिकों के खिलाफ दर्ज की गईं, जिन्होंने केवल धार्मिक त्योहारों को मनाने और ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने की कोशिश की."
याचिका में यह भी कहा गया है कि बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा उन्हें बिना किसी ठोस या स्वतंत्र साक्ष्य के आपराधिक मामलों में फंसाया गया है. रज़ा अकादमी और एमएसओ ने जहाँ एक ओर गिरफ्तारियों और एफआईआर का विरोध किया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने मुसलमानों को भी संयम और समझदारी से काम लेने की सलाह दी है. दोनों संगठनों ने कहा कि किसी भी धार्मिक भावना की अभिव्यक्ति को लेकर टकराव का रास्ता नहीं अपनाया जाना चाहिए.
यह पूरा विवाद 9 सितंबर को तब शुरू हुआ, जब कानपुर पुलिस ने बारावफात जुलूस के दौरान सार्वजनिक सड़क पर 'आई लव मुहम्मद' लिखे बोर्ड लगाने के आरोप में 9 नामजद और 15 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. हिंदू समूहों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे "परंपरा से विचलन" और "जानबूझकर उकसावे" वाला कृत्य बताया था, जिसके बाद यह मामला गरमा गया.
मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवी और संगठन अब इस विवाद को जल्द से जल्द शांत करने और अनावश्यक गिरफ्तारियों को रोकने के लिए कानूनी और सामाजिक दोनों स्तरों पर सक्रिय प्रयास कर रहे हैं.