जहाँ विजयदशमी से शुरू होता है उत्सव: कुल्लू दशहरे की अनोखी परंपरा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 27-09-2025
Kullu-Manali's Ramlila and Dussehra: A unique tradition and world-renowned event in Devbhoomi
Kullu-Manali's Ramlila and Dussehra: A unique tradition and world-renowned event in Devbhoomi

 

अनीता

भारत की सांस्कृतिक धरोहरों में कुछ त्योहार ऐसे हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और अंतरराष्ट्रीय पहचान के भी प्रतीक बन गए हैं. ’’हिमाचल प्रदेश का कुल्लू दशहरा’’ इन्हीं में से एक है. जब देश भर में विजयदशमी के दिन रावण दहन के साथ रामलीला का समापन होता है, उस समय कुल्लू में दशहरा की शुरुआत होती है. यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है.

कुल्लू-मनाली की रामलीला और दशहरा का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा है और आज यह आयोजन न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है. इसे ’’यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची’’ में भी स्थान प्राप्त है. कुल्लू दशहरा का आरंभ ’’सन् 1637’’ में हुआ, जब कुल्लू के राजा ’’जगत सिंह’’ ने भगवान रघुनाथ (राम) की प्रतिमा को अपने राज्य का संरक्षक देवता घोषित किया.

Kullu Dussehra: A Spectacular Experience For Travellers

किंवदंती है कि राजा जगत सिंह पर चोरी का झूठा आरोप लगने से वह अपराधबोध से ग्रसित हो गए. एक संत ’’पंडित कृष्ण दास’’ ने उन्हें सलाह दी कि वे अयोध्या से भगवान राम की मूर्ति लाकर अपने राज्य में स्थापित करें. मूर्ति स्थापित होते ही राजा के पाप धुल गए और तभी से कुल्लू में दशहरा उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई.

विजयदशमी से शुरू, सात दिन तक उत्सव

अन्य स्थानों पर दशहरा विजयदशमी के दिन समाप्त होता है, लेकिन कुल्लू में उसी दिन से यह उत्सव शुरू होता है और पूरे ’’सात दिन तक’’ चलता है. कुल्लू दशहरा में पारंपरिक ’’रामलीला का मंचन’’ होता है, जिसमें स्थानीय कलाकार लोकगीतों, नृत्य और नाट्य के माध्यम से रामायण की कथाएँ प्रस्तुत करते हैं. यहाँ की रामलीला में एक खास बात यह है कि मंचन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदेशों से भी भरा होता है.

देवताओं की शोभायात्रा

कुल्लू दशहरा की सबसे खास पहचान है - ’’देवताओं की रथयात्रा’’. लगभग ’’300 से ज्यादा देवता और देवी-देवियों की मूर्तियाँ और पालकियाँ’’ हिमाचल के अलग-अलग गाँवों से यहाँ लाई जाती हैं. इन्हें “देव रथ” पर बिठाकर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. मुख्य रथ पर भगवान रघुनाथ की मूर्ति विराजमान होती है और बाकी देवता उनके सामने नतमस्तक होते हैं. इस दृश्य को देखने हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक उमड़ते हैं.

यह आयोजन इतना मशहूर क्यों है?

यहाँ रामलीला और दशहरा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ’’राज्य की आस्था और पहचान’’ है. कुल्लू को देवभूमि कहा जाता है और दशहरा इस भूमि का सबसे बड़ा पर्व है. हिमाचल के विभिन्न लोकनृत्य और लोकगीत इस आयोजन का हिस्सा होते हैं. स्थानीय कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का मंच मिलता है. यह आयोजन पूरे राज्य की सांस्कृतिक विविधता को एक साथ दिखाता है. कुल्लू दशहरा की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि 1972 में इसे ’’अंतरराष्ट्रीय त्योहार’’ घोषित कर दिया गया. आज रूस, नेपाल, अमेरिका और कई यूरोपीय देशों से सांस्कृतिक दल यहाँ भाग लेने आते हैं.

Kullu Dussehra festival begins today: Check out how it is different from  Delhi's Ramleelas

ऐतिहासिक क्षण

राजा जगत सिंह द्वारा भगवान रघुनाथ की प्रतिमा को कुल्लू लाने और उसे राज्य देवता घोषित करने की घटना इस आयोजन की नींव मानी जाती है. ब्रिटिश शासनकाल में भी इस उत्सव को संरक्षण मिला. अंग्रेज अधिकारी इसकी भव्यता देखकर प्रभावित होते थे और इसे देखने आते थे. भारत सरकार ने 1972 में इसे ‘अंतरराष्ट्रीय महोत्सव’ घोषित किया. तब से यहाँ विदेशी कलाकारों का आना-जाना शुरू हुआ. यूनेस्को ने 2017 में कुल्लू दशहरा को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर  में शामिल किया.

आज कुल्लू दशहरा में न केवल धार्मिक रथयात्राएँ होती हैं, बल्कि ’’राजनीतिक नेताओं, फिल्मी सितारों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों’’ की उपस्थिति भी होती है. लोक कलाकार राजेश ठाकुर बताते हैं, “हमारे लिए रामलीला केवल एक नाटक नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा की अभिव्यक्ति है. हर साल इसमें भाग लेना हमारे लिए सौभाग्य है.”

एक पर्यटक के अनुसार “मैं पहली बार कुल्लू दशहरा देखने आया हूँ. यहाँ का माहौल अद्भुत है. पूरे देश में ऐसा दृश्य कहीं और देखने को नहीं मिलता.” हिमाचल विश्वविद्यालय की इतिहासकार डॉ. वीना शर्मा के अनुसार, “कुल्लू दशहरा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह विजयदशमी से शुरू होता है और पूरे सात दिन तक चलता है. यह भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और विविधता का सुंदर प्रतीक है.” कुल्लू निवासी मदन नेगी का कहना है कि “हमारे पूर्वजों ने जो परंपरा शुरू की थी, उसे हम आज भी उसी श्रद्धा से निभा रहे हैं. यही हमारी पहचान है.”

Kullu Dussehra: A Grand Celebration of Culture, Devotion, Unity

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

दशहरे के दौरान लाखों पर्यटक कुल्लू-मनाली आते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बड़ा लाभ होता है. होटल, रेस्तरां, हस्तशिल्प और लोककला को नया बाजार मिलता है. यह आयोजन सामाजिक एकता और धार्मिक सद्भाव को भी मजबूत करता है. कुल्लू-मनाली की रामलीला और दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता, धार्मिक आस्था और सामाजिक एकता का अद्भुत उदाहरण है. यह उत्सव देवभूमि की परंपराओं को दुनिया भर में पहचान दिला चुका है. यही कारण है कि कुल्लू दशहरा को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सम्मानित स्थान प्राप्त है.