पश्चिम बंगाल में एकता की मिसाल: मुस्लिम परिवार के यहां से आती है प्रभु जगन्नाथ रथ की रस्सी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 20-06-2023
पश्चिम बंगाल में एकता की मिसाल: मुस्लिम परिवार के यहां से आती है प्रभु जगन्नाथ रथ की रस्सी
पश्चिम बंगाल में एकता की मिसाल: मुस्लिम परिवार के यहां से आती है प्रभु जगन्नाथ रथ की रस्सी

 

डॉ. अर्घ्य मुखोपाध्याय

प्रभु जगन्नाथ हो या पैगंबर हजरत, क्या कोई उनको अलग कर सकता है कोई, है किसी में हिम्मत? यह सवाल पूछा जाता है पश्चिम बंगाल की बांकुड़ा जिले का खतरा ब्लॉक में कुरे बांकुरा गांव में. इस गांव में कोई 80 परिवार रहते हैं और इनमें करीब 20 घर मुसलमानों के हैं. लेकिन इस गांव में हर साल धूमधाम से रथयात्रा निकाली जाती है तो रथ की खींचने वाली रस्सी देता है गांव का एक मुस्लिम परिवार. रथ की रस्सी सौगात में देने वाले शख्स हैं शेख रमजान अली.

 
कुरे बांकुड़ा गांव में रथयात्रा आयोजक समिति के एक सदस्य कहते हैं, “हमलोग बहुत वक्त से गांव में एक साथ रहते हैं. हम सबने मिलकर यह तय किया है कि प्रभु जगन्नाथ के रथ को खींचने वाली रस्सी आएगी किसी मुस्लिम परिवार से. और यह रस्सी पिछले कई वर्षो से शेख रमजान अली ही देते आ रहे हैं.
 
असल में प्रभु जगन्नाथ या नील माधव की कहानी को अगर ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि जगन्नाथ देव के पुरी मंदिर की स्थापना की शुरुआत में एक बढ़ई ही उनकी पूजा करता था. भगवान जगन्नाथ के सामने न तो जाति भेद है न ही कोई छोटा-बड़ा. उनके सामने सभी बराबर हैं, और हमने प्रभु के सामने जाति-पांति को पीछे छोड़ने का फैसला किया है.”
 
और इसी की मिसाल है कुरे बाकुंरा गांव जहां रथयात्रा में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग मिलजुल कर शामिल होते हैं और पूरी श्रद्धा रथ खींचते हैं. वह कहते हैं, “इस मेलजोल से भगवान खुश हैं इसलिए आजतक कभी इस गांव में रथयात्रा नहीं रुकी है. चाहे दुनिया में कुछ भी हो जाए.” पश्चिम बंगाल के कुरे बांकुरा के लोगों ने यह साबित कि या है हि मजहब आपस में वैर नहीं, मुहब्बत करना सिखाता है और यह सीख पूरे हिंदुस्तान के लिए बहुत जरूरी है.