राम कथा की उर्दू अनुवादक डॉ माहे तिलत सिद्दीकी कहती हैं, समाज को आदर्श जीवन की सीख देते हैं प्रभु राम

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 28-01-2023
प्रभु राम की जीवन गाथा में ‘आर्ट ऑफ लिविंग’
प्रभु राम की जीवन गाथा में ‘आर्ट ऑफ लिविंग’

 

रावी द्विवेदी / नई दिल्ली

ऐसे मुस्लिम साहित्यकारों की कमी नहीं है, जिन्होंने श्रीराम के मर्यादापूर्ण जीवन, त्याग और समर्पण की गाथा को अपनी गजलों और नज्मों में पिरोया है और इसे सामाजिक सद्भाव और सांप्रदायिक सौहार्द्र का जरिया बनाया है. कानपुर की रहने वाली शिक्षिका और साहित्यकार डॉ. माहे तिलत सिद्दीकी इसी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. उनकी नजर में राम सिर्फ आस्था के प्रतीक ही नहीं, बल्कि समाज को परस्पर भाई-चारे के साथ मिलजुलकर रहना सिखाने वाले एक आदर्श चरित्र भी हैं. वह मौजूदा परिवेश में राम के जीवन के बारे में गहराई से समझने और सीखने को बेहद प्रासंगिक मानती हैं.

हमको भी आस्था है श्रीराम जी के साथ

जितने हैं तुम्हारे उतने है हमारे

महलों की रानी राम की अर्धांगिनी सीते

चल दी अरण्य की ओर हर सुख को बिसारे

इन पंक्तियों के जरिये डॉ. माहे तिलत सिद्दीकी ने शायद यही बताने की कोशिश की है कि श्रीराम किसी एक धर्म या संप्रदाय की आस्था तक सीमित नहीं है, वो सबके हैं और सबको उनसे जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए.

आवाज-द वॉयस के साथ बातचीत में डॉ. सिद्दीकी कहती हैं कि राम की जीवन गाथा में दरअसल पूरी ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ समाई है. उनके मुताबिक, ‘‘रिश्तों की गरिमा समझाने के लिए उनका जीवन एकदम आदर्श है.

घर, परिवार, समाज हो या फिर प्रजा, उन्होंने कभी भी रिश्तों की मर्यादा को नहीं लांघा.’’ पिछले करीब पांच दशकों से मानस संगम के जरिये देश-दुनिया को प्रभु श्रीराम और उनके आदर्शों से अवगत कराने के अभियान में जुटे प्रख्यात विद्वान पंडित बद्री नारायण तिवारी को पिता तुल्य मानने वाली डॉ. माहे तलत कहती हैं कि तमाम धार्मिक ग्रंथों की तरह राम चरित मानस भी लोगों को आपस में मिलजुलकर रहने की ही सीख देता है.

रामकथा का उर्दू में किया अनुवाद

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डॉ. माहे तिलत उस समय सुर्खियों में आईं, जब उन्होंने राम कथा और मुस्लिम साहित्यकार समग्र का उर्दू में तर्जुमा किया. दरअसल ये उन तमाम मुस्लिम साहित्यकारों की रचनाओं का संकलन है,

जिन्होंने श्रीराम के चरित्र पर अपनी लेखनी चलाई है. मूलतः हिंदी में इस संकलन के लेखक और संपादक बद्री नारायण तिवारी है. डॉ. सिद्दीकी बताती हैं कि वह 2012 में बद्री नारायण तिवारी के संपर्क में आईं और उनके सानिध्य में ही उन्होंने राम को सही मायने में समझा. यह पूछे जाने पर कि राम कथा का उर्दू में अनुवाद करने का विचार कैसे आया,

उन्होंने बताया कि बाबूजी (पं. बद्रीनारायण तिवारी) ने ही उन्हें इस काम के लिए चुना था. उन्होंने 2016 में इस पर काम शुरू किया था और इसे पूरा करने में करीब दो साल का वक्त लगा.

किताब में अल्लामा इकबाल, नामी अंसारी, दीन मोहम्मद दीन, अब्दुर्रशीद खान रशीद, शौकत अली शौकत, मिर्जा हसन नसीर जैसे तमाम जाने-माने मुस्लिम शायरों और साहित्यकारों की रचनाएं भी शामिल हैं.

इसमें राम चरित मानस की दोहे-चौपाइयों का उर्दू तर्जुमा शामिल है. वह बताती हैं कि कुछ शायरों ने गद्य में और कुछ ने पद्य के रूप में रामायण की व्याख्या की है. ऐसी तमाम रचनाएं इस किताब का हिस्सा हैं.

डॉ. सिद्दीकी ने खुद भी राम पर केंद्रित तीन नज्में लिखी हैं. जो रामकथा समग्र का हिस्सा हैं. ‘‘हे राम तेरे नाम को हर नाम पुकारे, बंदा ये तेरा पल-पल तेरी राह निहारे...’ ये पंक्तियां राम के प्रति उनकी श्रद्धा को ही दर्शाती हैं.

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यह पूछे जाने पर क्या इस तरह श्रीराम के प्रति आस्था जताने पर उन्हें सामाजिक स्तर पर कोई विरोध झेलना पड़ा, डॉ. सिद्दीकी कहती हैं कि उन्होंने बचपन से ही अपने घर और आस-पड़ोस में मिली-जुली तहजीब वाला माहौल ही देखा है. उन्हें कभी भी इस तरह के किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. वैसे भी साहित्यकारों को धर्मांधता के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. वह कहती हैं कि कोई भी धर्म नफरत या भेदभाव करना नहीं सिखाता है.

गंगा-जमुनी तहजीब को बचाए रखने की कोशिश

डॉ. सिद्दीकी कहती हैं कि राम कथा का उर्दू में तर्जुमा करना गंगा-जमुनी तहजीब बचाए रखने की उनकी कोशिश का एक हिस्सा है. वह चाहती हैं कि लोग यह जान सकें कि मुस्लिम साहित्यकारों की नजर में राम क्या हैं और सामाजिक सद्भाव के लिए वह आज भी कितने प्रासंगिक हैं.

उन्हें लगता है कि राम कथा का उर्दू में अनुवाद होने से ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम श्रीराम के बारे में जान सकेंगे. वह कहती हैं, ‘‘मौजूदा समय में इसकी काफी जरूरत भी है, ताकि हम उनके जीवन से कुछ जान-सीख सकें और सारे द्वेषों को भुलाकर आपस में मिलजुलकर रहना सीख सकें.’’

डॉ. सिद्दीकी कहती हैं कि वह ऐसा कुछ करना चाहती थीं जिससे पुरानी और नई पीढ़ी भी श्रीराम के बारे में जान सके. अपनी लेखनी के जरिये उनका मुख्य उद्देश्य मानवता का संदेश देना ही रहा है.

 

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डॉ. सिद्दीकी कहती हैं, ‘‘मुस्लिम साहित्यकारों ने ये बात काफी पहले समझ ली थी कि सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने की कोशिशों में श्रीराम की क्या अहमियत है. शायद यही वजह है कि अल्लामा इकबाल जैसे मशहूर शायर ने उन्हें इमामे हिंद की संज्ञा दी थी.’

’ गौरतलब है कि अल्लामा इकबाल का यह शेर काफी चर्चित हैः ‘‘राम के वजूद पे हिंदोस्तां को नाज, अहले नजर समझते हैं उनको इमाम-ए-हिंद.’’ राम पर उन्हें कौन-सी नज्में पसंद हैं,

इस पर डॉ. सिद्दीकी स्वर्गीय शायर नामी अंसारी की यह पंक्तियां सुनाती हैं, ‘कोई रावण कभी सिर उसका झुकाता कैसे, उनके माथे पर तो दशरथ की दुआ रौशन है.’ उन्हें अब्दुल कादिर बदायूंनी के काम ने भी काफी प्रभावित किया, जिन्होंने अकबर के शासनकाल के दौरान रामायण और महाभारत का उर्दू अनुवाद किया था.

परिवार के साथ ने साहित्य सृजन में आगे बढ़ाया

डॉ. सिद्दीकी बताती हैं कि उन्होंने 2009-2010 में कविताएं लिखना शुरू किया था. लेकिन कहीं न कहीं उन्हें सबके सामने रखने में थोड़ा संकोच होता था. लेकिन माता-पिता के सहयोग ने उन्हें साहित्य सृजन की दिशा में आगे बढ़ाया.

2010 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘यादों के झरोखे से’ प्रकाशित हुआ था. उनकी समकालीन हिंदी और उर्दू कहानी लेखिकाओं का तुलनात्मक अध्ययन, गंतव्य की ओर, अदबी संगम आदि रचनाएं भी प्रकाशित हो चुकी हैं.

डॉ. माहे तिलत बताती है कि बाबूजी के संपर्क में आने के बाद उनके साहित्य सृजन में और निखार आया. उनकी राम कथा के अनुवाद में मां डॉ. महलका एजाज ने भी सहयोग दिया है. डॉ. महलका एजाज हलीम मुस्लिम डिग्री कॉलेज में उर्दू विभाग की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी हैं. वह उर्दू में पीएचडी करने वाली पहली महिला भी रही हैं.

डॉ. सिद्दीकी हमेशा कुछ पढ़ते-सीखते रहने में विश्वास करती हैं और फिलहाल इसी सिलसिले में ब्रिटेन की यात्रा पर हैं. वहीं से फोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उनके पिता एजाज अहमद लेबर ऑफिस में अफसर थे.

वह हर साल ही उनकी स्मृति में अपनी एक रचना प्रकाशित कराती रही हैं. लेकिन कोविड महामारी आने के बाद जरूर यह सिलसिला टूट गया. वह सितंबर 2021 में बतौर सदस्य उर्दू एकेडमी से भी जुड़ीं.

उनका मानना है कि उर्दू एक ऐसी भाषा है, जो दोनों समुदायों के बीच सेतु का काम करती है. उन्हें हिंदी और उर्दू दोनों भाषाएं बेहद प्रिय हैं और चाहती हैं कि लोग एक-दूसरे के धर्म-ग्रंथों के बारे जानें और समझें. वह कहती हैं कि हर धर्म के ग्रंथों में कुछ अदब सिखाए जाते हैं, संस्कार होते हैं और अच्छी बातें होते हैं. और सभी धर्म प्रेम का संदेश ही देते हैं.

रहीम और चित्रकूट पर प्रोजेक्ट  

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माहे तिलत हिंदी में पीएचडी हैं और चमनगंज स्थित जुबली गर्ल्स कॉलेज में पढ़ाती हैं. फिलहाल, वह उर्दू अनुवाद के जरिये राम कथा को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश में जुटी हैं. उन्होंने कुछ समय पहले ही दुबई की ख्यात मोहम्मद बिन राशिद लाइब्रेरी को राम कथा के उर्दू अनुवाद की एक प्रति भेंट की थी.

इसके अलावा हाल ही में उन्होंने इसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को भी भेंट किया है. डॉ. सिद्दीकी बताती हैं कि उन्होंने कुछ समय पहले रहीम और चित्रकूट पर एक प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिया था, लेकिन कोविड के कारण वो भी बीच में अटक गया.

लेकिन वह इसे जल्द ही फिर से शुरू करने का इरादा रखती हैं. वह दरअसल चित्रकूट और इस जगह के प्रति रहीम के प्रेम का इतिहास खंगालना चाहती हैं और उसे एक किताब की शक्ल में लोगों के सामने रखना चाहती हैं.