हिन्दी साहित्य में बिहार के मुस्लिम साहित्यकारों का योगदान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 14-09-2024
Contribution of Muslim writers of Bihar in Hindi literature
Contribution of Muslim writers of Bihar in Hindi literature

 

अभिषेक कुमार सिंह

आज हिन्दी साहित्य में अलग-अलग विमर्शों पर गहरी चर्चा हो रही है, लेकिन अल्पसंख्यक विमर्श अब भी इस चर्चा से दूर है. अल्पसंख्यक विमर्श के तहत सिर्फ सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समस्याओं का उद्घाटन नहीं होता, बल्कि इसके माध्यम से साहित्य में क्या नया हो सकता है, इस पर भी ध्यान देना जरूरी है.

हर युग में जीवन-मूल्य बदलते हैं, और साहित्य का उद्देश्य भी उनके साथ बदलता है. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, मध्यकाल (भक्ति और रीतिकाल) और आधुनिक काल अपने-अपने समय की समस्याओं और जीवन-मूल्यों को उजागर करता है.

आज, इक्कीसवीं सदी में जब हिन्दी साहित्य के एक हजार वर्ष पूरे हो चुके हैं, अल्पसंख्यक विमर्श की गूंज भी सुनाई दे रही है. हिन्दी में अल्पसंख्यक विमर्श उस साहित्य को इंगित करता है, जिसे मुस्लिम हिन्दी लेखकों ने अपने समाज के बारे में लिखा है.

अगर हिन्दी साहित्य की बात करें, तो बिहार का उल्लेख होना स्वाभाविक है. बिहार के मुस्लिम साहित्यकारों में मुल्ला दाऊद और शाद अज़ीमाबादी प्रमुख नाम हैं.मुल्ला दाऊद को हिंदी के पहले सूफी प्रेमकवि के रूप में जाना जाता है.

उनकी रचना ‘चंदायन’ हिंदी का पहला ज्ञात सूफी प्रेमकाव्य है, जिसमें नायक लोरिक और नायिका चंदा की प्रेमकथा वर्णित है. इस काव्य की रचना का समय विवादास्पद है, लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार इसे 14वीं शताब्दी के अंतिम दशकों (1379 ई.) में लिखा गया था.

यह कथा उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकगाथा के रूप में ‘लोरिकायन’ या ‘लोरिकी’ के नाम से प्रचलित है. इस प्रेमकथा में सूफी रहस्यवाद और मर्मस्पर्शी सौंदर्य चित्रण देखने को मिलता है.

इसके बाद, शाह अज़ीमाबादी का नाम उल्लेखनीय है, जिनका जन्म 8 जनवरी 1846 को पटना में हुआ था. उनका परिवार समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान रखता था. उन्होंने इस्लाम के साथ हिंदू और ईसाई धर्म का भी अध्ययन किया और ग़ज़ल तथा मर्सिया लिखने में माहिर थे.

शाद अज़ीमाबादी ने छोटी उम्र से ही कविता में रुचि दिखाई और अपने समय के कई प्रसिद्ध कवियों से शिक्षा प्राप्त की. उनकी कविताएँ पाँच खंडों में प्रकाशित हुईं. उनके शिष्य बिस्मिल अज़ीमाबादी और पोती शहनाज़ फातमी भी प्रसिद्ध साहित्यकार हैं.

बिहार की मुस्लिम महिला लेखकों में रशीद-उन-निसा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. वे उर्दू की पहली महिला उपन्यासकार, समाज सुधारक और लेखिका थीं. उनके पहले उपन्यास ‘इस्लाह-उन-निसा’ ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई.

उन्होंने लड़कियों के लिए बिहार का पहला स्कूल भी खोला. उनके उपन्यास का प्रकाशन 1894 में हुआ था और इसका पुन: प्रकाशन 1968 और 2001 में किया गया. 2006 में पटना की खुदाबक्श लाइब्रेरी ने भी इस उपन्यास को जारी किया.

बिहार के मुस्लिम साहित्यकारों का हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जो न केवल साहित्यिक धरोहर को समृद्ध करता है, बल्कि समाज और संस्कृति के विविध पहलुओं को भी उजागर करता है.