मिलाद-उन-नबी अत्यंत सम्मान और सादगी से मनाएं: विद्वान और बुद्धिजीवी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 29-09-2023
Celebrate Milad-ul-Nabi with utmost respect and simplicity: Scholars and intellectuals
Celebrate Milad-ul-Nabi with utmost respect and simplicity: Scholars and intellectuals

 

मंसूरुद्दीन फरीदी/ नई दिल्ली

देश के प्रमुख विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने ईद मिलाद-उल-नबी के मौके पर अपील की है कि मुसलमानों को इस मौके पर शांति का संदेश देना चाहिए और किसी भी शोर-शराबे और आडंबर से बचना चाहिए. इस्लाम के पैगंबर के जन्मदिन पर पेश करें इंसानियत और नैतिकता की मिसाल. निगाहें झुकें और पैग़म्बरे इस्लाम पर दुआ हो.

दरगाह अजमेर शरीफ के संरक्षक और चिश्ती फाउंडेशन के प्रमुख सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि हमें मिलाद-उल-नबी के अवसर का उपयोग अपनी नैतिकता और चरित्र को निखारने के लिए करना चाहिए. मानवता के लिए सबसे अच्छी सेवा हमारी नैतिकता हो सकती है, पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के उदाहरण का अनुसरण करना न केवल हमारे लिए बल्कि इस ब्रह्मांड की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण होगा.

उन्होंने आगे कहा कि पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शिक्षाओं में सभी लोगों के साथ, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, न्याय, करुणा और सम्मान के साथ व्यवहार करने के महत्व पर जोर दिया गया है. पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने गपशप और चुगली जैसे हानिकारक व्यवहार को हतोत्साहित किया. इसलिए हमें इस दिन कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जो इस्लाम के पैगंबर के जीवन और शिक्षाओं के खिलाफ हो.

प्रख्यात धार्मिक विद्वान मौलाना जहीर अब्बास रिजवी ने कहा कि मिलाद-उल-नबी न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत महत्व रखता है. यह न केवल इस्लाम के लिए बल्कि मानवता के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह पैगंबर मुहम्मद के जन्म का दिन है, जिन्होंने इंसान को मानवता, प्रेम, भाईचारा और बड़प्पन का संदेश दिया. वह भी एक ऐसे व्यक्ति थे.

ऐसे माहौल में जब आदमी अपनी बेटी को जिंदा दफनाना सम्मान की बात समझता था.लड़की का जन्म अपमान माना जाता था. लेकिन इन हालात में पैगम्बरे इस्लाम ने उन लोगों को महिलाओं की कीमत का एहसास कराया, जिनकी उनकी नजर में कोई कीमत नहीं थी. 1400 साल पहले ये आवाज अरब की धरती पर उठी थी, इसलिए हमें मिलाद की अहमियत समझनी चाहिए- उल-नबी. इस अवसर पर हमें शालीनता और नैतिकता की मिसाल के साथ-साथ प्रेम और भाईचारे का संदेश भी पेश करना चाहिए.

बात यहीं तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसके साथ ही हमें समाज में दबे-कुचले लोगों के अधिकारों को बहाल करना चाहिए और गरीबों की मदद करनी चाहिए और जरूरतमंद. धार्मिक भेदभाव है. उन्होंने आगे कहा कि पैगंबर के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नैतिकता पर आधारित जीवन है, जिसका उल्लेख पवित्र कुरान में इस प्रकार है: मेरे रसूल के अच्छे कर्म आपके लिए सर्वोत्तम उदाहरण हैं. इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि मुसलमान सर्वोत्तम नैतिकता दिखाएं.

आज के संकटपूर्ण युग में, जब अराजकता का माहौल है, पैगंबर की जीवनी को दुनिया के सामने इस तरह प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि इस्लाम की सच्ची छवि दिखाई दे. मौलाना जहीर अब्बास आगे कहा कि चूंकि इस्लाम के पैगंबर ने अपना जीवन बेहद सादगी से बिताया, इसलिए उनके जन्मदिन के मौके पर कोई भी ऐसा कार्य या हरकत नहीं करनी चाहिए जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे. हमें याद रखना होगा कि उनके जन्म का जश्न मनाया जा रहा है.

अपने दिलों में ईश्वरीय शब्द के प्रकट होने का जश्न मना रहे हैं. इसलिए ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जो शरिया और इस्लाम के खिलाफ हो. खासकर लाउडस्पीकर और डीजे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनके शोर से दूसरों को नुकसान हो सकता है. ऐसे नारों से बचना चाहिए जो किसी के दिल को ठेस पहुंचा सकते हैं. हम किसी को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते, बल्कि खुदा और उसके रसूल को खुश करना चाहते हैं और यही पैगम्बरे इस्लाम के प्रति हमारी सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी कि हम दुनिया को अपनी नैतिकता से प्रभावित करें. 

मुंबई के सूफी बुद्धिजीवी और इंटरनेशनल सूफी कारवां के प्रमुख मुफ्ती मंजूर जियाई ने कहा कि मिलाद-उल-नबी को ऐसे मनाएं कि हम गुलाम और रसूल कहलाएं, लोग कहते हैं कि गुलाम ऐसे होते हैं तो कैसे हो सकते हैं मास्टर्स. अपनी नैतिकता को एक उदाहरण बनाएं. सिर झुकाना चाहिए, हाथ बंधे होने चाहिए और जीभ को आशीर्वाद देना चाहिए.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस्लाम के पैगंबर का जीवन मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है, शांति और सहिष्णुता का एक उदाहरण है, नैतिक जीवन हमारे लिए एक सबक है. मदीना मनूर से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमें इस शुभ अवसर पर खुद को एक उदाहरण के रूप में पेश करना चाहिए. किसी भी प्रकार के आडंबर से बचना चाहिए.ढोल और संगीत से बचना चाहिए.

यह कृत्य इस्लाम के पैगंबर के जीवन को प्रतिबिंबित नहीं करता है. हमें ऐसे मिथकों से दूर रहना चाहिए. यह पैग़म्बरे इस्लाम के प्रति हमारे प्रेम का प्रमाण हो सकता है कि हम इस अवसर पर अपनी नैतिकता और कार्यों के कारण दिल जीत लेते हैं.

उधर, इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया ने लखनऊ में शांतिपूर्ण तरीके से ईद मिलाद-उल-नबी मनाने की अपील की है, जबकि बरेली में मिलाद-उल-नबी जुलूस को लेकर विवाद हुआ था, जिसे प्रशासन ने सुलझा लिया है. उत्तर प्रदेश में इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया की ओर से 12 रबी अव्वल पर भीड़ को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है.

एडवाइजरी में कहा गया है कि पूरे देश को बैठकों और जुलूसों के मामले में इस्लाम के पैगंबर के रास्ते पर चलना चाहिए. यह स्पष्ट होना चाहिए कि मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, जो ऑल इंडिया मुस्लिम के सदस्य भी हैं पर्सनल लॉ बोर्ड, इस केंद्र से संबद्ध है. एडवाइजरी में कहा गया है कि देशभर में 28 सितंबर को 12 रबी अवल मनाया जाएगा. 27 सितंबर की रात को मिलाद-उल-नबी को लेकर देशभर में अन्य जगहों पर भी जलसे और जश्न होंगे. 

लखनऊ में इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया ने ईद मिलाद-उल-नबी को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने की अपील की है, वहीं बरेली में मिलाद-उल-नबी के जुलूस को लेकर विवाद खड़ा हो गया, जिसे प्रशासन ने सुलझा लिया है. इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्म दिवस, अल्लाह उन्हें आशीर्वाद दे और उन्हें शांति प्रदान करे, 12 रबी अल-अव्वल को मनाया जाता है. इस अवसर पर बड़ी संख्या में मुसलमान देश भर में जुलूस निकालते हैं, नात पढ़ते हैं, कुछ लोग इस अवसर पर लोगों को पानी, शरबत या चाय पिलाते हैं.
 
उत्तर प्रदेश में इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया की ओर से 12 रबी अव्वल पर भीड़ को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है. एडवाइजरी में कहा गया है कि पूरे देश को बैठकों और जुलूसों के मामले में इस्लाम के पैगंबर के रास्ते पर चलना चाहिए. यह स्पष्ट होना चाहिए कि मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, जो ऑल इंडिया मुस्लिम के सदस्य भी हैं पर्सनल लॉ बोर्ड, इस केंद्र से संबद्ध है.
 
एडवाइजरी में कहा गया है कि देशभर में 28 सितंबर को 12 रबी अवल मनाया जाएगा. 27 सितंबर की रात को देशभर में अन्य जगहों पर भी मिलाद-उल-नबी को लेकर जलसे और जलसे होंगे. लखनऊ में भी मिलाद-उल-नबी को लेकर इस्लामिया कॉलेज, अमीर-उद-दौला पार्क, मदीना मस्जिद समेत कई जगहों पर जलसे होंगे. एडवाइजरी में मुसलमानों से निर्देश पर ध्यान देने का अनुरोध किया गया है.
 
एडवाइजरी में कहा गया है कि मुस्लिम जुलूस के दौरान मुस्लिम ऐसे नारे न लगाएं जिससे किसी को ठेस पहुंचे या गैर-मुस्लिमों को परेशानी हो. हम आपको बता दें कि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पैगंबर मुहम्मद का जन्म 570 ईस्वी में हुआ था. वह दुनिया में खुशियाँ लेकर आये. हालाँकि, एक वर्ग ऐसा भी है जो पैगंबर मुहम्मद (PBUH) को मानता है लेकिन उनका जन्मदिन नहीं मनाता है.
 
उधर, बरेली से खबर है कि ईद मिलाद-उल-नबी पर जोगी नवादा से निकलने वाले जुलूस का रूट नहीं बदला जाएगा. मंगलवार सुबह स्थानीय लोगों ने इस रास्ते से जुलूस निकालने का विरोध किया था, लेकिन शाम को दोनों पक्ष पारंपरिक रास्ते से जुलूस निकालने पर लिखित रूप से सहमत हो गये. पुलिस के मुताबिक, यह जुलूस का पारंपरिक मार्ग है, इसलिए जुलूस वहीं से निकाला जाएगा, लेकिन डीजे बजाने की इजाजत नहीं दी गई.
 
इलाके में निगरानी के लिए एक कंपनी आरएएफ, एक कंपनी पीएसी और स्थानीय थाने की पुलिस तैनात की गई है. जोगी नवादा में सावन के महीने में मुस्लिम महिलाओं ने शाह नूरी मस्जिद के पास कांवर यात्रा का विरोध किया. चूंकि कांवर यात्रा पारंपरिक मार्ग नहीं है, इसलिए प्रशासन ने इसे निकालने की इजाजत नहीं दी. अब बुधवार को ईद मिलाद-उल-नबी के मौके पर उसी रास्ते से जुलूस निकाला जाना है.
 
इस जुलूस को लेकर पुलिस प्रशासन लगातार लोगों से बातचीत कर रहा था. मंगलवार की सुबह जोगी नवादा के लोगों ने जुलूस का विरोध किया. इस पर एसीएम प्रथम नहने राम, सीओ आशीष प्रताप सिंह फोर्स के साथ वहां पहुंचे और लोगों को समझाया. शाम को पुलिस प्रशासन ने बैठक कर जुलूस का रूट नहीं बदलने का निर्णय लिया, क्योंकि यह परंपरागत रूट है. ऐसे में रूट बदलने पर विरोध की आशंका है.
 
इसके बाद इस गली में डीजे बजाने पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया. इस मामले पर दोनों पक्षों से चर्चा की गई और उनकी सहमति के बाद रूट तय किया गया है. पुलिस का कहना है कि दोनों पक्षों की ओर से लिखित कार्रवाई की गई है.