हिंसक घटनाओं के बीच कश्मीर से अच्छी खबर, छह देश अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में विलो बल्ले का करेंगे इस्तेमाल

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
हिंसक घटनाओं के बीच कश्मीर से अच्छी खबर, छह देश अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में विलो बल्ले का करेंगे इस्तेमाल
हिंसक घटनाओं के बीच कश्मीर से अच्छी खबर, छह देश अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में विलो बल्ले का करेंगे इस्तेमाल

 

मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली 
 
कश्मीर में जब खूनी खेल का दौर जारी है और आतंकी हमले के कारण हर तरफ इस प्रदेश की आलोचना हो रही है. ऐसे समय में यहां से एक अच्छी खबर आई है. खबर है कि आगामी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में छह देश कश्मीर में बने विलो बैट का इस्तेमाल करेंगे. मौजूदा सरकार के प्रयासों और आईसीसी की सहमति से छह देशों ने इसपर मुहर लगा दी है.

बता दें कि पिछले एक सप्ताह में कश्मीर में करीब छह निर्देशों की आतंकवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी है. इन घटनाओं को लेकर पूरे देश में गुस्सा है. इसी बीच कश्मीर के क्रिकेट जगह से यह खुशखबरी आई है.
 
नौ महीने पहले यहां के दो ओमानी खिलाड़ियों, बिलाल खान और नसीम खुशी ने टी 20 विश्व कप में कश्मीर विलो का इस्तेमाल किया था. तब से यहां के बल्ले को लेकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर माहौल बनने लगा है.
 
जीआर 8 स्पोर्ट्स नामक कंपनी के मालिक फौजुल कबीर कहते हैं कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश, यूएई, बहरीन, पाकिस्तान और श्रीलंका ने कश्मीर विलो बैट का उपयोग करने पर सहमति जताई है.
 
उन्होंने कहा,“हम बहुत उत्साहित हैं कि कश्मीर विलो क्रिकेट बैट अब अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा कर रहे हैं. यह क्रिकेटरों को आकर्षित कर रहा है. इस साल हम इन छह देशों के खिलाडियों को कश्मीरी बल्ले से खेलते दिखेंगे.
 
कबीर ने कहा कि उनकी कंपनी ने हाल में उनके बल्ले का इस्तेमाल करने के लिए छह अफगान राष्ट्रीय टीम के क्रिकेटरों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.अफगान खिलाड़ी हमारे क्रिकेट के बल्ले का इस्तेमाल करेंगे. टी20 के बाद टेस्ट मैचों में हमारे बल्ले का इस्तेमाल किया जाएगा. हमारे बल्ले इस साल ऑस्ट्रेलिया में खेले जाने वाले एशिया कप और टी20 विश्व कप में खेलेंगे.
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कबीर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि टीमें इंग्लिश विलो की जगह कश्मीरी बल्लों को तरजीह देंगी.  बता दें कि  पिछले साल अक्टूबर में आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप में पहली बार कश्मीर विलो बैट का इस्तेमाल किया गया था.
 
कबीर ने बिलाल खान और विकेटकीपर-बल्लेबाज नसीम खुशी सहित ओमानी खिलाड़ियों को शामिल किया था, जिन्होंने टी 20 मैचों में कश्मीर विलो का इस्तेमाल किया. उन्होंने आईसीसी से मंजूरी मिलने के बाद बल्ले का इस्तेमाल किया. इससे पहले आईसीसी ने अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए कश्मीरी विलो क्रिकेट बैट के विभिन्न मापदंडों की जांच कराई थी.कश्मीर विलो क्रिकेट बैट की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही है.
 
उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी को बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, स्कॉटलैंड, डेनमार्क, श्रीलंका और खाड़ी देशों से ऑर्डर मिले हैं.जम्मू और कश्मीर सरकार कश्मीर विलो बल्लों के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) प्रमाणन प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, जिनकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारी मांग है.
 
अब तक कश्मीर की क्रिकेट बैट निर्माण इकाइयां कोविड की तालाबंदी के कारण मांग में गिरावट और नुकसान से जूझ रही थीं.बैट निर्माताओं के अनुसार, 2019 से लॉकडाउन के कारण उन्हें 1000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है.
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कश्मीर के बैट उद्योग का बदल गया भाग्य

भारत को आजादी मिलने के बाद 1947 में कश्मीर बैट उद्योग की स्थापना हुई थी. तब से घाटी में लाखों बैट बनाए गए, लेकिन किसी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ियों द्वारा उपयोग नहीं किया गया.
विलो बैट फैक्ट्री मालिक के मालिक फुज्जल कबीर ने कहा, ‘कश्मीर में हमने पिछले 75 सालों में पहली बार जो कदम उठाया है, वह यह है कि हमारे बल्ले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.
 
लोगों को पता चला कि कश्मीर में एक उत्पाद है, जिसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में इस्तेमाल किया जा सकता है.फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि वे ज्यादा से ज्यादा बैट बनाने के लिए दिन रात काम कर रहे हैं. कश्मीर में जितना उत्पादन हो रहा है, उससे अधिक मांग है. 
 
भारत सरकार ने हाल में कश्मीर बैट इंडस्ट्री को जीआई टैगिंग दी है. इसने उद्योग को क्वालिटी नियंत्रण के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिलेगी और यह एक ब्रांड बनेगा. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम्पीट करने के लिए बैट फैक्ट्री मालिकों ने देश के अलग-अलग हिस्सों से विशेषज्ञों को बैट बनाने के लिए नौकरी पर रखा है.
 
वे विशेषज्ञ जिन्होंने सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग जैसे क्रिकेटरों के लिए बैट बनाए हैं, वे कश्मीर में हैं और कश्मीर को बेहतरीन विलो बैट बनाने में मदद कर रहे हैं.
 
बैट बनाने वाले कारिगर रवि टाइगर ने कहा, ‘कश्मीरी विलो लकड़ी ठीक लकड़ी हैं, इसको जांचना पड़ता हैं, उसके बाद यह बैट बनाते हैं. कश्मीर क्रिकेट बैट उद्योग प्रति वर्ष लगभग 100 करोड़ का कारोबार करता है और यह उद्योग कश्मीर में लगभग 56 हजार लोगों को पालता है और अब इस नए बदलाव से उम्मीद है कि कारोबार दोगुना हो जाएगा.
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कैसे बनते हैं कश्मीर के विलो बैट ?

श्रीनगर से पहलगाम जाते वक्त रास्ते में बहुत सी दुकानों और रोड के किनारे बैट टंगे मिल जाएंगे जो विलो के पेड़ से बनाए जाते हैं. वहां के कारीगर नसीर अली के अनुसार, ‘‘इन पेड़ों को तैयार होने में लगभग 10 से 12 साल लग जाते है.
 
फिर इनको सुखाया जाता है, इसमें लगभग डेढ़ साल का समय लगता है. फिर बैट तैयार कर के बाजार में उतारा जाता है.‘‘ इंग्लैंड के बाद कश्मीर दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, जहां विलो का पेड़ उगता है और इसी पेड़ को काटकर सूखाकर उसी से क्रिकेट बैट का निर्माण किया जाता है.
 
कश्मीर देश का एक मात्र विलो पेड़ की उत्पत्ति का राज्य है. इंग्लिश विलो पेड़ की पांच प्रजातियां होतीं हैं. जिस प्रजाति का क्रिकेट बल्ला तैयार किया जाता है उसे ‘सेलिक्स अल्बा ‘केरुलिया‘ कहा जाता है.
 
ये विलो पेड़ का साइंटिफिक नाम भी है. विलो पेड़ ठंडे जगहों पर ही पाए जातें हैं. कश्मीर से विलो के पेड़ बैट बनाने के लिए पूरे भारत में सप्लाई किया जाता है. नसीर अली आगे बतातें हैं, ‘‘एक पेड़ से लगभग 100 से लेकर 200 तक बैट निकल जाते हैं, बाकी पेड़ जितना मोटा होता है उस हिसाब से बैट भी निकलता है.‘‘ कश्मीर की जलवायु भी विलो पेड़ को प्रभावित करती है. वहां की जलवायु के कारण इंग्लैंड के मुकाबले यहां के बैट भारी होते हैं.