धारवाड़ ज़िले का एक बेहद पिछड़ा और गरीब गाँव मदाकिकोप्पा अब विकास की नई राह पर है. इस गाँव को वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ और विट्ठल बाल स्वास्थ्य संस्थान के संस्थापक डॉ. राजन देशपांडे ने अपनी संस्था की रजत जयंती के अवसर पर गोद लिया है. मात्र 14-15 घरों और लगभग 100 की आबादी वाला यह गाँव, जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर स्थित है. यहाँ का मुख्य व्यवसाय डेयरी फार्मिंग है, और यही कारण है कि गाँव में मवेशियों की संख्या इंसानों से भी ज़्यादा है.
डॉ. देशपांडे की इस पहल की शुरुआत 2010 में हुई थी, जब उन्होंने गाँव में एक स्वास्थ्य शिविर लगाया था. उसी समय उन्होंने देखा कि गाँव में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है—कनेक्टिविटी नहीं है, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति बेहद खराब है, और लोग अत्यधिक गरीबी में जीवन गुज़ार रहे हैं.
यह सब देखने के बाद उन्होंने तय किया कि जब अवसर मिलेगा, वे इस गाँव के लिए कुछ ज़रूर करेंगे. अब जब विट्ठल संस्थान अपनी 25 वीं वर्षगांठ मना रहा है, तब उन्होंने 'सनशाइन' परियोजना के तहत मदाकिकोप्पा को गोद लेकर उसके समग्र विकास की दिशा में कदम बढ़ाया है.
सनशाइन परियोजना का उद्देश्य केवल बुनियादी सुविधाएँ देना नहीं, बल्कि गाँव को हर पहलू से आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना है. इसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक सशक्तिकरण, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक बदलाव जैसे क्षेत्रों में काम किया जा रहा है.
सबसे पहले उन्होंने स्वास्थ्य सेवा से शुरुआत की, जिसमें खासतौर पर महिलाओं और बच्चों के इलाज पर ध्यान दिया जा रहा है. अब अगला चरण है—गाँव के हर घर को बेहतर आवास और शौचालय जैसी ज़रूरी सुविधाओं से जोड़ना.
इस परियोजना के तहत कई नवाचार भी किए जा रहे हैं. हर घर के बाहर शौचालय और स्नानगृह बनाए जा रहे हैं, स्वच्छता के लिए पानी की टंकियाँ लगाई जा रही हैं, धुआंरहित बर्नर वितरित किए जा रहे हैं, और प्रति घर चार से पाँच सौर ऊर्जा बल्बों की व्यवस्था की जा रही है, जिसमें मोबाइल चार्जिंग यूनिट भी शामिल है.
इतना ही नहीं, स्थानीय कलाकार गाँव की पारंपरिक झोपड़ियों को सुंदर कलाकृति से सजाएँगे ताकि गाँव का सांस्कृतिक सौंदर्य भी बना रहे। साथ ही, पहाड़ी से रिसने वाले पानी को खाई के ज़रिए संग्रह कर जल संरक्षण की दिशा में भी प्रयास किए जा रहे हैं.
गाँव के निवासी इस परिवर्तन को देखकर बेहद खुश हैं. राजू झोर नाम के एक ग्रामीण का कहना है कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई उनकी समस्याओं को सुनने आएगा, लेकिन अब डॉक्टर देशपांडे उनके बीच हैं और उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं. हालाँकि गाँव में एक स्कूल है, पर वह नाम मात्र का है. अब ग्रामीण संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.
डॉ. देशपांडे का यह कदम सिर्फ मदाकिकोप्पा के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है कि कैसे सही इरादे, संवेदनशीलता और सतत प्रयासों से किसी छोटे से गाँव को भी बदलाव की राह पर लाया जा सकता है. यह पहल उन सभी लोगों और संस्थाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई है, जो देश के ग्रामीण इलाकों में बदलाव लाना चाहते हैं.